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बच्चों में कोरोना वायरस से गंभीर बीमारी और मौत का खतरा काफी कम: स्टडी

ब्रिटेन में सार्वजनिक स्वास्थ्य आंकड़ों के व्यापक विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि बच्चों और किशोरों में कोविड-19 से गंभीर बीमार होने और मृत्यु होने का खतरा बहुत कम होता है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: July 09, 2021 23:03 IST
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Image Source : AP REPRESENTATIONAL भारत में कोरोना वायरस की तीसरी लहर के बारे में चर्चा तेज होने के साथ ही लोगों की बच्चों के स्वास्थ को लेकर चिंता बढ़ गई है।

लंदन: भारत में कोरोना वायरस की तीसरी लहर के बारे में चर्चा तेज होने के साथ ही लोगों की बच्चों के स्वास्थ को लेकर चिंता बढ़ गई है। हालांकि ब्रिटेन में हुई एक स्टडी के नतीजे बच्चों और किशोरों के माता-पिता को थोड़ी राहत दे सकते हैं। ब्रिटेन में सार्वजनिक स्वास्थ्य आंकड़ों के व्यापक विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि बच्चों और किशोरों में कोविड-19 से गंभीर बीमार होने और मृत्यु होने का खतरा बहुत कम होता है। हालांकि, अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि कोरोना वायरस संक्रमण होने से उन युवाओं के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका हो सकती है, जो पहले से गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं।

18 साल से कम उम्र के लिए वैक्सीनेशन का भी सुझाव

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL), यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल, यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क और यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के अनुसंधानकर्ताओं की रिपोर्ट में 18 साल से कम उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण की नीति भी सुझाई गयी है। इनमें कुल तीन अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। एक अध्ययन में पता चला कि इंग्लैंड में 18 साल से कम उम्र के 251 लोगों को फरवरी 2021 तक कोविड-19 के उपचार के लिए गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में भर्ती कराया गया था। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, इससे पता चला कि ब्रिटेन में 47,903 लोगों में से एक किशोर के सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित होने की और आईसीयू में भर्ती कराने की आशंका थी।

इंग्लैंड में कोविड-19 से 25 बच्चों और किशोरों की मौत
एक दूसरी स्टडी में बताया गया कि इंग्लैंड में कोविड-19 से 25 बच्चों और किशोरों की मृत्यु हो गयी। यानी 4,81,000 लोगों में से किसी एक को या दस लाख में दो लोगों को संक्रमण से मौत का खतरा था। दोनों अध्ययनों के प्रमुख अध्ययनकर्ता प्रोफेसर रसेल वाइनर ने कहा, ‘ये नये अध्ययन दिखाते हैं कि सार्स-सीओवी-2 से गंभीर रोग या मृत्यु का खतरा बच्चों और किशोरों में बहुत कम है।’ तीसरे अध्ययन में 55 शोधपत्रों का विश्लेषण करने के बाद उक्त दोनों अध्ययनों के समान ही निष्कर्ष निकाले गए।

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