वॉशिंगटन. चीन का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन के साथ रणनीतिक हिंद-प्रशांत गठबंधन बनाने के अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले ने फ्रांस और यूरोपीय संघ (ईयू) को नाराज कर दिया है। फ्रांस और ईयू को महसूस हो रहा है कि उन्हें नजरअंदाज किया गया और वे इसकी तुलना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल के कदमों से कर रहे हैं।
बाइडन ने यूरोपीय नेताओं को भरोसा दिलाया था कि ‘‘अमेरिका वापस आ गया है’’ और बहुपक्षीय कूटनीति अमेरिका की विदेश नीति का मार्गदर्शन करेगी, लेकिन कई अहम मामलों पर अकेले आगे बढ़ने के दृष्टिकोण के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने कई सहयोगियों को अलग-थलग कर दिया है। फ्रांस के विदेश मंत्री ने इस हालिया कदम को ‘‘समझ से परे’’ बताया और इसे ‘‘पीठ में छुरा घोंपना’’ करार दिया।
यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख ने शिकायत की कि यूरोप से परामर्श नहीं किया गया था। कुछ विशेषज्ञों ने बाइडन के हालिया कदमों की तुलना डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ‘‘पहले अमेरिका’’ सिद्धांत के तहत उठाए गए कदमों से की है। उन्होंने कहा कि उस राष्ट्रपति द्वारा इस प्रकार के कदम उठाया जाना आश्चर्यजनक है, जिसने सहयोगियों के साथ संबंध सुधारने और वैश्विक मंच पर अमेरिका की विश्वसनीयता बहाल करने के संकल्प के साथ राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा था।
बाइडन ने मात्र तीन पहले यूरोप की यात्रा की थी और उस समय यूरोपीय समकक्ष उन्हें ऐसा नायक बता रहे थे, जो ट्रम्प के शासनकाल के परा-अटलांटिक तनाव को पीछे छोड़ने का इच्छुक है, लेकिन राहत की वह सुखद अनुभूति कई लोगों के लिए अब फीकी पड़ गई है। बाइडन ने अमेरिका के सबसे पुराने सहयोगी फ्रांस को नाराज किया है, पौलेंड एवं यूक्रेन अपनी सुरक्षा को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर रहे हैं और अफगानिस्तान से लेकर पूर्वी एशिया तक कई एकतरफा फैसलों ने यूरोपीय संघ को खफा किया है।
जब बाइडन ने ईरान के साथ परमाणु वार्ता में फिर से शामिल होने और इजराइल-फलस्तीनी शांति वार्ता को पुनर्जीवित करने का वादा किया था, तो यूरोप ने इस बात पर खुशी जताई थी, लेकिन बाइडन के प्रशासन के नौ महीने बाद भी इन दोनों ही मामलों पर प्रयास रुके हुए हैं। पोलैंड और यूक्रेन से गुजरने वाली रूस से जर्मनी तक की गैस पाइपलाइन को बाइडन की स्वीकृति के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा और इसके एक ही महीने बाद अगस्त में अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी ने यूरोप को अजीब स्थिति में डाल दिया, जिसने इस वापसी को लेकर आपत्ति जताई थी।
इसके बाद, इस सप्ताह बाइडन ने ऑकस (एयूकेयूएस) गठबंधन की घोषणा करके फ्रांस और यूरोपीय संघ को नाराज कर दिया। ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद प्रशांत में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र के लिए एक नए त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन ‘ऑकस’ (एयूकेयूएस) की घोषणा की, ताकि वे अपने साझा हितों की रक्षा कर सकें और परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियां हासिल करने में ऑस्ट्रेलिया की मदद करने समेत रक्षा क्षमताओं को बेहतर तरीके से साझा कर सकें। इस बात को लेकर चीन का नाराजगी जताना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन फ्रांस और यूरोपीय संघ ने भी इस गठबंधन को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए शिकायत की है कि उन्हें इस गठबंधन से न केवल बाहर रखा गया, बल्कि उनके साथ विचार-विमर्श भी नहीं किया गया।
व्हाइट हाउस और अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि फ्रांस को इस फैसले के बारे में बुधवार को घोषणा किए जाने से पहले ही सूचित कर दिया गया था, हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि फ्रांस को कब सूचना दी गई। फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां इव लि द्रीयां ने जून में कहा था, ‘‘ यह हम सभी के लिए अच्छा समाचार है कि अमेरिका वापस आ गया है’’, लेकिन इस गठबंधन की घोषणा को उन्होंने समझ से परे बताया और कहा, ‘‘यह वास्तव में पीठ में एक छुरा घोंपना है। यह ट्रंप के कदमों की तरह की प्रतीत होता है।’’ व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने तुलना को अनुचित बताया। फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच डीजल पनडुब्बियों के निर्माण के लिए करीब 100 अरब डॉलर का सौदा हुआ था। नई ऑकस पहल की शर्तों के तहत ऑस्ट्रेलिया के लिए डीजल पनडुब्बियों के निर्माण का यह सौदा समाप्त हो जाएगा, जिससे फ्रांस नाखुश है।