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संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में इस बार भी नहीं निकला कोई ठोस परिणाम

मैड्रिड में पर्यावरण पर जारी संयुक्त राष्ट्र का शिखर सम्मेलन एक बार फिर बिना किसी ठोस नतीजे के रविवार को समाप्त हो गया। देशों के बीच चली लंबी बातचीत में ग्लोबल वार्मिंग आपदा को टालने की योजना बनाने पर अमल को लेकर उनके बीच पहले से कहीं अधिक मतभेद नजर आए।

Written by: Bhasha
Published on: December 15, 2019 14:57 IST
Climate- India TV Hindi
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मैड्रिड (स्पेन): मैड्रिड में पर्यावरण पर जारी संयुक्त राष्ट्र का शिखर सम्मेलन एक बार फिर बिना किसी ठोस नतीजे के रविवार को समाप्त हो गया। देशों के बीच चली लंबी बातचीत में ग्लोबल वार्मिंग आपदा को टालने की योजना बनाने पर अमल को लेकर उनके बीच पहले से कहीं अधिक मतभेद नजर आए। बातचीत खत्म होने की तय सीमा के 36 घंटे बाद, प्रतिनिधि विवादास्पद मुद्दों पर समझौते के करीब थे। इनमें एक मुद्दा यह था कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रत्येक राष्ट्र अपनी योजना को लेकर कितना महत्त्वाकांक्षी है।

विज्ञान से मिल रही चेतावनियों, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुईं घातक मौसमी परिस्थितियों और लाखों युवाओं की तरफ से की जा रही साप्ताहिक हड़तालों के बीच मैड्रिड में हुई वार्ता पर अत्यंत दबाव था कि वह साफ संकेत दे कि सरकारें इस संकट से निपटने के अपने प्रयासों को और तेज करने की इच्छुक हैं। लेकिन जलवायु संबंधी आपदाओं की मार पहले से झेल रहे पर्यवेक्षकों और राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने कहा कि मैड्रिड का कॉप 25 अपने ही नारे ‘टाइम फॉर एक्शन’ के मोर्चे पर विफल रहा।

 ग्रेनाडा के राजदूत सिमोन स्टील ने कहा, “हम पेरिस समझौते में मौजूद प्रावधानों को बरकरार रखना चाहते हैं और हम प्रत्येक कॉप में देखते हैं कि इसे उन प्रावधानों को नष्ट करने के एक अन्य अवसर के रूप में देखा जाता है।” मैड्रिड में करीब 200 राष्ट्रों के प्रतिनिधि 2015 में हुए पेरिस समझौते के लिए नियम पुस्तिका को अंतिम रूप देने के लिए जुटे हैं। यह समझौता वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे-नीचे तक सीमित करने का लक्ष्य रखता है। 

इस समझौते पर अगले साल से अमल करना है और ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि कॉप 25 दुनिया को दिखाएगा कि सरकारों ने अपने प्रयासों को दोगुना करने के लिहाज से हफ्तों चले प्रदर्शनों को, अकाट्य विज्ञान को और मौसमी परिस्थितियों के और विकट हो जाने को पूरी तरह ध्यान में रखा है। इस सबके बावजूद मुख्य मुद्दा कि कैसे प्रत्येक देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती का इच्छुक है या कम समृद्ध देशों को ऐसा करने में कैसे मदद दी जाएगी, पूरी तरह विफल हो गया।

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