लंदन: अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि उपग्रह से ली गई ताजा तस्वीरों व वीडियो से पता चल रहा है कि म्यांमार के राखिन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी वाले गांवों में अभी भी धुआं उठ रहा है। यह देश की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की के इस दावे के बिल्कुल उलट है कि प्रांत में सैन्य अभियान खत्म हो चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुक्रवार देर शाम लंदन स्थित समूह ने कहा कि राखिने में मौजूद उसके सूत्रों का दावा है कि शुक्रवार अपराह्न की तस्वीरों में गांवों के घरों में आग लगी नजर आ रही है, जो म्यांमार के सुरक्षा बलों और हिंसक भीड़ द्वारा लगाई गई है।
म्यांमार की हालिया हिंसा ने 4,29,000 रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश पलायन पर मजबूर किया है। एमनेस्टी की (संकट प्रतिक्रिया) निदेशक तिराना हसन ने कहा, ‘जमीन व अंतरिक्ष से लिए गए यह घातक सबूत दुनिया को आंग सू की के दावे की असलियत दिखा रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘रोहिंग्या मुसलमानों के घरों और गांवों को जलाने का काम जारी है। यह आगजनी उस वक्त भी जारी थी जब इन घरों में लोग रह रहे थे और तब भी जारी है जब इनमें रहने वाले पलायन कर चुके हैं। लेकिन, वे रोहिंग्या के पलायन भर से संतुष्ट नहीं हैं। ऐसा मालूम पड़ रहा है कि अधिकारी यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि उनके लौटने के लिए कोई घर नहीं हो।’
पलायन करने वाले अधिकांश रोहिंग्या मुसलमानों ने बांग्लादेश के जिले कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविरों में शरण ले रखी है। इन लोगों का आरोप है कि भागने के दौरान इन पर म्यामांर के बौद्धों और सुरक्षाकर्मियों ने भयावह हमले किए। गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, हालिया हिंसा 25 अगस्त को रोहिंग्या विद्रोही समूहों द्वारा पुलिस चौकियों पर हमला करने के बाद भड़की, जिसमें 12 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। म्यांमार सरकार ने आरोप लगाया कि रोहिंग्या अपने घरों को खुद जला रहे हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र व अन्य समूहों ने म्यांमार सरकार पर जनजातीय समूहों का नामोनिशान मिटाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।