लंदन: पाकिस्तान में शिक्षा के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई ने शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित आंग सान सू की से म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ शर्मनाक हिंसा की निंदा करने का आवाह्न करते हुए कहा कि इस हिंसा की उनके द्वारा निंदा किए जाने का विश्व इंतजार कर रहा है। 20 वर्षीय मलाला ने म्यांमार की इस नेता से हिंसा की निंदा करने का आग्रह किया। इस हिंसा में हजारों की संख्या में लोग पड़ोसी देश बांग्लादेश में चले गए है। मलाला ने अपने मुल्क पाकिस्तान से भी मुस्लिम शरणार्थियों को सहायता उपलब्ध कराने का आहवान किया।
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘पिछले कई वर्षों से मैंने कई बार इस दुखद और शर्मनाक कार्रवाई की निंदा की है। मैं अपनी साथी नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की से भी ऐसी ही उम्मीद करती हूं।’ उन्होंने कहा कि विश्व और रोहिंग्या मुसलमान इंतजार कर रहे है। मलाला ने कहा, ‘हिंसा बंद की जाए। आज हमने म्यांमार के सुरक्षा बलों द्वारा छोटे बच्चों की हत्या किए जाने की तस्वीरें देखी। केवल इन बच्चों पर हमला ही नहीं किया गया बल्कि उनके घरों को भी जला दिया गया।’ मलाला ने कहा यदि म्यांमार उनका घर नहीं है तो वे इतनी पीढ़ियों से कहां रह रहे थे। उन्होंने कहा कि रोहिंग्या लोगों को म्यांमार में नागरिकता दी जानी चाहिए, यह वह देश है जहां उनका जन्म हुआ है।
मलाला को वर्ष 2014 में मात्र 17 वर्ष की उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। शिक्षा के अधिकारों के लिए अभियान चलाने वाली मलाला को पश्चिमोत्तर पाकिस्तान की स्वात घाटी में उस समय सिर में गोली मार दी गई थी जब वह स्कूल से अपने घर लौट रही थीं। इस घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचान मिली थी। बाद में वह अपने परिवार के साथ बर्मिंघम चली गई थीं। उन्होंने कहा, ‘दूसरे देशों, जिनमें मेरा अपना देश पाकिस्तान शामिल है, उन्हें बांग्लादेश का उदाहरण अपनाना चाहिए और हिंसा तथा आतंक से भाग रहे रोहिंग्या परिवारों को खाना, शरण और शिक्षा देनी चाहिए।’
पिछले सप्ताह ब्रिटेन के विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन ने भी सू की से म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को रोके जाने का आग्रह किया था। रोहिंग्या मुस्लिम पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा करने का आरोप सैनिकों और हथियारबंद लोगों पर है। इस हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए हैं। करीब 58,600 रोहिंग्या नागरिक म्यांमार छोड़कर पड़ोसी देश बांग्लादेश भाग गए हैं।