लंदन: यहां एक बहुमंजिला रिहाइशी भवन में लगी आग में लोगों की जान बचाने के लिए कई मुसलमान रोजेदारों का सम्मान 'हीरो' की तरह किया जा रहा है। यह वे लोग हैं जिन्होंने ग्रेनफेल टावर में नींद में बेखबर लोगों को जगाकर उन्हें भवन से बाहर निकाल कर उनकी जान बचाने में बड़ी भूमिका निभाई। यह वो रोजेदार हैं जो मंगलवार को अपने अपार्टमेंटों में देर रात गए सहरी के लिए जगे हुए थे। देर रात एक बजे के आसपास इनमें से कुछ ने आग को महसूस किया।
'डेली मेल' की गुरुवार को रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार की मध्यरात्रि के लगभग एक घंटे बाद धुएं की गंध को महसूस कर मुस्लिम अपने घरों से बाहर आए। उन्होंने आग देखी। उसके बाद यह लोग, खासकर युवा मुस्लिम बहुमंजिला इमारत में हर तरफ दौड़ने लगे और लोगों को उठाने के लिए उनके घरों के दरवाजे पीटने लगे।"
डेली मेल की रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिम लंदन स्थित इस इमारत में आग की चेतावनी देने वाले अलार्म बंद पड़े थे। जो सो रहे थे, उन्हें नहीं पता था कि क्या हो रहा है। स्प्रिंकलर भी बेकार पड़े थे। ऐसे में इन रोजेदारों ने लोगों को घरों से बाहर निकाले में मदद की। इन्हें इन लोगों की 'जीवन रेखा' कहा जा रहा है।
हादसे के शिकार ग्रेनफेल टॉवर की आठवीं मंजिल पर रहने वाले खालिद सुलेमान अहमद ने कहा, "कोई फायर अलार्म नहीं बजा। कोई चेतावनी नहीं मिली। मैं सेहरी के इंतेजार में प्लेस्टेशन खेल रहा था, तभी मैंने धुएं की गंध महसूस की।"
सुलेमान ने बताया, "मैं उठा और अपनी खिड़की से बाहर देखा तो पाया कि सातवीं मंजिल से धुआं उठ रहा है। मैंने अपनी आंटी को उठाया, उसके बाद कपड़े पहनकर पड़ोसियों के दरवाजों को पीटना शुरू कर दिया।"
एक निवासी रशीदा ने स्काई न्यूज को बताया कि किस तरह मुस्लिमों ने टॉवर में रह रहे लोगों की जान बचाई क्योंकि उनमें से कई जाग रहे थे। रशीदा ने कहा, "ज्यादातर मुस्लिम रमजान में आमतौर से रात 2 बजे या ढाई बजे से पहले नहीं सोते हैं। फिर वे देर रात का आखिरी खाना (सहरी) खाते हैं, उसके बाद वे नमाज पढ़ते हैं।"
उन्होंने कहा, "इसीलिए यहां के ज्यादातर परिवार उस समय जाग रहे होंगे।" कई इस्लामी सांस्कृतिक केंद्रों और मस्जिदों (जैसे कि अल मनार मस्जिद) ने पीड़ितों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। अल मनार मस्जिद के पास के सेंट क्लीमेंट और सेंट जेम्स चर्च और स्थानीय सिख गुरुद्वारों ने भी पीड़ितों की मदद के लिए अपने-अपने दरवाजे खोल दिए हैं।
घटनास्थल के पास मौजूद एक महिला ने पत्रकारों से कहा, "यदि मस्जिद से आए सभी मुस्लिम लड़कों ने यहां आकर मदद नहीं की होती, तब कई और लोग मारे गए होते।" महिला ने बताया, "वे उन लोगों में से थे, जिन्होंने सबसे पहले लोगों को पानी दिया और उनकी मदद की। वे यहां- वहां, हर तरफ भाग रहे थे और लोगों को आग की चेतावनी दे रहे थे।"
आंद्रे बोरोसो (33) ने 'द इंडिपेंडेंट' को बताया, "मुसलमानों ने कई लोगों को बाहर निकालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। मैंने जितने लोगों को मदद करते देखा, उनमें अधिकांश मुस्लिम थे। वे लोगों को खाना और कपड़ा भी दे रहे थे।"