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BREXIT के साथ ब्रिटिश PM कैमरून का इस्तीफा, मुश्किल में ग्रेट ब्रिटेन और EU का अस्तित्व भी संकट में

द ग्रेट ब्रिटेन में गुरुवार को हुए मतदान के बाद शुक्रवार को आए नतीजों ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। जहां एक ओर नतीजों की गणना हो ही रही थी कि संकट की आहट भांप भारत, जापान समेत दुनियाभर के प्रमुख बाजारों की स्थिति खराब हो गई।

India TV News Desk
Updated on: June 25, 2016 6:58 IST
BREXIT- India TV Hindi
BREXIT

लंदन: द ग्रेट ब्रिटेन में गुरुवार को हुए जनमत संग्रह के बाद शुक्रवार को आए नतीजों ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। जहां एक ओर नतीजों की गणना हो ही रही थी कि संकट की आहट भांप भारत, जापान समेत दुनियाभर के प्रमुख बाजारों की स्थिति खराब हो गई। इतना ही नहीं ब्रिटेन की जनता से ईयू में बने रहने की भावुक अपील करने वाले ब्रिटिश प्रधानमंत्री डैविड कैमरून ने भी नतीजों के बाद इस्तीफा दे दिया। अब इस फैसले को ब्रिटेन के लिए नया सवेरा कहा जाए या फिर कुछ और लेकिन आगामी कुछ महीनों में हालात उतने बेहतर नहीं दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि ईयू से एग्जिट की ये आग अब नीदरलैंड को भी अपने लपेटे में ले चुकी है। कहीं ऐसा न हो कि ब्रिटेन से शुरु हुई यह रवायत आंधी का रूप अख्तियार कर ले और एक एक करके सभी मुल्क ईयू से अलग होने को लामबंदी करने लगें। ऐसे में ईयू का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।

स्टेप-बाई-स्टेप समझिए आखिर ब्रिटेन ने ईयू को कैसे कह दिया अलविदा। पढ़िए क्या है आखिर ईयू से अलग होने की ये पूरी कहानी......

BREXIT के बाद कैमरन ने दिया इस्तीफा:

यूरोपियन यूनियन से अलग होने के मुद्दे पर ब्रिटिश जनता की आम राय सामने आने के बाद ब्रिटिश प्रधाननमंत्री डेविड कैमरून ने जनता से सरोकार कर अपने इस्तीफे (हालांकि वो फिलहाल अपने पद पर बने रहेंगे) का ऐलान कर दिया। उन्होंने अपने भाषण में इशारों-इशारों में ही कह दिया कि वो अपना पद छोड़ देंगे। उन्होंने कहा, “हालांकि मैं इस जहाज को स्थिर करने की कोशिश करूंगा, लेकिन मेरा मानना है कि हमारे पास आगामी अक्टूबर तक नया ब्रिटिश प्रधानमंत्री होना चाहिए।” गौरतलब है कि गुरुवार को हुए जनमत संग्रह में ब्रिटेन की जनता ने यूरोपियन यूनियन से अलग होने का फैसला किया है। इसके पहले भी इसी मुद्दे पर एक बार इंग्लैंड में जनमत संग्रह हो चुका है लेकिन तब देश की जनता ने ईयू के साथ बने रहने के विकल्प को चुना था।

23 जून को हुआ था जनमत संग्रह:

23 जून को ब्रिटेन की जनता ने मतदान किया। जनता ने अपने मतदान के जरिए यह फैसला बैलेट बॉक्स में कैद कर दिया कि आखिर वो ईयू के साथ बने रहना चाहती है या फिर वो ईयू से अलग होकर खोई हुई अपनी संप्रभुता और पुराने रूतबे को फिर से हासिल करना चाहती है। इस पूरी रस्साकशी को ब्रैक्जिट और ब्रिमेन शब्दों से नवाजा गया। जानिए क्या है इन दोनों शब्दों का मतलब। संक्षिप्त में समझिए क्या है ब्रैग्जिट।

क्या है BREXIT (ब्रैग्जिट): द ग्रेट ब्रिटेन के EU से एग्जिट को ही ब्रैग्जिट कहा जा रहा है। यानी कभी दुनिया पर राज करने वाले ब्रिटेन अब ईयू की शर्तों पर नहीं बल्कि अपनी शर्तों पर चलना चाहता है और वह अपनी खोई हुई वह संप्रभुता को वापस पाना चाहता है, जिसके खोने की वह दलील देकर यूनियन से बाहर होने का तर्क दे रहा है। इसी मुद्दे पर लोग दो धड़ों में बंट चुके हैं।

क्या है ब्रिमेन (BREMAIN): ये वो लोग हैं जो चाहते हैं कि ब्रिटेन पहले की तरह ईयू का हिस्सा बना रहे क्योंकि ऐसा आर्थिक लिहाज से बेहतर रहेगा।

अब जानिए क्या है ईयू:  दरअसल ईयू 28 देशों का एक ग्रुप है। जो कि इन देशों के बीच मुक्त व्यापार, अर्थव्यवस्था, तकनीक, विवाद और अन्य विषयों पर इनके बीच आपसी समन्वय कराने वाले एक नियामक के तौर पर काम करता है। इसकी अपनी एक कोर्ट और संसद है। साल 1975 में छह देशों की रोम संधि के जरिए यूरोपियन कम्युनिटी की शुरूआत हुई थी जिसमें बाद में कई यूरोपीय देश जुड़ते चले गए और यह यूरोपियन यूनियन बन गया।

ब्रिटेन की समस्या: वैसे तो ब्रिटेन ईयू का मेंबर होकर भी एक तरह से उससे अलग है, या यूं कहें कि उसे एक अलग स्टेटस मिला हुआ है। मसलन जब पूरे यूरोपियन यूनियन में यूरोप्रचलन में है तब ब्रिटेन द ग्रेट ब्रिटेन पाउंड (GBP) में लेन-देन करता है।

दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय क्रेंद ब्रिटेन के लिए यूरोप ही सबसे अहम बाजार है। अगर वह ईयू से अलग होने का फैसला करता है को उसे वित्तीय केंद्र वाले स्टेटस को बड़ा धक्का लग सकता है। इस वजह से देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो सकती है और देश में बेरोजगारी में भी भारी इजाफा हो सकता है।

ब्रिटेन को करीब 9 अरब डॉलर ईयू के लिए देने पड़ते हैं जिसकी वजह से उसे तकलीफ हो रही है। ब्रिटेन ईयू से अलग होकर अपनी खोई हुई संप्रभुता और रूतबा हासिल करना चाहता है। साथ ही वह ईयू से अलग होकर उन तमाम शर्तों और नियमों से मुक्ति पा जाएगा जो ईयू ने लगा रखी हैं।

ब्रिटेन को फायदे और नुकसान:

फायदे:

  •  अगर ब्रिटेन ईयू से बाहर आता है तो उसे करीब 9 अरब डॉलर जो ब्रिटेन को देने पड़ते है उससे उसे निजात मिल जाएगी।
  •  ब्रिटेन अपनी खोई हुई संप्रभुता और रूतबा हासिल कर पाएगा।
  •  ब्रिटेन को ईयू के उन तमाम नियमों से निजात मिल जाएगी जिससे उसको परेशानी हो रही है।
  •  ब्रिटेन को प्रवासियों की संख्या से भी निजात मिल सकती है।

नुकसान:

  •  ऐसा होने से ब्रिटेन में होने वाला व्यापार प्रभावित होता जो अर्थव्यवस्था को डांवाडोल स्थिति में पहुंचा सकता है।
  •  अर्थव्यवस्था पर पडे़गा बुरा असर और बढ़ सकती है बेरोजगारी।
  •  ब्रिटेन के ईयू से बाहर जाने से देश में होने वाला व्यापार अब पूरी तरह से ब्रिटेन और ईयू के रिश्तों पर निर्भर होगा। साथ एफडीआई के आकर्षण पर भी असर पड़ सकता है।
  •  इस समय जर्मनी यूरोपियन यूनियन का सबसे ताकतवर मुल्क है, अगर ब्रिटेन बाहर जाता है तो जर्मनी की ताकत में और इजाफा होगा।

भारत पर भी असर:

अगर ब्रिटेन ईयू से अलग होता है तो भारत पर असर होना लाजिमी है, क्योंकि भारत की सैकड़ों कंपनियों ने ब्रिटेन में निवेश कर रखा है। एफडीआई के जरिए निवेश करने वाली ये कंपनियां यहां बिजनेस कर रही हैं। अगर ब्रिटेन ईयू से बाहर जाता है तो एफडीआई बाहर जा सकता है, क्योंकि अब तक जो कंपनियां यूरोपियन यूनियन (मुक्त व्यापार के जरिए आपस में सहज लेन-देन) के जरिए लेन-देन व्यापार कर रही थीं अब वह उतना आसान नहीं होगा, क्योंकि ब्रिटेन अब अपने नियम और शर्तें लागू करेगा।  

भारत पर असर:

  • रुपया हो गया कमजोर, यानी भारतीयों के लिए सब कुछ महंगा।
  • स्टॉक मार्केट की हालात हो गई पतली, सेंसेक्स-निफ्टी समेत दुनियाभर के बाजार हिल गए।
  • ब्रिटेन में कारोबार कर रही कंपनियों ने अब बिजनेस करना उतना आसान नहीं होगा, उनका पैसा भी डूब सकता है।
  • पाउंड, यूरो और रुपया कमजोर होने से अमेरिकी डॉलर मजबूत होगा, यानी अमेरिका की दादागिरी बढ़ जाएगी।

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