लंदन: कोरोना वायरस के लिए टीका विकसित करने की तेज होती होड़ के बीच अमीर देश इन टीकों के लिए पहले से ही ऑर्डर दे रहे हैं और ऐसे में गरीब एवं विकासशील देशों को ये टीके मिल भी पाएंगे कि नहीं यह एक बड़ा सवाल बन गया है। संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस और रेड क्रेसेंट और अन्य संगठनों ने पिछले महीने कहा था कि यह नैतिक रूप से अनिवार्य है कि सभी लोगों तक टीका पहुंचे लेकिन किसी विस्तृत रणनीति के बिना, टीकों का सही आवंटन संभव नहीं है।
जिनेवा के मेडीसिन्स सैंस फ्रंटियर्स की एक वरिष्ठ कानूनी और नीति सलाहकार युआन क्यूओंग हू ने कहा, ‘‘हमारे पास, सभी तक टीका पहुंच रहा है, इसकी एक सुंदर तस्वीर तो है लेकिन यह कैसे होगा इसके लिए कोई रणनीति नहीं है।’’
इस महीने की शुरुआत में एक वैक्सीन शिखर सम्मेलन में घाना के राष्ट्रपति नाना अकुफो-अडो ने कहा था, ‘‘कोविड-19 के वैश्विक प्रसार ने हमें बता दिया है कि बीमारियों सीमाओं तक सीमित नहीं होती और कोई देश इससे अकेले नहीं निपट सकता। केवल टीका ही मानव को इस वायरस से बचा सकता है।’’
दुनियाभर में वायरस के लिए टीका बनाने की कोशिश जारी है लेकिन किसी को भी अगले साल से पहले इसके लिए लाइसेंस मिलने की उम्मीद नहीं है। फिर भी कई अमीर देशों ने इसके आने से पहले ही इसके लिए ओर्डर देना शुरू कर दिया है।
ब्रिटेन और अमेरिका इनमें लाखों डॉलर लगा चुके हैं और इसके बदले में दोनों देश चाहते हैं कि उन्हें प्राथमिकता दी जाए। यहां तक कि ब्रिटश सरकार तो घोषणा भी कर चुकी हैं कि टीके को मंजरी मिलने पर उसकी पहली तीन करोड़ खुराक (डोज) ब्रिटेन को दी जाएगी। कम्पनी ‘एस्ट्राजेनेका’ ने भी कम से कम 30 करोड़ खुराक अमेरिका को उपलब्ध कराने के लिए अनुबंध किया है।