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बड़े बांध बन रहे हैं अनेक प्रजातियों के विनाश की वजह

लंदन: स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ स्टर्लिग के एक अध्ययन में पाया गया है कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बनाए गए अभ्यारण्य इन्हें वनों की कटाई और शिकार से तो बचाते हैं, लेकिन बड़े बांधों

India TV News Desk
Published on: May 31, 2016 19:43 IST
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लंदन: स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ स्टर्लिग के एक अध्ययन में पाया गया है कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बनाए गए अभ्यारण्य इन्हें वनों की कटाई और शिकार से तो बचाते हैं, लेकिन बड़े बांधों के कारण बनने वाले ये संरक्षित जलीय द्वीप दुनिया भर में बड़े पैमाने पर कई प्रजातियों के नष्ट होने की वजह बन रहे हैं। मुख्य शोधार्थी इजाबेल जोन्स के मुताबिक, "हमने अपने अध्ययन के दौरान विभिन्न जलाशय द्वीपों में समय के साथ कई प्रजातियों में बहुत अधिक कमी पाई। इन द्वीपों में पास की मुख्य भूमि की तुलना में 35 फीसदी कम प्रजातियां पाई गईं। इन जलाशय द्वीपों के कारण दक्षिण अमेरिका में एक पक्षी समूह में 87 फीसदी प्रजाति कम हो गई है।"

200 से ज़्यादा बांधों की स्टडी की गई

जोन्स ने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बांध किस जगह पर स्थित है या फिर उसका आकार क्या है और वहां कौन-कौन सी प्रजातियां हैं। वहां प्रजातियों का निरंतर नुकसान होता है और अभी भी जितने बांध हैं, वहां ऐसा हो रहा है।" यह शोध बॉयोलॉजिकल कंजरवेशन नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने 200 से ज्यादा बांधों का अध्ययन किया जिसमें ब्राजील का बालबीना जलाशय और चीन की थाउसैंड आईलैंड लेक भी शामिल थे।

दुनिया भर में 50 हज़ार से भी ज़्यादा बड़े बांध

शोध के दौरान पक्षी, स्तनधारी, उभयचर, सरीसृप, अपृष्ठवंशी जानवर और पेड़-पौधों का अध्ययन किया गया। इनकी कई प्रजातियों में बांधों के असर से उल्लेखनीय कमी पाई गई। दुनिया भर 50,000 से भी ज्यादा बड़े बांध हैं। अमेजन बेसिन जैसे अत्यधिक जैविक विविधता वाले क्षेत्र में भी ये हैं। ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अभी कई बांधों की योजनाएं बनाई जा रही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जैविक प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे को देखते हुए काफी कुछ करने की जरूरत है।

बांधों के निर्माण के लिए लागू हों कड़े पर्यावरण नियम

सहशोधार्थी इंग्लैंड के नोरविच की ईस्ट एंगलिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्लोस पेरेस का कहना है, "प्रमुख पनबिजली परियोजनाओं के जीव-जन्तुओं पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए अलग से उष्टकटिबंधीय वनों का निर्माण किया जाता है, लेकिन यह एक मृगतृष्णा है। क्योंकि, इन कृत्रिम जलाशय द्वीपों में स्थलीय प्रजातियां व कई प्रजातियां फंस कर रह जाती हैं और धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती है। इसलिए हमें नई अवसंरचानओं के विकास के समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।" पेरेस कहते हैं, "इसलिए इन बांधों को बनाने की अनुमति देने से पहले कड़े पर्यावरण नियम लागू करने चाहिए।"

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