लंदन। लाखों लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बीच पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस से बचने के लिए वैक्सीन का इंतजार कर रही है। दुनियाभर की लगभग 35 फार्मा कंपनियां और संस्थाएं वैक्सीन बनाने में जुटी हुई हैं। चार कंपनियों ने अपने वैक्सीन का परीक्षण जानवरों पर शुरू भी कर दिया है।
साइंस जनरल ऑफ अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ एडवांसमेंट इन साइंस (एएएएस) ने बताया है कि बोस्टन की बायोटेक कंपनी मॉडर्ना थेरेप्यूटिक्स ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शन डिजीज के साथ मिलकर आंतरिक सेफ्टी ट्रायल के जरिये वैक्सीन बनाने में सबसे आगे है।
कंपनी ने कहा है कि उसकी योजना इस साल सितंबर तक स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को वैक्सीन का वितरण करने की है। मॉडर्ना ने अपने द्वारा विकसित टेक्नोलॉजी के बारे में थोड़ी ही जानकारी साझा की है। वैक्सीन बनाने की यह अभूतपूर्व रफ्तार चीन में सार्क-कोव-2 के जेनेटिक अनुक्रम का उपचार करने के कारण उपजी है, जो कोरोना वायरस का प्रमुख कारण है।
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चीन की मेडिकल अथॉरिटी ने बिना समय गंवाए जनवरी में ही रिसर्च ग्रुप के साथ इस वायरस की जानकारी साझा की थी। इस सहयोग की वजह से पूरी दुनिया की रिसर्च कंपनियों ने इस वायरस को जिंदा विकसित किया और यह अध्ययन किया कि कैसे यह वायरस मानव ऊतकों में प्रवेश करता है और उन्हें बीमार बनाता है।
गार्जियन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक मैरीलैंड स्थित नोवावैक्स नामक कंपनी ने कहा है कि उसने नया वैक्सीन बनाया है और उसके पास कई ऐसे उम्मीदवार भी हैं जो मानव परीक्षण के लिए स्वेच्छा से उसके पास आए हैं। वैश्विक नियमों के मुताबिक किसी भी नए वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल तीन अलग-अलग चरणों में किया जाना अनिवार्य है।
पहले चरण में वैक्सीन का परीक्षण कुछ दर्जन स्वस्थ स्वेच्छिक व्यक्तियों पर किया जाता है, जिससे इसके प्रतिकूल प्रभाव और सुरक्षा की जांच की जा सके। दूसरे चरण में ऐसे कई सैकड़ा लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया जाता है, जो महामारी प्रभावित दुनिया के हिस्सों में रहते हैं और इसमें देखा जाता है कि वैक्सीन कितना कारगर है।
तीसरे चरण में बीमारी से लड़ने में वैक्सीन की प्रभावशीलता जांचने के लिए इसका परीक्षण हजारों लोगों पर किया जाता है। मॉडर्ना सहित सभी कंपनियों को महामारी के लिए एक सफल वैक्सीन बनाने के लिए इन तीनों चरणों से गुजरना होगा।