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आर्थिक से लेकर राजनीतिक संकट तक, जब राष्ट्रपति तक देश छोड़कर भागे, जानें श्रीलंका के लिए कितना भारी साबित हुआ साल 2022

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका के लिए साल 2022 काफी मुश्किलों भरा रहा है। इस साल देश ने न केवल राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामना किया है, बल्कि यहां बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।

Written By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Updated on: December 22, 2022 15:46 IST
श्रीलंका के लिए मुश्किलों भरा रहा साल 2022- India TV Hindi
Image Source : AP श्रीलंका के लिए मुश्किलों भरा रहा साल 2022

पूरे साल उठा पटक झेलने के बाद श्रीलंका अब भी आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। वह इस वक्त राहत पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की ओर से 2.9 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज को मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। 1 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और श्रीलंकाई अधिकारियों ने लगभग 2.9 बिलियन अमेरिकी डालर की विस्तारित फंड सुविधा के तहत 48 महीने की व्यवस्था के साथ आर्थिक नीतियों का समर्थन करने के लिए एक स्टाफ-लेवल का समझौता किया है।

आईएमएफ का कहना है कि श्रीलंका को वित्तीय सहायता देने से पहले आधिकारिक लेनदारों से ऋण स्थिरता बहाल करने के लिए वित्तीय आश्वासन और निजी लेनदारों के साथ समझौते के लिए प्रयास करना जरूरी है। विशेष रूप से, श्रीलंका के मुख्य लेनदारों में जापान, चीन और भारत शामिल हैं।

 
आइए जानते हैं कि साल 2022 में श्रीलंका में वित्तीय संकट कैसे बढ़ता गया- 

श्रीलंका के स्थानीय मीडिया के अनुसार, देश में आर्थिक संकट "कई वर्षों के कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, अदूरदर्शी नीति निर्माण, और सुशासन की समग्र कमी" के कारण आया था। श्रीलंका के सेंट्रल बैंक में अपर्याप्त विदेशी भंडार और अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों तक पहुंच नहीं होने के कारण देश इतिहास में पहली बार कर्ज के कारण आर्थिक संकट में बुरी तरह फंस गया। इसके अलावा, अनियंत्रित बाहरी उधार, कर कटौती (जिससे बजट घाटा बढ़ा), रासायनिक उर्वरक के आयात पर प्रतिबंध और श्रीलंकाई रुपये का अचानक गिरना, कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से अर्थव्यवस्था चरमरा गई।

इसके साथ ही श्रीलंका में कोविड-19 की वजह से आर्थिक संकट और ज्यादा बढ़ गया। इस देश की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है, लेकिन कोरोना वायरस से बचाव के लिए लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से यहां पर्यटकों का आना बंद हो गया था। आर्थिक संकट कुछ इस कदर बढ़ा कि लोग सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर करने के लिए सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। जिसके चलते तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा था। श्रीलंका के प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन में काफी उतपात मचाया था। ऐसे हालातों के बीच राजपक्षे को देश छोड़कर अन्य देश में शरण लेनी पड़ी थी। तब देश में लोग खाने के सामान, ऊर्जा और अन्य जरूरी सामान की कमी का सामना कर रहे थे।

लोगों ने राष्ट्रपति से इस्तीफा मांगा

मार्च आते-आते बिजली कटौती बड़े स्तर पर बढ़ गई। लोगों ने राष्ट्रपति से इस्तीफा देने की मांग की। उन्होंने सरकार के खिलाफ खूब नारेबाजी की, जिसके चलते उनके आवास के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। लोगों ने रहन-सहन, गैस और ईंधन की कमी और लंबी बिजली कटौती के चलते विरोध प्रदर्शन करना जारी रखा। 3 अप्रैल को तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को छोड़ 26 मंत्रियों की पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया था। संसद में स्थिरता बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने 5 अप्रैल को चार मंत्रियों की नियुक्ति की। हालांकि बाद में देश ने आर्थिक राहत पाने के लिए आईएमएफ का रुख किया।  
  
18 अप्रैल को तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने 17 कैबिनेट मंत्रियों की नियुक्ति की। 9 मई आते-आते सरकार समर्थक और विरोधियों के बीच कोलंबो समेत देश के अन्य हिस्सों में झड़प शुरू हो गई। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के समर्थक के रूप में अपनी पहचान बताने वाले सैकड़ों लोग 9 मई को कोलंबो में बस से पहुंचे थे और गॉल फेस ग्रीन की ओर बढ़े, जहां सरकार के इस्तीफे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी कई हफ्तों से डेरा डाले हुए थे। 9 मई को, श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने उनके इस्तीफे की मांग को जारी रखा था। इसके बाद श्रीलंकाई सरकार ने कोलंबो और श्रीलंका के अन्य हिस्सों में विरोध समूहों के बीच झड़पों को रोकने के लिए देशव्यापी कर्फ्यू की घोषणा की।

रानिल विक्रमसिंघे ने ली थी शपथ

13 मई को, रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा श्रीलंका के 26वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। 9 जून को, संयुक्त राष्ट्र ने जीवन-रक्षक सहायता प्रदान करने के लिए 47.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की अपील की। 20 जून को, श्रीलंका के बिजली और ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकरा ने लोगों से गैर-जरूरी यात्रा को प्रतिबंधित करने और 23 जून तक अगले कुछ दिनों में पेट्रोल नहीं भरवाने का आह्वान किया। विजेसेकेरा ने आगे कहा कि उन्हें एक पेट्रोल टैंकर के पहुंचने की उम्मीद है। 23 जून को और एक डीजल टैंकर 24 जून को पहुंचने की बात कही गई।

9 जुलाई को कोलंबो में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सरकारी आवास में प्रदर्शनकारियों के घुसने के बाद वह अपने आवास से भाग गए। सोशल मीडिया पर शेयर वीडियो और तस्वीरों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों को स्विमिंग पूल में डुबकी लगाते हुए देखा जा सकता था। वह रसोई और बेडरूम में भी देखे गए। अपनी पत्नी और सुरक्षा अधिकारियों के साथ गोटबाया राजपक्षे देश से भाग गए और 13 जुलाई को मालदीव पहुंचे। श्रीलंका में उनके खिलाफ विरोध के बीच वह 14 जुलाई को सिंगापुर चले गए थे।

गोटबाया राजपक्षे ने दिया इस्तीफा

15 जुलाई को, श्रीलंका के संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अबेवर्धने ने घोषणा की कि उन्हें राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का इस्तीफा मिल गया है। गोटबाया राजपक्षे द्वारा इस्तीफा देने के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने 18 जुलाई को श्रीलंका में आपातकाल की स्थिति घोषित की। 21 जुलाई को निर्वाचित राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के 8वें कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। 20 जुलाई को आयोजित संसदीय वोट जीतने के बाद वह श्रीलंका के राष्ट्रपति बने।

2021 के अंत में, श्रीलंका का कुल ऋण 36 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था। श्रीलंका को चीन को 7.1 अरब डॉलर का भुगतान करना है। कुल सार्वजनिक ऋण, जो दिसंबर 2021 के अंत में जीडीपी का 115.3 प्रतिशत था, जून 2022 के अंत तक जीडीपी के 143.7 प्रतिशत तक पहुंच गया था। 1 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अधिकारी और श्रीलंकाई अधिकारी एक स्टाफ-लेवल के समझौते पर पहुंचे। 14 सितंबर को श्रीलंका के प्लांटेशन इंडस्ट्रीज के मंत्री रमेश पथिराना ने कहा कि सरकार ने देश के मुख्य लेनदारों से संपर्क किया है, जिसमें जापान, चीन और भारत शामिल हैं। पथिराना ने कहा कि सरकार शीघ्र ही अन्य लेनदारों के साथ बातचीत शुरू करने की योजना बना रही है।

आईएमएफ ने सहायता देने की बात कही

इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने 9 दिसंबर को चीन में आयोजित सातवें "1 6" गोलमेज सम्मेलन के समापन पर जारी एक बयान में कहा, "हमारे बीच जी-20 कॉमन फ्रेमवर्क और कुछ विशिष्ट मामलों पर उपयोगी आदान-प्रदान हुआ है।" इस दौरान उन्होंने श्रीलंका को ऋण देने की बात कही। बैठक में क्रिस्टालिना जॉर्जीवा, चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग, विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष डेविड मलपास, विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक न्गोजी ओकोन्जो-इवेला और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ हौंगबो ने हिस्सा लिया।

बैठक में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के महासचिव मैथियास कोरमन और वित्तीय स्थिरता बोर्ड के अध्यक्ष क्लास नॉट ने भी हिस्सा लिया। न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, अगर श्रीलंका दिसंबर में आईएमएफ से ऋण लेने में विफल रहता है, तो उसे अपनी अर्थव्यवस्था और नीतियों के संबंध में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।

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