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World Hindi Day: UN में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था पहली बार हिंदी में भाषण, जानें क्या कहा था

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न और विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र के मंच पर 1977 में हिंदी में भाषण दिया था। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय नेता थे।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Jan 10, 2025 7:43 IST, Updated : Jan 10, 2025 8:00 IST
अटल बिहारी वाजपेई, बतौर विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में संबोधन देते हुए (प्रतीकात्मक फाइल
Image Source : INDIA TV अटल बिहारी वाजपेई, बतौर विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में संबोधन देते हुए (प्रतीकात्मक फाइल)

नई दिल्लीः पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में सबसे पहले हिंदी में भाषण देने वाले प्रथम भारतीय थे। उन्होंने वर्ष 1977 में यूएन के मंच पर हिंदी भाषा में भाषण देकर मां इसका मान बढ़ाया था। 4 अक्तूबर 1977 को संयुक्त राष्ट्र के 32वें सत्र के मौके पर पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी में भाषण देकर करोड़ों भारतीयों का दिल जीत लिया था। उस वक्त देश में तीसरे मोर्चे की सरकार थी और वह भारत के विदेश मंत्री थे। 

अटल बिहारी वाजपेयी के इस भाषण के बाद संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने खड़े होकर तालियां बजाई थी। अटल भारत के पहले गैर-कांग्रेसी विदेश मंत्री भी थे। उन्होंने तय कर लिया था कि अपनी मातृभाषा में ही राष्ट्रों के इस सम्मेलन को संबोधित करना है। वह पहली बार इतने बड़े मंच पर किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। मगर अपनी भाषा और वाणी से उन्होंने दुनिया का दिल जीत लिया था।

संयुक्त राष्ट्र में क्या बोले थे अटल

भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री वाजपेयी ने अपने भाषण में कई वैश्विक मुद्दों को समाहित किया था। इसमें दक्षिण अफ्रीका में उभरते नस्लभेद का मुद्दा, साइप्रस की जंग, नामीबिया की अस्थिरता और जिंबाब्बे का उपनिवेशवाद शामिल था। अपने संबोधन में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ में फिर भारत की दृढ़ आस्था को व्यक्त करना चाहते हैं। अभी हमारी तीसरे मोर्चे की जनता सरकार को सत्ता संभाले सिर्फ 6 महीने हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में ही हमारी उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं। भारत में मूलभूत मानवाधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं। जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था, वह अब दूर हो गया है। अब ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि लोकतंत्र और मूलभूत आजादी का दोबारा कभी उल्लंघन नहीं हो। भारत की जनता शांतिपूर्ण तरीके से एक सामाजिक आर्थिक क्रांति लाना चाहती है, जो लोकतांत्रिक रूप से जगमग हो, समाजवादी आदर्शों के साथ नैतिक और आध्यात्मिक विचारों पर आधारित हो। 

दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेद और फिलिस्तीन पर रखा अहम मत

उन्होंने इस दौरान दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेद पर बोलते हुए कहा- क्या हम पूरे मानव समाज यानि वस्तुतः नर-नारी व बच्चों के लिए न्याय और गरिमा का आश्वासन देने के लिए प्रयत्नशील हैं, अफ्रीका में चुनौती स्पष्ट है। सवाल यह है कि क्या जनता को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ रहने का अधिकार है या रंगभेद और नस्लभेद में विश्वास रखने वाला अल्पमत किसी विशाल बहुमत पर हमेशा अन्याय और दमन करता रहेगा? उन्होंने फिलिस्तीन के मुद्दे पर कहा कि जो वहां के लाखों लोगों को जबरदस्ती उनके घर-बार से बेदखल किया गया है, उनको अपने घर लौटने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि हाल ही में इजरायल ने जो वेस्ट बैंक और गाजा में बस्तियां बसाकर अधिकृत क्षेत्रों में जनसंख्या परिवर्तन करने का प्रयास किया है, संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि उसे पूरी तरह से अस्वीकार और रद्द कर दे। अगर इन समस्याओं का शीघ्र समाधान नहीं होता तो इसके दुष्परिणाम बाहर तक फैल सकते हैं। 

समस्त तु वसुधैव कुटुंबकम की भावना से कराया परिचित

तत्कालीन विदेश मंत्री वाजपेयी ने दुनिया को संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान भारत की पूरी दुनिया को अपना परिवार मानने की सोच से भी परिचित कराया। उन्होंने कहा भारत सदा इस बात में भरोसा करता रहा है कि उसके लिए पूरी दुनिया एक परिवार है। हमारे देश में वसुधैव कुटंबकम की यह परिकल्पना बेहद पुरानी है। अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद यूएन के रूप में इस सपने के साकार होने की संभावना है, जिसके सदस्य लगभग पूरी दुनिया से आते हैं। 

भारत सभी से मैत्री चाहता है

उन्होंने कहा भारत सभी देशों से मैत्री चाहता है। किसी पर अपना प्रभुत्व नहीं स्थापित करना चाहता। वह न तो परमाणु शक्ति है और न ही बनना चाहता है। अपने संबोधन के आखिरी में कहा- मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति, मानव कल्याण और उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। जय जगत...धन्यवाद।

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