Highlights
- तालिबान के साथ TTP के संबंध मजबूत बने हुए हैं भले ही वह इसे जाहिर न करते हों।
- TTP सरगना नूर अली अक्सर तालिबान की तारीफ में कसीदे पढ़ता रहता है।
- नूर अली ने यह भी कहा है कि TTP का आखिरी मकसद पाकिस्तान में शरिया लागू करना है।
काबुल/इस्लामाबाद: तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और उसके नेता भले ही आमतौर पर अंडरग्राउंड रहते हैं, लेकिन वह कैडरों की भर्ती के संभावित क्षेत्रों में अपनी छवि को मजबूत करने और नैरेटिव बनाने में लगातार लगा हुआ है। TTP मीडिया ने 8 दिसंबर को पश्तो में 52 मिनट का एक वीडियो जारी किया, जिसमें TTP का सरगना नूर अली महसूद को अपने सहयोगियों के साथ पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के मलकंद, बाजौर, मर्दन, पेशावर, खैबर, दारा आदमखेल और हजारा सहित विभिन्न जिलों का दौरा करते हुए देखा जा सकता है। खास बात यह है कि इस वीडियो के सबटाइटल उर्दू में थे।
अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान के साथ TTP का जुड़ाव काफी गहरा रहा है। तालिबान के साथ TTP के संबंध मजबूत बने हुए हैं भले ही वह इसे जाहिर न करते हों। TTP सरगना नूर अली अक्सर तालिबान की तारीफ में कसीदे पढ़ता रहता है। उसने कई मौकों पर यह भी कहा है कि उसका संगठन 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' (तालिबान) की एक ब्रांच है। उसने आगे कहा कि TTP वह सारे काम करेगा जिससे अफगानिस्तान में तालिबान को मजबूत किया जा सकता है। नूर अली ने यह भी कहा है कि TTP का आखिरी मकसद पाकिस्तान में शरिया लागू करना है और वे अंतिम दम तक इसके लिए लड़ेंगे।
प्रधानमंत्री इमरान खान के इस बयान पर कि पाकिस्तान TTP की तरफ से हमले का सामना कर रहा है, संगठन ने अपना रुख साफ किया है। तालिबान के साथ किसी भी गलतफहमी को रोकने के लिए TTP नेता नूर अली ने कहा था कि उसका संगठन पाकिस्तान के बाहर गतिविधियों का संचालन करने में दिलचस्पी नहीं रखता है। इस तरह नूर ने साफ कर दिया कि TTP पाकिस्तान के भीतर से ही पाकिस्तान के ठिकानों पर हमले कर रहे हैं। TTP सरगना ने दावा किया कि अतीत में गुटों के बीच विवादों के कारण संगठन कमजोर हो गया था और इसलिए उसने एकजुटता की भी अपील की।
TTP तालिबान को दोनों के बीच घनिष्ठ सहयोग की याद दिलाने का अवसर भी नहीं गंवा रहा है। टीटीपी अक्सर अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियों में उनके योगदान पर बयान देता रहता है। अफगानिस्तान में संघर्ष में टीटीपी के योगदान की सराहना करते हुए नूर अली ने यह भी जिक्र किया है कि स्वात घाटी से 10,000 से अधिक लड़ाके और महसूद जनजाति के लगभग 18,000 लोग, जिनमें 1,000 से अधिक आत्मघाती हमलावर शामिल थे, तालिबान की मदद के लिए अफगानिस्तान गए थे।
तालिबान के साथ TTP के रिश्ते मजबूत हैं और दोनों पक्षों के बीच अलग-अलग बैक चैनल काम कर रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान को अब लगने लगा है कि तालिबान के साथ TTP के रिश्ते को देखते हुए आगे काफी चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं। इनमें पाकिस्तान के लिए टीटीपी की गतिविधियों को नियंत्रित करना भी शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर तालिबान के भीतर के तत्व, अमेरिका और उसके पहले सोवियत संघ के खिलाफ अपनी जीत से उत्साहित हैं, और इसीलिए वे शायद पूरी तरह से पाकिस्तान के अधीन नहीं रहना चाहते हैं। (IANS)