Highlights
- इसी साल फरवरी में बीजिंग के दौरे पर गए थे
- रूस जीत से काफी दुर चला गया है
- रूस की हार से जिनपिंग काफी परेशान लग रहे हैं
Sco Summit 2022: रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 6 महीने से युद्ध चल रहा है। इसी युद्ध के दौरान कई ऐसी खबरें सामने आ रही है, जहां रूस कई जगहों पर हार का सामना करने पर मजबुर है। इस युद्ध के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उज्बेकिस्तान में अपनी कदम रख दिया है। पुतिन शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन में गए हैं। इस सम्मलेन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी यहां पहुंच चुके हैं। महामारी के बाद जिनपिंग दो साल बाद किसी विदेशी दौरे पर गए हैं।
चीन और रूस के दोनों नेता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई नियमों का पालन नहीं किया है। इसके आलावा पुतिन और जिनपिंग दोनों अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नए समूह की नींव रखना चाहते हैं। शुरु से ही दोनों नेता नाटो का विरोध करते आ रहे हैं। अब रूस के हार से जिनपिंग भी काफी परेशान लग रहे हैं। दुनिया के सामने अपनी पीड़ा नहीं खुलकर बता रहे हैं लेकिन कही ना कही ये सच है कि जिनपिंग के लिए रूस गले का हड्डी बन गया है।
दुनिया के सामने कुछ और
रूसी राष्ट्रपति पुतिन इसी साल फरवरी में बीजिंग के दौरे पर गए थे, जहां उनकी स्वागत काफी गर्मजोशी के साथ की गई थी। फिर 7 महीने के बाद दोनों नेता मिल रहे हैं। आपको बता दें कि यूक्रेन वार से तीन हफ्ते पहले चीन ने शीत ओलंपिक की मेजबानी की थी। पुतिन का दौरा काफी गोपनीय रखा गया था। उस दौरे का मुद्दा क्या था आज तक दुनिया के सामने नहीं आया। हालांकि औपचारिकता के तौर 5000 शब्दों के संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने एक ऐसी दोस्ती की घोषणा की जिसकी कोई सीमा नहीं है। इसके साथ ही दोनों ने अमेरिका और उसे जुड़ी समस्यों को लेकर चर्चा की गई। वहीं दोनों के संयुक्त बयान में दोनों कहा कि 'दुनिया एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। साथ ही वैश्विक शासन के ढांचे को भी बदलने की जरूरत है।
चीन खुलकर क्यों नहीं कर सकता है मदद
अब जिनपिंग यूक्रेन की जीत को पचा नहीं पा रहे हैं, अगर बात करें तो रूस जीत से काफी दुर चला गया है और रूसी सेना अपने हाथ खड़े कर रहे हैं। सेना का मनोबल गिरा है, साथ ही कई जगह से सैनिक सामने से भाग रहे हैं। हाल ही कई जगहों पर यूक्रेनी सैनिकों ने रूस के कब्जे से कई शहरों को मुक्त कराया है। इसी बात जिनपिंगि काफी डर गए हैं। जिनपिंग के नेतृत्व में रूस के करीब होने का मतलब है कि युद्ध के परिणाम में चीन का सीधा हिस्सा था। ऐसे समय में जब अमेरिका के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता बढ़ती जा रही है। एक कमजोर रूस अमेरिका के लिए भी बेकार हो गया है। इसलिए अमेरिका का पूरा फोकस चीन पर ही हो जाएगा।
जिनपिंग इसे समझते हैं। वह जानते हैं कि अगर वह रूस की मदद के लिए आगे आता है तो पश्चिमी देश चीन पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। इसके साथ ही आपको कूटनीतिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ेगा। इसका सीधा असर जिनपिंग के नेतृत्व पर पड़ेगा। उनकी नजर अक्टूबर में होने वाली 20वीं पार्टी कांग्रेस में तीसरे कार्यकाल पर है और अगर समीकरण बिगड़े तो उनकी कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है।