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कर्ज में डूबे पाकिस्तान को लोन देने से क्यों जी चुरा रहा IMF, पीएम शहबाज को किस बात का है डर, जानें पूरा मामला

कर्ज के लिए आईएमएफ ने कई शर्तें पाकिस्तान पर लाद दी हैं। जिसे स्वीकार करना पाकिस्तान के लिए आर्थिक रूप से बहुत मुश्किलभरा होगा। इस बात को लेकर पाक पीएम शहबाज शरीफ को भी बड़ा डर सता रहा है।

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published : Feb 05, 2023 8:09 IST, Updated : Feb 05, 2023 14:53 IST
शहबाज शरीफ, प्रधानामंत्री पाकिस्तान
Image Source : FILE शहबाज शरीफ, प्रधानामंत्री पाकिस्तान

Pakistan: पाकिस्तान की कंगाली हालत दुनिया में किसी से छिपी नहीं है। कर्ज के जाल में वह  पूरी तरह जकड़ चुका है। देश को चलाने में भी बड़ी दिक्कतें आ रही हैं। पेट्रोलियम उत्पाद, बिजली, खाने के लिए आटा आम पाकिस्तानी की पहुंच से दूर हो गया है। कर्ज के पहाड़ के आगे पाकिस्तान बेबस और असहाय हो गया है। उसे थोड़ी राहत तभी मिल सकती है, जब आईएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष उसे लोन दे दे। लेकिन आईएमएफ भी पाकिस्तान को कर्ज देने में ना नुकुर कर रहा है। कर्ज के लिए आईएमएफ ने कई शर्तें पाकिस्तान पर लाद दी हैं। जिसे स्वीकार करना पाकिस्तान के लिए आर्थिक रूप से बहुत मुश्किलभरा होगा। इस बात को लेकर पाक पीएम शहबाज शरीफ को भी बड़ा डर सता रहा है। 

कर्ज में डूबे पाकिस्तान को अब आईएमएफ से उम्मीदें हैं। लेकिन आईएमएफ की शर्तें पाकिस्तानी की मुसीबत को और बढ़ा रही हैं। इसी बात का डर शहबाज शरीफ को सता रहा है। दरअसल, पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा हे कि उनकी सरकार को अंतराष्‍ट्रीय मुद्राकोष (IMF) की उन शर्तों को मानना ही पड़ेगा, जो काफी मुश्किल हैं। शरीफ की मानें तो बेलआउट पैकेज के लिए ऐसा करना उनकी मजबूरी हैं। मगर आईएमएफ हर बार पाकिस्‍तान को कोई न कोई बहाना देकर टाल देता है। हाल ही में आईएमएफ का एक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्‍तान पहुंचा और आखिरी मौके पर उसने बातचीत से इनकार कर दिया। कई महीनों से रुकी बातचीत में फैसला होना था कि इस मुल्‍क को राहत मिलेगी या नहीं। लेकिन ऐसा न हो सका।

पाकिस्‍तान का खराब इतिहास बन रहा परेशानी का सबब

अंतरराष्‍ट्रीय वित्‍तीय सहायता पर पाकिस्‍तान का जो इतिहास रहा है, उसकी वजह से अब आईएमएफ इस देश से मुंह चुराने लगा है। बांग्‍लादेश को भी कर्ज मिल गया और अगले कुछ दिनों में हो सकता है कि श्रीलंका को भी राहत का ऐलान हो जाए। मगर भारत के पड़ोस में स्थित इस मुल्‍क के लिए आईएमएफ का दिल पसीज ही नहीं रहा है। पाकिस्‍तान सन् 1950 में आईएमएफ का सदस्‍य बना था। उस समय इसकी अर्थव्‍यवस्‍था काफी अनिश्चित थी और देश सिर्फ आयात पर ही निर्भर था। तब से लेकर अब तक इस देश ने 22 बार आईएमएफ के सामने कटोरा लेकर गिड़गिड़ाया है।

आईएमएफ की शर्तें मानने से पीएम शहबाज को क्या है परेशानी?

आईएमएफ ने सरकार के सामने शर्त रख दी है कि वह देश में करों को बढ़ाए और राहत को खत्‍म कर दे। मगर शहबाज को इस बात का डर है कि अक्‍टूबर में होने वाले चुनावों से पहले कहीं आईएमएफ की वजह से उनकी लुटिया ही न डूब जाए। आईएमएफ चाहता है कि बिजली उपभोक्‍ताओं को जो छूट दी गई है, उसे खत्‍म कर दिया जाए। जो लोग 300 यूनिट के अंदर बिजली का प्रयोग कर रहे हैं, उन्‍हें कोई राहत न दी जाए। देश के 88 फीसदी उपभोक्‍ता इतनी ही बिजली प्रयोग कर रहे हैं। बिजली महंगी होने से सबसे ज्‍यादा असर गरीबों पर पड़ेगा। आईएमएफ पेट्रोल-डीजल की कीमतों में भी इजाफा चाहता है। देश में महंगाई 48 सालों में सबसे ज्‍यादा स्‍तर पर है। पाकिस्‍तान की आर्थिक स्थिति यहां पर मौजूद राजनीतिक अस्थिरता की वजह से और खराब हो गई है।

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