Highlights
- श्रीलंका में राष्ट्रपति के भागने के बाद इमरजेंसी लगी
- भारत में भी तीन बार इमरजेंसी लग चुकी है
- इमरजेंसी में सरकार के पास असीमित शक्तियां आ जाती हैं
State of Emergency: श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के देश छोड़कर मालदीव भागने के बाद बुधवार को इमरजेंसी की घोषणा की गई है। राजपक्षे देश की अर्थव्यवस्था को न संभाल पाने के कारण अपने और अपने परिवार के खिलाफ बढ़ते जन आक्रोश के बीच गए हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय ने मीडिया संगठनों को बताया कि देश में इमरजेंसी लागू की गई है। इससे पहले भी श्रीलंका में भारी प्रदर्शनों को देखते हुए कई बार इमरजेंसी लागू की गई है। इमरजेंसी को लेकर अकसर लोगों के मन में तमाम तरह के सवाल उठते हैं, कि आखिर ये होती क्या है? इस दौरान किसके पास क्या अधिकार होते हैं? क्या सरकार इस दौरान कुछ भी कर सकती है? तो चलिए आपके मन में उठ रहे इन्हीं सवालों का आज जवाब जानते हैं।
इमरजेंसी क्या होती है?
इमरजेंसी या आपातकाल का मतलब संकट या विपत्ति के समय को कहा जाता है। सरकारें इस दौरान वो नीतियां लागू कर सकती है, जो आमतौर पर लागू नहीं होतीं। इसके पीछे का उद्देश्य नागरिकों की सुरक्षा करना होता है। सरकार इमरजेंसी की घोषणा प्राकृतिक आपदा, नागरिक संघर्ष, सैन्य संघर्ष, महामारी, या अन्य खतरे को देखते हुए कर सकती है। अपने देश के संदर्भ में बात करें, तो भारतीय संविधान में भी ऐसा प्रावधान है, जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से खतरे की आशंका होती है। इस दौरान सत्ता की कमान प्रधानमंत्री के हाथों में आ जाती है। यानी अगर राष्ट्रपति को लगे कि देश पर किसी तरह का खतरा है, तो वह इमरजेंसी लागू कर सकता है।
भारतीय संविधान में इमरजेंसी का जो प्रावधान है, उसे देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे जैसी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इस दौरान सरकार बिना रोक टोक के गंभीर फैसले ले सकती है। अगर देश पर किसी अन्य देश के हमले का खतरा हो या कोई देश हमला ही कर दे, तो संविधान फैसले लेने के लिए सरकार को अधिक शक्तियां प्रदान करता है। लेकिन सामान्य स्थिति में सरकार को संसद में बिल पास कराना पड़ता है। और लोकतंत्र का पूरी तरह पालन करना होता है। हालांकि इमरजेंसी के समय सरकार अपनी तरफ से कोई भी फैसला ले सकती है।
इमरजेंसी में अंतरराष्ट्रीय कानून
अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, अगर कोई देश इमरजेंसी लागू करता है, तो स्थिति और सरकार की नीतियों के आधार पर लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता को निलंबित किया जा सकता है।
इमरजेंसी तीन तरह की होती है
नेशनल इमरजेंसी या राष्ट्रीय आपातकाल
स्टेट इमरजेंसी या राष्ट्रपति शासन
इकनॉमिक इमरजेंसी या आर्थिक आपातकाल
भारत के संविधान में तीन तरह के आपातकाल का जिक्र है। चलिए अब इनके बारे में विस्तार से जान लेते हैं-
नेशनल इमरजेंसी- देश में नेशनल इमरजेंसी का ऐलान युद्ध, बाहरी हमले और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर किया जा सकता है। इस दौरान सरकार के पास असीमित अधिकार आ जाते हैं, जिनका वह जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि आम नागरिकों से उनके अधिकार छीन लिए जाते हैं। नेशनल इमरजेंसी को राष्ट्रपति कैबिनेट की सिफारिश पर लागू कर सकता है। नेशनल इमरजेंसी के समय संविधान में मौजूद मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 निलंबित हो जाता है। हालांकि अनुच्छेद 20 और 21 बने रहते हैं।
स्टेट इमरजेंसी- इसे राष्ट्रपति शासन भी कहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राजनीतिक संकट को देखते हुए राष्ट्रपति राज्य में आपात स्थिति का ऐलान कर सकते हैं। अगर किसी राज्य की राजनीतिक या संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाए, या वह केंद्र की कार्यपालिका के निर्देशों का पालन ना करे, तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। न्यायिक कार्यों के अलावा केंद्र राज्य प्रशासन के सभी अधिकारों को अपने हाथ में ले लेता है। इसकी सीमा 2 महीने से लेकर 3 साल तक हो सकती है। आम शब्दों में कहें, तो अगर राज्य सरकार संविधान के मुताबिक सरकार नहीं चला पातीं, तब केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति इमरजेंसी का ऐलान कर देते हैं।
इकनॉमिक इमरजेंसी- संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत जब देश में आर्थिक संकट आता है, जिससे देश के वित्तीय स्थायित्व और साख को खतरा रहता है, तो इकनॉमिक इमरजेंसी लागू की जाती है। जब देश दिवालिया होने की कगार पर हो, तब इस इमरजेंसी को लगाया जा सकता है, जिसमें नागरिकों के पैसे और संपत्ति पर देश का अधिकार हो जाता है। भारत में इकनॉमिक इमरजेंसी को छोड़कर बाकी दोनों तरह की इमरजेंसी लागू हो चुकी है।
कई देशों में लागू हुई इमरजेंसी
भारत
भारत में राष्ट्रीय इमरजेंसी की स्थिति में नागरिकों के कई मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है। हालांकि जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता है। जनवरी 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाई गई इमरजेंसी आज तक विवादों में है क्योंकि तब सरकार ने बंदी प्रत्यक्षीकरण को समाप्त करके जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को भी निलंबित कर दिया था। सरकार स्थिति को देखते हुए नीतियां लागू कर सकती है। जिसके लिए संसद की मंजूरी नहीं लेनी होती। साथ ही बडे़ फैसले लिए जा सकते हैं।
भारत में तीन बार आपातकाल लगा है-
पहली इमरजेंसी- इसे 1962 में भारत चीन युद्ध के समय लागू किया गया था।
दूसरी इमरजेंसी- दूसरी बार इमरजेंसी पाकिस्तान युद्ध की वजह से 1971 में लगी।
तीसरी इमरजेंसी- तीसरी बार आंतरिक अशांति के कारण 1975 में इमरजेंसी लगी।
पाकिस्तान
पाकिस्तान में आपात स्थिति का ऐलान पांच बार हुआ है।
1958- राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने इमरजेंसी लागू की
1969- राष्ट्रपति जनरल याह्या खान ने इमरजेंसी लागू की
1977- राष्ट्रपति जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हकी ने इमरजेंसी लागू की
1998- राष्ट्रपति मुहम्मद रफीक तरारी द्वारा इमरजेंसी लागू की गई
2007- राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने इमरजेंसी लागू की
पहली तीन इमरजेंसी में मार्शल लॉ लागू हुआ। देश की कमान सेना ने अपने हाथों में ले ली थी।
फिलीपींस
फिलीपींस में कई तरह की इमरजेंसी लागू हुई है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान (1941), मार्शल लॉ छह बार (1896, 1898, 1944-45, 1972-1981, 2009, 2017-2019)
इन इमरजेंसी को कम से कम एक बार लागू किया गया है। विद्रोह की स्थिति (2003), स्टेट ऑफ इमरजेंसी (2006 और 2016), स्टेट ऑफ पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी (2020), आपदा से जुड़ी इमरजेंसी (2020-21)।
नाइजीरिया
यहां नागरिक संघर्ष के चलते इमरजेंसी लागू की जाती है। हाल के हफ्तों में आतंकी संगठन बोको हराम के चलते कई आतंकी हमले हुए हैं, जिसके कारण इमरजेंसी लागू करनी पड़ी है। इमरजेंसी 2013 में लागू हुई। फिर देश के कुछ हिस्सों में 2011 में लागू हुई।
मालदीव
सुनामी और भूकंप के बाद 2004 में इमरजेंसी लागू की गई थी। फिर 5 फरवरी 2018 को मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 15 दिनों के लिए इमरजेंसी घोषित की थी और सुरक्षा बलों को मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय में जाने का आदेश दिया और पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम और मालदीव के मुख्य न्यायाधीश को गिरफ्तार करवा लिया।
हंगरी
हंगरी में सशस्त्र विद्रोह या प्राकृतिक या आर्थिक आपदा में इमरजेंसी का ऐलान हो सकता है, जो 30 दिन तक रहती है। इसे बढ़ाया भी जा सकता है। नागरिकों के अधिकतर अधिकार निलंबित हो जाते हैं। हालांकि जीवन जीने और आजादी का अधिकार बचा रहता है। संसद को भंग नहीं किया जा सकता है। यहां कोरोना वायरस महामारी और रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से इमरजेंसी लागू हुई है।
आंकड़े बताते हैं कि साल 1985 से लेकर 2014 तक कम से कम 137 देशों ने कम से कम एक बार इमरजेंसी लगाई है।