बगदादः इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर 148 लोगों की निर्मम हत्या समेत कई अन्य मामलों में मुकदमा चलाकर उन्हें 30 दिसंबर 2006 को आज ही के दिन फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। यह वह दौर था जब इराक का प्रभुत्व मिडिल ईस्ट में बढ़ने लगा था। इराक ने 1980 में ईरान और फिर 1990 में कुवैत को हराने के बाद सऊदी अरब की सीमा पर भी सैनिकों की तैनाती कर दी थी। सद्दाम लगातार विनाश के हथियारों को बढ़ाते जा रहे थे। यही वजह थी कि अमेरिका ने पहले तो सद्दाम का समर्थन किया था। मगर बाद में वही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया। आखिरकार अमेरिका ने मार्च 2003 में इराक पर हमला कर दिया।
सद्दाम हुसैन ने परमाणु हथियारों समेत, मिसाइलों, रासायनिक हथियारों की खेप को बढ़ाते जा रहे थे। इराक मीडिल ईस्ट में सबसे ताकतवर देश बन चुका था। पहले इराक ने 1980 में ईरान पर हमला करके उसे परास्त कर दिया था। हालांकि यह युद्ध 8 साल तक चला और 1988 में जाकर समाप्त हुआ। इसके बाद करीब दो दशक से इराक की सत्ता पर काबिज सद्दाम हुसैन का हौसल और बढ़ गया तो उन्होंने तेल के दाम बढ़ाने को लेकर कुवैत पर हमला कर दिया और उसे इराक का 19वां राज्य घोषित कर दिया। इससे अमेरिका भी टेंशन में आ गया।
अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने बनाया दबाव
अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने पहले इराक पर कुवैत से अपना कब्जा हटाने और सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा, लेकिन सद्दाम नहीं माने। इसके बाद अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र से इराक के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की अनुमति मांगी। मगर कई देश इस बंट गए तो संयुक्त राष्ट्र भी इस पर आगे नहीं बढ़ सकता। लिहाजा अमेरिका ने खुद से ब्रिटेन जैसे देशों को इराक पर हमले के लिए तैयार करना शुरू किया। अमेरिका इराक के बढ़ते सामूहिक विनाश के हथियारों को पूरी दुनिया के लिए खतरा मानने लगा था। इसके बाद कई देशों के समर्थन के बाद अमेरिका ने मार्च 2003 में इराक पर हमला कर दिया।
30 दिसंबर 2006 को सद्दाम को दी गई फांसी
अमेरिका ने हमला करके सद्दाम की सरकार को गिरा दिया। मगर सद्दाम तब भाग निकले। कई महीनों बाद अमेरिकी सैनिकों ने उन्हें 13 दिसंबर 2003 को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद उन पर 148 लोगों की निर्मम हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया। बाद में 30 दिसंबर 2006 को उनको फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया। इसके बाद इराक में अमेरिका के समर्थन वाली सरकार बनाई गई।
18 वर्षों बाद इराक में क्या बदला
इराक में साल 2022 में चुनाव के बाद अब्दुल लतीफ़ रशीद राष्ट्रपति बने। वहीं मोहम्मद शिया अल सुदानी को प्रधानमंत्री चुना गया। इसके बाद दोनों नेताओं ने इराक में हालात के स्थिर होने का दावा किया। मगर यह देश अभी भी अस्थिरता का शिकार है। यहां आतंकवादी गतिविधियां और बम धमाके आम बात हैं। गत वर्ष अंतरराष्ट्रीय मीडिया के एक सर्वे में यहां के 60 फीसदी लोगों ने माना की सद्दाम हुसैन की हत्या के बाद इराक के हालात बद से बदतर हुए हैं। जबकि 40 फीसदी लोगों का मानना था कि इराक की स्थिति पहले से सुधरी है।
तुर्की कर रहा इराक पर हमले
इस दौरान तुर्की इराक पर हमले कर रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने यह अभियान इराक में कुर्द वर्कर्स पार्टी और सीरिया में कुर्द पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स के खिलाफ शुरू किया है। यह सभी चरमपंथी आतंकवादी समूह हैं। तुर्की ने इन दोनों समूहों के कई लड़ाकों को बमबारी में ढेर कर दिया है। बता दें कि कुर्द सशस्त्र वर्कर्स पार्टी समूह ने तुर्की के खिलाफ विद्रोह छेड़ रखा है। वह तुर्की शासन के खिलाफ संघर्ष छेड़े है। इससे मिडिल ईस्ट में एक नई जंग शुरू हो गई है।