Highlights
- बाइडेन के बयान से पाकिस्तान नाराज
- डॉ. एक्यू खान की आई याद
- परमाणु हथियारों पर दिया बयान
Pakistan Nuclear Weapons: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की परमाणु हथियारों को लेकर की गई टिप्पणी के बाद से पूरे पाकिस्तान में भूचाल आ गया है। कल तक अमेरिका के गुणगान करने वाला पाकिस्तान आज उसकी आलोचना करते नहीं थक रहा। जो बाइडेन ने डेमोक्रेटिक पार्टी की कांग्रेस अभियान समिति के समारोह में पाकिस्तान को दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक बताते हुए कहा है कि उसके पास बिना किसी सुरक्षा के परमाणु हथियार हैं। बाइडेन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि पाकिस्तान दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। उसके पास परमाणु हथियार हैं लेकिन बिना किसी सुरक्षा के हैं।’
कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने के लिए 450 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता देने वाले बाइडेन का ये बयान पाकिस्तान को हजम नहीं हो रहा है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने साल 1998 में परमाणु परीक्षण किया था। पाकिस्तान के पास परमाणु हथियारों का जखीरा होने की भी आशंका है। अब बात करते हैं, उस शख्स की, जिसकी वजह से आज पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं। इस शख्स का नाम डॉक्टर अब्दुल कादिर खान है। वह एक वैज्ञानिक थे, जिनकी वजह से पाकिस्तान को परमाणु तकनीक मिल पाई है। डॉ. खान ने रावलपिंडी की कहूटा लैब में जो कुछ किया, उससे पाकिस्तान की तस्वीर बदल गई।
एमपी के भोपाल में हुआ था जन्म
इन्हें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है। डॉ. कादिर खान का जन्म भारत के मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 1936 में हुआ था। उनका परिवार 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान में विस्थापित हो गया था। कराची में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद खान ने नीदरलैंड की डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएशन की। खान की मदद से पाकिस्तान 1998 में परमाणु संपन्न देश बन गया। खान ने यूरेनियम को लेकर जो तकनीक नीदरलैंड में हासिल की थी, उसका इस्तेमाल उन्होंने पाकिस्तान में किया। इसके बाद 1976 में उन्होंने कहूटा रिसर्च लैबोरेटरी (केआरएल) को स्थापित किया। ये वही लैब है, जहां से परमाणु कार्यक्रम संचालित होता है।
परमाणु हथियार बनाने में मिली सफलता
डॉ. अब्दुल कादिर खान अपने देश के लिए परमाणु हथियार बनाने में सफल हुए थे। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, उन्होंने अडवांस यूरेनियम को संवर्धन करने की प्रक्रिया को विकसित किया था, जिसे गैस सैंटिफ्रूज तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक की मदद से, यूरेनियम को उस स्तर तक संवर्धित किया जाता है, ताकि उससे परमाणु हथियार बनाया जा सके। साल 1975 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। जिस वक्त खान नीदरलैंड में यूरेनियम संवर्धित करने वाले केंद्र में काम कर रहे थे, तब वह यहां जर्मन-डच ट्रांसलेटर थे। उन्होंने अपनी सेवाएं पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को दी थीं।
नीदरलैंड से तकनीक की चोरी की
भुट्टो चाहते थे कि पाकिस्तान का खुद का परमाणु कार्यक्रम हो। जिस केंद्र में खान काम कर रहे थे, वहां लोगों को संदेह हुआ कि खान सेंट्रीफ्यूज और अन्य घटक बनाने के लिए तकनीक की चोरी कर रहे हैं। खान इसके बाद पाकिस्तान आ गए और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। 1976 में वह पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग का हिस्सा बने। ठीक उसी समय नीदरलैंड की एक अदालत ने उन्हें परमाणु तकनीक की चोरी करने का दोषी ठहराया।
अमेरिका देखता रहा था तमाशा
परमाणु परीक्षण के बाद से पाकिस्तान पर निगरानी रखी जा रही थी। अमेरिका की खुफिया एजेंसी की निगाहें खान पर थीं। अमेरिका ने खुफिया इनपुट मिलने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से कहा था कि खान ने ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक बेची है। खान जीरो से हीरो बन गए थे। उन्हें पहले तो पाकिस्तानी अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया था लेकिन फिर पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ ने माफ कर दिया। वहीं डॉ. खान की बात करें, तो उनकी इस्लामाबाद में बीते साल यानी 10 अक्टूबर, 2021 में मौत हो गई।
खान को लेकर देश में मतभेद
पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा आयोग ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया है कि देश को उसका पहला परमाणु हथियार खान की वजह से मिल पाया है। आयोग के मुताबिक, वह केवल एक मेटालर्जिकल इंजीनियर थे और परमाणु बम का परीक्षण करने वाली टीम के लीडर नहीं थे। हालांकि खान बेशक चागाई में परमाणु स्थल पर उस परीक्षण के वक्त मौजूद थे। आयोग के सभी सदस्य निश्चित रूप से ये मानते हैं कि खान की वजह से ही पाकिस्तान को यूरेनियम संवर्धन का पहला ब्लूप्रिंट मिल पाया था।