Highlights
- यूरोपियन यूनियन रूस पर लगातार शिकंजा कसता जा रहा है।
- अमेरिका इस बात से परेशान है कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है।
- बायडेन ने चीन को चेतावनी दी है कि वह रूस को कोई मदद न दे।
बीजिंग: यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से दुनिया में काफी हलचल देखने को मिल रही है। एक तरफ इस जंग के दौरान चीन और रूस पहले से ज्यादा करीब आए हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिका की घटते प्रभाव के बारे में भी चर्चा होने लगी है। चीन तेल और गैस की खरीदारी करके रूस की मदद कर रहा है। इस बात से अमेरिका काफी नाराज है और कहा जा रहा है कि वह कोई बड़ी कार्रवाई कर सकता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने कहा है कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि चीन यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण लगाए गए प्रतिबंधों से बचने में रूस की मदद कर रहा है।
यूरोप ने रूस से 90 फीसदी तेल आयात रोकने का फैसला किया
27 देशों वाले यूरोपियन यूनियन के नेताओं ने इस साल के अंत तक रूसी तेल के अधिकांश आयात को प्रतिबंधित करने का फैसला किया है। यूरोप के नेताओं ने सोमवार रात को रूस से किए जाने वाले 90 फीसदी तेल आयात को रोकने का फैसला लिया। इस फैसले को अगले 6 महीनों में लागू कर दिया जाएगा। यही वजह है कि रूस के लिए चीन की अहमियत बढ़ गई है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले घोषणा की थी कि उनकी और रूस की दोस्ती की ‘कोई सीमा नहीं’ है।
चीन ने रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को गैर कानूनी बताया है
अमेरिका, यूरोप और जापान ने संयुक्त राष्ट्र के पास जाए बिना रूस को बाजार और वर्ल्ड बैंकिंग सिस्टम से अलग-थलग कर दिया है, जबकि चीन ने इन प्रतिबंधों को गैर कानूनी बताया है। इन प्रतिबंधों के बावजूद चीन, भारत और कई अन्य देश रूस से तेल और गैस खरीद रहे हैं, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन ने शी को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने प्रतिबंधों से बचने में रूस की मदद की, तो चीन को इसके परिणाम भुगतने होंगे। यानी चीनी कंपनियों पर पश्चिमी बाजार तक पहुंच समाप्त होने का खतरा है।
चीन की सरकारी कंपनियां रूस से ज्यादा तेल और गैस खरीद रहीं
चीन प्रतिबंधों का पालन करता दिख रहा है, लेकिन सरकारी कंपनियां रूस से पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेल और गैस खरीद रही हैं। माना जा रहा है कि चीन पश्चिमी कंपनियों के जाने के बाद के पावर प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्ट भी कर रहा है। ‘यूरेशिया ग्रुप’ के नील थॉमस ने एक ईमेल में कहा, ‘रूस के प्रति चीन के सहयोग से बायडेन प्रशासन संभवत: और नाराज हो जाएगा।’ थॉमस ने कहा कि इससे ‘बीजिंग को सजा देने के लिए एकतरफा कदम उठाए जाने’ और ‘चीन से निपटने के लिए आर्थिक सुरक्षा उपायों के संदर्भ से सहयोगी देशों के समन्वय’ से कदम उठाए जाने की संभावना है।
चीन ने रूस की जंग से खुद को दूर रखने की कोशिश की है
अमेरिका ताइवान, हांगकांग, मानवाधिकार, व्यापार, प्रौद्योगिकी और बीजिंग की सामरिक महत्वाकांक्षाओं के कारण पहले ही चीन से नाराज है। शी की सरकार ने रूस के युद्ध से स्वयं को दूर रखने की कोशिश की है और शांति वार्ता का समर्थन किया है, लेकिन उसने मॉस्को की निंदा नहीं की। ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज’ की मारिया शगीना ने कहा कि हालांकि चीन और रूस मित्र हैं, लेकिन चीन सस्ती ऊर्जा और अनुकूल व्यापारिक सौदे पाने के लिए स्थिति का फायदा उठा रहा है।
रूस से तेल खरीद रहा है भारत, इस बात से भी परेशान है अमेरिका
शगीना ने कहा, ‘वे रूस को अलग-थलग किए जाने पर स्थिति का हमेशा लाभ उठाएंगे, लेकिन वे प्रतिबंधों का सीधे उल्लंघन करने के मामले में सावधान रहेंगे।’ बायडेन ने 18 मार्च को एक वीडियो सम्मेलन में चीन को चेतावनी दी थी कि वह रूस को सैन्य या आर्थिक मदद नहीं दे। अमेरिका इस बात से भी चिंतित है कि तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक तेल आयातक भारत कम कीमतों का लाभ उठाते हुए रूस से और तेल खरीद रहा है। बायडेन प्रशासन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को ऐसा करने से रोकने की कोशिश कर रहा है।