संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के बाद से सार्वजनिक मृत्युदंड देने, कोड़े मारने और पत्थर मारने की सजा के लिए सोमवार को तालिबान की कड़ी आलोचना की गई और देश के शासकों से इस तरह की गतिविधियों को रोकने को कहा गया। इसके जवाब में तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अफगानिस्तान के कानून इस्लामी नियमों और दिशानिर्देशों के अनुरूप हैं और बड़ी संख्या में अफगान नागरिक इन नियमों को मानते हैं।
"इस्लामी कानून का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध"
तालिबान के विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और इस्लामी कानून के बीच टकराव की स्थिति में सरकार इस्लामी कानून का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है।’’ तालिबान ने करीब दो साल पहले अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के कुछ ही समय बाद इस तरह की सजा देना शुरू कर दिया था। जबकि उसने 1990 के दशक के अपने कार्यकाल की तुलना में अधिक उदार नियम अपनाने का वादा किया था।
6 महीने में 334 लोगों को सार्वजनिक रूप से दी सजा
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 6 महीने में ही अफगानिस्तान में सार्वजनिक रूप से 274 पुरुषों, 58 महिलाओं और दो लड़कों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गये। एजेंसी की मानवाधिकार प्रमुख फियोना फ्रेजर ने कहा, ‘‘शारीरिक दंड देना, प्रताड़ना के खिलाफ समझौते का उल्लंघन है और इसे रोका जाना चाहिए।’’ उन्होंने मृत्युदंड पर तत्काल पाबंदी की मांग की।
अविवाहित जोड़े को 100-100 कोड़े की सजा
संयुक्त राष्ट्र की सोमवार को जारी रिपोर्ट में अगस्त 2021 में सत्ता में आने से पहले और बाद, दोनों समय तालिबानी गतिविधियों का विवरण पेश किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के सत्ता में आने के बाद सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की पहली सजा अक्टूबर 2021 में उत्तरी कापिसा प्रांत में दी गयी। इसके अनुसार इस मामले में व्यभिचार (अविवाहित जोड़े के बीच संबंध) के दोषी एक महिला और पुरुष को मौलवियों और स्थानीय अधिकारियों की मौजूदगी में 100-100 कोड़े मारे गये थे।
पीड़ित के पिता की राइफल से मारकर मौत की सजा
वहीं तालिबान के ओहदेदारों ने दिसंबर 2022 में हत्या के एक दोषी को मौत की सजा दी थी। रिपोर्ट के अनुसार तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद सार्वजनिक मृत्युदंड का यह पहला मामला था। पीड़ित के पिता की राइफल से ही इस सजा को अंजाम दिया गया और यह मौलवियों और तालिबान अधिकारियों के सामने पश्चिमी फराह प्रांत में हुआ। सरकार के शीर्ष प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा था कि सजा देने का फैसला बहुत सोच-समझकर किया गया और इसे देश की तीन सर्वोच्च अदालतों और तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हिबातुल्ला अखुंदजादा की मंजूरी थी।
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