नई दिल्लीः भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त से बिछड़े दो भाइयों का परिवार अब 75 वर्ष बाद मिल तो गया, लेकिन जब वह आपस में मिले तो एक दूसरे का धर्म बदल चुका था। यह सिख भाइयों का परिवार हरियाणा का रहने वाला था। इनके मिलन की कहानी भी हैरान कर देने वाली है। एक भाई का परिवार उसके दूसरे भाई के परिवार को अब तक ढूंढ़ता रहा। कई बार सरकारों से मदद भी मांगी, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी। मगर अब सोशल मीडिया ने दोनों बिछड़े भाइयों के परिवार को मिला दिया है। मगर जब दोनों परिवार मिले तो न उनका एक भाई बचा और न हीं धर्म। दरअसल जब इन दो परिवारों की मुलाकात अब हुई तो एक भाई जीवित नहीं रहा। इसके साथ ही इन दोनों सिख परिवारों का धर्म भी बदल चुका है। बंटवारे के समय हिंदुस्तान से पाकिस्तान में फंसा परिवार अब मुस्लिम बन चुका है। दो बिछड़े परिवारों की यह दर्द भरी संवेदना और बंटवारे की घटना आपको हैरान करके रख देगी।
जानकारी के अनुसार भारत के विभाजन के दौरान बिछड़ गये दो सिख भाइयों के परिवारों के बीच 75 साल बाद करतारपुर गलियारे में मिलन हुआ। इस भावुक पल के दौरान उन्होंने गाने गाये एवं एक दूसरे पर फूल बरसाये। यह सब सोशल मीडिया के कारण संभव हो पाया। गुरदेव सिंह और दया सिंह के परिवार इस मिलन के लिए बृहस्पतिवार को करतारपुर गलियारे पहुंचे थे। करतापुर साहिब के गुरद्वारा दरबार साहिब में इन परिवारों के भावुक मिलन का नजारा सामने आया। उन्होंने खुशी में गाने गाये एवं एक-दूसरे पर फूल बरसाये। दोनों ही भाई हरियाणा के थे और विभाजन के समय वे महेंद्रगढ़ जिले के गोमला गांव में अपने दिवंगत पिता के मित्र करीम बख्श के साथ रहते थे। बख्श बड़े भाई गुरदेव सिंह के साथ पाकिस्तान चले गये जबकि छोटे भाई दया सिंह अपने मामा के पास हरियाणा में ही रह गये।
पाकिस्तान जाने के बाद गुरदेव सिंह बन गए गुलाम मोहम्मद
पाकिस्तान जाने के बाद बख्श पंजाब प्रांत में लाहौर से करीब 200 किलोमीटर दूर झांग जिले में जा बसे और उन्होंने गुरदेव सिंह का मुस्लिम नाम गुलाम मुहम्मद रख दिया। इसके बाद वह और उनका परिवार मुस्लिम बन गया। अभी कुछ साल पहले गुरदेव सिंह का निधन हो गया। गुरदेव के बेटे मुहम्मद शरीफ ने मीडिया को बताया कि इतने सालों में उनके पिता ने भारत सरकार को कई पत्र लिखकर अपने भाई दया सिंह के ठिकाने का पता लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, ‘‘छह महीने पहले हम सोशल मीडिया के माध्यम से चाचा दया सिंह को ढूढने में कामयाब रहे। यह हमारे लिए बहुत खुशी का पल है। मगर अफसोस है कि अब हमारे पिता जी जीवित नहीं रहे। अगर दोनों भाई एक दूसरे से जीवित मिलते तो वह पल कुछ और ही होता।
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