Russia India Oil Trade: यूक्रेन से जंग के बाद जब से रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए, तभी से भारत रूस से धड़ल्ले से तेल खरीदता आ रहा है। लेकिन हाल के समय में यह कहा जाने लगा था कि रुपए या चीनी मुद्रा किसमें भुगतान किया जाए, इन समस्याओं के चलते रूस से तेल आयात में गिरावट दर्ज की गई है। इस बारे में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने भुगतान को लेकर बड़ी बात कही है।
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बुधवार को कहा कि रूस से तेल खरीदने में भुगतान की कोई समस्या नहीं है और इस खरीद में हाल में आई गिरावट उसकी तरफ से दी जाने वाली कम छूट का नतीजा है। पुरी ने एक कार्यक्रम में संवाददाताओं से कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले फरवरी, 2022 में भारत ने जितने तेल का आयात किया था उसमें रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ 0.2 प्रतिशत थी। लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बीच रूस ने तेल खरीद पर छूट की पेशकश की। इसके बाद यह हिस्सेदारी बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई और रूस अब भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता देश है।
पहले से 10 फीसदी गिर गया है रूस से तेल का आयात
पुरी ने कहा कि भारत अपने आयात स्रोतों में विविधता लेकर आया है और देश सबसे सस्ती उपलब्ध दरों पर खरीदारी करेगा। उन्होंने कहा, "भारतीय उपभोक्ताओं को बिना किसी व्यवधान के सबसे किफायती मूल्य पर ईंधन मिलने की शर्त है। रूस से तेल आयात 40 प्रतिशत तक बढ़ गया था। अब अगर यह 33 प्रतिशत या 28-29 प्रतिशत पर आ गया है तो इसके लिए भुगतान की कोई समस्या नहीं है। यह विशुद्ध रूप से उस कीमत की वजह से है, जिस पर हमारी रिफाइनिंग कंपनियों को तेल मिलेगा।"
भुगतान संबंधी समस्याओं की कोई शिकायत नहीं मिली: पुरी
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी कंपनी ने भुगतान संबंधी समस्याओं के कारण आपूर्ति रोके जाने की शिकायत नहीं की है। इसके बजाय आपूर्तिकर्ता पहले बेचने और बाद में भुगतान एकत्र करने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा, "हम रूस से प्रतिदिन 15 लाख बैरल तेल खरीद रहे हैं। देश में 50 लाख बैरल की दैनिक खपत में से 15 लाख बैरल प्रतिदिन खरीद रहे हैं। अगर वे छूट नहीं देंगे, तो हम इसे क्यों खरीदेंगे?"
हूती विद्रोहियों के हमलों के बीच जहाजों ने बदला रास्ता
लाल सागर में मालवाहक जहाजों पर हूती विद्रोहियों के ड्रोन हमलों पर पुरी ने कहा कि कुछ आपूर्तिकर्ताओं ने अपना रास्ता बदल लिया है और अब केप ऑफ गुड होप से होकर गुजर रहे हैं। हालांकि लाल सागर और स्वेज नहर से बचने पर लंबी यात्रा होगी लेकिन जहाजों को स्वेज नहर पारगमन शुल्क भी नहीं देना होगा। स्वेज नहर का इस्तेमाल लगभग एक तिहाई वैश्विक कंटेनर जहाज करते हैं।