Pakistan News: पाकिस्तान को वहां के हुक्मरानों की 'गंदी' राजनीति ने बर्बाद करके रख दिया, ये बात तो हर पाकिस्तानी कहता है। सोशल मीडिया पर कई लोगों को इस तरह बोलते देखा है। यहां तक कि सत्ता से बेदखल होने वाली सरकार के राजनेताओं ने भी सत्तारूढ़ पार्टियों के लिए यह शब्द इस्तेमाल किए हैं। ऐसी बातों का लंबा इतिहास रहा है। इन सबके बीच पूर्व पाकिस्तानी जनरल हारून असलम ने एक बड़ा बयान दिया है, जिससे पाकिस्तान में सियासी हलचल मच गई है।
पूर्व पाकिस्तानी जनरल ने असैन्य-सैन्य असंतुलन के लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया। पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हारून असलम ने कहा है कि वह पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के उस संकल्प को अधिक महत्व नहीं देते कि सेना देश की राजनीति से बाहर रहेगी और उन्होंने असैन्य-सैन्य असंतुलन को बढ़ाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया।
हुक्मरानों ने सैन्य जनरलों पर इतनी 'कृपा' क्यों बरसाई?
असलम ने शनिवार को लंदन में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा आयोजित फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान कांफ्रेंस में एक सेशन को संबोधित किया। पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ ने असलम के हवाले से कहा कि इमरान खान ने जनरल बाजवा को सेवा विस्तार क्यों दिया? आसिफ अली जरदारी ने जनरल अश्फाक परवेज कियानी को सेवा विस्तार क्यों दिया? मेरा मानना है कि सेना को तटस्थ रहना चाहिए और राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए लेकिन याद रखिए कि आप इसे बंद नहीं कर सकते।
पाकिस्तान की पॉलिटिकल लीडरशिप देश बर्बादी के लिए जिम्मेदार
उन्होंने सेना को राजनीति में हस्तक्षेप करने देने के लिए पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सेना हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं कर रही थी बल्कि असैन्य घटक ने सेना को महत्व दिया। सेवानिवृत्त जनरल बाजवा की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा कि मैं इसे महत्व नहीं देता हूं। उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया और फिर आखिर में यह कहा। एक निवर्तमान प्रमुख क्या कहता है इसका कोई महत्व नहीं है।
सैन्य असैन्य असंतुलन के लिए इमरान खान की आलोचना की
उन्होंने असैन्य-सैन्य असंतुलन बढ़ाने के लिए पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ प्रमुख इमरान खान एवं अन्य असैन्य नेताओं की आलोचना की। बहरहाल, वुडरॉ विल्सन सेंटर के शोधार्थी माइकल कुगेलमैन ने असैन्य नेतृत्व का बचाव किया। उन्होंने कहा, तटस्थ सेना तभी संभव है जब नेता यह फैसला कर लें कि उन्हें सेना के साथ काम करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से नेताओं के पास अक्सर कोई विकल्प नहीं होता। उनके और सेना के बीच अच्छे संबंध बनाए रखने की इच्छा होती है।
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