Highlights
- अमेरिकी मदद से ताइवान का हौसला बुलंद
- ताइवान में अमेरिका की एंट्री से चीन में मची है खलबली
- अब ताइवान बना चीन के लिए चुनौती
China-Taiwan Collision: जिस ताइवान को चीन अब तक छोटा और तुच्छ समझता रहा, जिस ताइवान को वह अपना गुलाम और पिछलग्गू बनाने की सोच रखता रहा और जिस ताइवान को ड्रैगन लाचार और मजबूर समझता रहा... अब उसी ताइवान ने कुछ ऐसे लहजे में ड्रैगन को ललकारा है कि चीन जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था। ताइवान ने साफ शब्दों में कह दिया है कि हमें चीन का कोई डर नहीं है। ताइवान की इस जबरदस्त हुंकार से चीन चकमा खा गया है।
आपको बता दें कि ताइवान ने यह हुंकार ऐसे समय में भरी है जब चीन लगातार उसको अमेरिका से दूर रहने की नसीहत देता रहा है और जब ड्रैगन की बातों को नजरअंदाज कर ताइवान ने न सिर्फ अमेरिका से दोस्ती की बाहें फैलाई, बल्कि हाल ही में अपने सीमा क्षेत्र में उड़ते चीनी ड्रोन को भी सेकेंडों में धुआं बना दिया। अब चीन को यह बात तो शायद समझ आ ही गई होगी कि उसे हल्के में लेना सबसे बड़ी भूल होगी। चीन यह भी समझ गया होगा कि सुग्रीवरूपी ताइवान को कोई रामरूपी अमेरिका जैसे मित्र भी मिल गया है। ऐसे में तैश में आकर ताइवान के साथ गुस्ताखी करना अपनी बर्बादी का खुद ही रास्ता तैयार करने से कम नहीं होगा।
चीन के आगे नहीं झुकेगा ताइवान
ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने साफ शब्दों में कह दिया है कि उसे चीन का कोई खौफ नहीं है। उससे डरे बिना वह अपने वैश्विक संबंधों को मजबूत करने में जुटा रहेगा। चीन की धमकियां हमारे हौसले को डिगा नहीं सकतीं। ताइवान ने कह दिया है कि चीन के दबाव में आकर हम झुकने वाले नहीं हैं। ताइवानी राष्ट्रपति ने फोरम 2000 फाउंडेशन को समर्थन के लिए शुक्रिया अदा करते कहा कि जब चीन ने लोकतंत्र का समर्थन करने पर ताइवान के फाउंडेशन को दंडात्मक कार्रवाई की धमकी दी थी तो इस संगठन ने उससे डरे बिना मानवाधिकारों और स्वतंत्रता पर हमला करने के लिए चीन की खुलेआम निंदा की थी।
चीन और ताइवान में विवाद की असली वजह क्या है
दरअसल ताइवान कभी चीन का ही हिस्सा था। बात वर्ष 1644 की है। तब चीन में चिंग वंश का शासन था और ताइवान चीन का हिस्सा था। मगर 1895 में चीन ने ताइवान को जापान के हाथों में सौंप दिया। मगर ताइवान ने खुद को तब संप्रभु राष्ट्र माना। ताइवान जापान के हाथों की कठपुतली नहीं बना। चीन और ताइवान के बीच विवाद की यही असली वजह बन गया। इसके बाद दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया। बाद में चीन फिर से ताइवान पर कब्जा जमाने का कई बार प्रयास शुरू किया, लेकिन उसकी कोशिश सफल नहीं हो पा रही है। करीब 100 वर्षों से चीन और ताइवान के बीच विवाद चला आ रहा है। चीन अक्सर ताइवान की समुद्री सीमा में भी दखलंदाजी करता रहता है। इससे ताइवान और चीन के बीच तनातनी रहती है। चीन नहीं चाहता कि ताइवान को लेकर कोई दूसरा देश दखल करे, लेकिन अमेरिका चीन की इस बात को नजरअंदाज करता रहा है। यही वजह है कि ताइवान पर अमेरिका और चीन भी कई बार आमने-सामने हो जाते हैं।
अमेरिका दे रहा ताइवान को हौसला
चीन और ताइवान के बीच छिड़े विवाद के बीच अमेरिका के कूद जाने से यह लड़ाई बेहद दिलचस्प हो चुकी है। हाल के दिनों में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से न सिर्फ चीन और ताइवान के बीच का तनाव और बढ़ गया, बल्कि अमेरिका और चीन भी आमने-सामने हैं। चीन अमेरिका को रोकना चाह रहा था कि पेलोसी ताइवान नहीं जाएं। यह उसके घरेलू मामलों में दखलंदाजी होगी, लेकिन अमेरिका नहीं माना। इस दौरान अमेरिका ने ताइवान को 1.1 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद देकर और अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराने का ऐलान करके उसके हौसले को और बढ़ा दिया है। अमेरिका के इस कदम से चीन बौखलाया है।
चीन ने खुद अपने पैरों पर मारी कुल्हाड़ी
वर्ष 1949 में चीन भीषण गृहयुद्ध की चपेट में था। उस दौरान चीनी नेता माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने राष्ट्रवादी कामिंगतांग पार्टी को हरा दिया। तब इसका नेतृत्व चियांग काई शेक के हाथों में था। चियांग काई शेक हारने के बाद ताइवान पहुंच गए। वहीं कामिंगतांग पार्टी के नेतृत्व में अपनी सरकार बना ली। दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका से हारने के बाद जापान ने ताइवान का पूरा नियंत्रण कामिंगतांग को दे दिया। तब से ताइवान में चुनी हुई सरकार बनती आ रही है। ताइवान का अब अपना अलग संविधान है। वह स्वयंप्रभु राष्ट्र बन चुका है। मगर ड्रैगन वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान को कब्जाना चाहता है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ताइवान को अपना हिस्सा बताती है। यही विवाद की वजह बना है।