Highlights
- 1987 में भारत ने श्रीलंका में भेजी थी शांति सेना
- भारतीय हाईकमीशन ने अटकलों को खारिज किया
Sri Lanka : श्रीलंका में दिन-ब-दिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं। जनता सड़कों पर उतर चुकी है और जनप्रतिनिधियों की शामत आ चुकी है। राजधानी कोलंबो में जगह-जगह तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हो रही हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को गुस्साई भीड़ से बचने के लिए अपना ठिकाना बदलना पड़ा। इन हालातों के बीच एक सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या एक बार फिर भारत अपनी सेना को श्रीलंका में शांति स्थापित करने के लिए भेजेगा ? क्या भारत श्रीलंका में शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए दखल देगा?
1987 में भारत ने श्रीलंका में भेजी थी शांति सेना
दरअसल, इस सवाल का उठना लाजिमी इसलिए है कि श्रीलंका में शांति-व्यवस्था कायम रखने के लिए भारत आज से करीब 35 साल पहले भी अपनी सेना भेज चुका है। चूंकि श्रीलंका भारत का पड़ोसी मुल्क है और दोनों के बेहद पुराने और मजूबत संबंध हैं। वहां लिट्टे के चलते गृह युद्ध जैसी स्थिति से निपटने के लिए श्रीलंका की तत्कालीन सरकार को भारत की ओर से सैन्य मदद मुहैया कराई गई थी। इसके लिए भारतीय सेना ने 1987 में ऑपरेशन पवन शुरू किया था। भारत की शांति सेना ने श्रीलंका में अपने मिशन को पूरा कर वापस लौट आई थी।
भारतीय हाईकमीशन ने अटकलों को खारिज किया
यही वजह है कि इस बार भी श्रीलंका में हालात बिगड़ने पर ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत अपनी सेना भेज सकता है। लेकिन कोलंबो स्थित भारतीय हाईकमीशन ने बुधवार को इन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया कि भारत अपने सैनिकों को श्रीलंका भेजेगा। साथ ही हाईकमीशन ने कहा कि श्रीलंका के लोकतंत्र, स्थिरता तथा आर्थिक सुधार का भारत पूरी तरह से समर्थन करता है।
श्रीलंका के लोकतंत्र, स्थिरता, आर्थिक सुधार का समर्थन
भारतीय मिशन ने ट्वीट किया, ‘‘ उच्चायोग, मीडिया और सोशल मीडिया मंचों पर में भारत द्वारा श्रीलंका में अपने सैनिकों को भेजे जाने के बारे में आ रही खबरों का खंडन करता है। ये खबरें और इस तरह के विचार भारत सरकार के रुख से मेल नहीं खाते।’’ मिशन ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘ भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कल स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत, श्रीलंका के लोकतंत्र, स्थिरता तथा आर्थिक सुधार का पूरी तरह से समर्थन करता है।’’
बड़े स्तर पर सरकार विरोधी प्रदर्शन
आपको बता दें कि अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी हो गई है, जिससे वह खाने-पीने की चीजों और ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर पा रहा है। इस कारण देशभर में बड़े स्तर पर सरकार विरोधी प्रदर्शन किए जा रहे हैं।