Highlights
- श्रीलंका शरणार्थियों के अब आएंगे अच्छे दिन
- 26 साल से तमिलनाडु में रह रहे शरणार्थियों की वापसी के लिए श्रीलंका ने बनाई कमेटी
- राष्ट्रपति रानिल विक्रम सिंघे शरणार्थियों को बुलाएंगे वापस
Srilanka Crisis: श्रीलंका में नए राष्ट्रपति के पद संभालने के बाद हालात को नियंत्रण में लाने की कोशिश शुरू हो गई है। इसी कड़ी में अब श्रीलंका के राष्ट्रपति कार्यालय ने भारत से शरणार्थियों को वापस लाने के लिए समिति का गठन किया है। अब राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यालय ने सोमवार को श्रीलंकाई शरणार्थियों की वापसी की सुविधा के लिए एक समिति नियुक्त की, जो विशेष रूप से 26 साल लंबे जातीय संघर्ष के दौरान भारत भाग गए थे।
करीब 58 हजार शरणार्थी हैं भारत में
राष्ट्रपति के सचिव समन एकनायके ने युद्ध से तबाह उत्तरी श्रीलंका से अल्पसंख्यक तमिलों के प्रत्यावर्तन को कुशलतापूर्वक करने के लिए समिति की नियुक्ति की। ईलम शरणार्थी पुनर्वास संगठन (ओएफईआरआर) के अनुरोध पर समिति नियुक्त की गई थी, जो युद्ध के कारण शरणार्थी के रूप में भारत गए श्रीलंकाई लोगों को वापस लाने के लिए थी। राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा, "यह कहा गया था कि वर्तमान में लगभग 58,000 श्रीलंकाई शरणार्थी के रूप में भारत के तमिलनाडु में रह रहे हैं और उनमें से केवल 3,800 ही श्रीलंका लौटने के लिए तैयार हैं।"
भारत और श्रीलंका के बीच हैं घनिष्ठ संबंध
भारत के गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, 2021 तक, 58,843 श्रीलंकाई तमिलनाडु के 108 शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। हालंकि, लगभग 34,000 लंकाई शरणार्थी थे, जो राज्य के अधिकारियों के साथ पंजीकृत थे, शिविरों के बाहर रह रहे थे। चेन्नई में श्रीलंका के उप उच्चायुक्त कार्यालय इस कदम का समन्वय कर रहा है, जबकि श्रीलंका के आव्रजन और उत्प्रवास विभाग, न्याय मंत्रालय, विदेश मामलों के मंत्रालय और रजिस्ट्रार जनरल के विभाग के अधिकारी समिति में हैं। द्वीप राष्ट्र में चल रहे वित्तीय संकट को सहन करने में असमर्थ, उत्तरी श्रीलंका से बड़ी संख्या में तमिल भी हाल ही में तमिलनाडु के लिए रवाना हुए। वर्षों से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों के साथ, श्रीलंका और भारत में तमिल घनिष्ठ संबंध बनाए हुए हैं।
श्रीलंका में आई आर्थिक मंदी से सिस्टम संभलने में लगेगा वक्त
श्रीलंका में गत महीनों आई आर्थिक मंदी से अभी देश को उबरने में समय लगेगा। हालांकि विश्व बैंक व आइएमएफ समेत कई देशों ने श्रीलंका को इस हालात से बाहर लाने के लिए मदद कर रहे हैं। श्रीलंका में रानिल विक्रम सिंघे के नए राष्ट्रपित बनने के बाद लोगों का आक्रोश धीरे-धीरे शांत हो रहा है। अब बर्बाद हुई अर्थ व्यवस्था को धीरे-धीरे पटरी पर लाने की कोशिश की जाने लगी है। ताकि हालात को काबू में लाया जा सके।
भारत ने निभाई भाई की भूमिका
श्रीलंका में आए संकट के दौरान भारत हर तरह से उसकी मदद को तैयार रहा। भारत ने इस दौरान भाई की भूमिका निभाते हुए निःस्वार्थ मदद की। जबकि इसी दौरान चीन जैसे देशों ने स्वार्थवश श्रीलंका की मदद की और इस सहायता के नाम पर भारत के खिलाफ साजिश भी रची। जब भारत ने इसका विरोध किया तो चीन बहाने गढ़ने लगा। भारत ने श्रीलंका से भी अपना विरोध दर्ज कराया तो उसने चीन से दूरी बनानी शुरू कर दी। इसके बाद हालात काबू हुए। मंदी के दौरान भारत ने अनाज-पानी व दवा से लेकर आर्थिक मदद भी की।