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संकट से जूझ रहा भारत का यह पड़ोसी देश, IMF देने जा रहा 33.7 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद

आर्थिक संकट से जूझ रहे भारत के पड़ोसी देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष बड़ी आर्थिक मदद देने जा रहा है। इसके लिए आईएमएफ ने पहले समीक्षा की, इसके बाद मदद का निर्णय लिया।

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: December 13, 2023 13:45 IST
भारत के पड़ोसी देश को आईएमएफ देगा आर्थिक मदद- India TV Hindi
Image Source : FILE भारत के पड़ोसी देश को आईएमएफ देगा आर्थिक मदद

Sri Lanka News: कंगाली की हालत से जूझते भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका को आईएमएफ से करोड़ों अमेरिकी डॉलर की सहायता मिलने वाली है। यह सहायता श्रीलंका के लिए काफी अहम है। ऐसे समय में जबकि चीन अपने कर्ज के जाल में श्रीलंका को फंसा रहा है। यह बड़ी अमेरिकी मदद श्रीलंका के लिए काफी काम की है। आईएमएफ कार्यकारी बोर्ड ने श्रीलंका के साथ 48 महीने की विस्तारित कोष सुविधा के तहत पहली समीक्षा पूरी कर ली है। इससे नकदी संकट से जूझ रहे देश को व्यापक आर्थिक व ऋण स्थिरता बहाल करने के लिए करीब 33.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता दी जाएगी। 

कुल ऋण का 52 फीसदी हिस्सा चीन को देना जरूरी

इस बारे में श्रीलंका के वरिष्ठ मिशन प्रमुख पीटर ब्रेउर ने इसकी घोषणा करते हुए यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर जारी करने की पहली समीक्षा को समाप्त करने के लिए चीन के साथ ऋण पुनर्गठन का कार्य अत्यंत गोपनीय आधार पर किया गया। श्रीलंका ने अपने कुल ऋण का 52 प्रतिशत हिस्सा चीन को देना है। 

आईएमएफ ने की समीक्षा

ब्रेउर ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा, ‘सैद्धांतिक रूप से चीनी समझौता श्रीलंका की ऋण पुनर्गठन वार्ता के लिए बेहद अच्छी खबर है। हमने अधिकारियों द्वारा अत्यंत गोपनीय आधार पर साझा किए गए समझौते की प्रमुख वित्त शर्तों का सारांश देखा है।’ आईएमएफ ने मंगलवार देर रात समीक्षा पूरी की और द्वीप राष्ट्र को 33.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर की दूसरी किश्त जारी करने की मंजूरी दे दी। इससे चार साल की सुविधा में संवितरण मूल्य 67 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया। 

श्रीलंका में लगाया गया था आपातकाल

पिछले साल श्रीलंका में काफी बवाल हुआ था। श्रीलंका की जनता ने सड़कों पर उतरकर विद्रोह कर दिया था। इसके बाद श्रीलंका में आपातकाल लगा दिया गया था। दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का जोरदार विरोध हुआ था। इसके बाद गोटाबाया के देश से भागने के बाद आंदोलन के खत्म होने की उम्मीद थी, लेकिन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाने के बाद ​आंदोलन फिर उग्र हो गया था।

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