Sunday, April 27, 2025
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श्रीलंका बना बारूदी सुरंगों का अड्डा, 2028 तक मुक्ति दिलाने का अमेरिकी संकल्प भी संकट में

श्रीलंका में जब संघर्ष से विस्थापित हुए हज़ारों नागरिक फिर से बसने के लिए वापस आए, तब भी बारुदी सुरंगों ने कहर ढाया। इन्हें हटाना शुरू किया गया और बारूदी सुरंगों के बारे में जागरूकता अभियान भी चलाए गए। लेकिन फिर भी दुर्घटनाएँ होती रहीं।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Apr 04, 2025 22:03 IST, Updated : Apr 04, 2025 22:03 IST
श्रीलंका में बिछी लैंडमाइन्स।
Image Source : AP श्रीलंका में बिछी लैंडमाइन्स।

मनकुलम (श्रीलंका): थावराथनम पुष्पारानी ने दशकों से चले आ रहे अलगाववादी युद्ध में कभी श्रीलंका की सेना के खिलाफ तमिल विद्रोहियों के लिए अग्रिम मोर्चे पर लड़ाई लड़ी थी और बाद में उन्हीं युद्ध क्षेत्रों में उन्होंने, बिछाई गई बारूदी सुरंगों को साफ करने का काम किया। अब, अमेरिका के डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा सहायता रोके जाने से श्रीलंका के बारूदी सुरंगों को हटाने का अभियान संकट में है जिससे पुष्पारानी जैसे हजारों लोगों की आजीविका पर अनिश्चितता छा गई है।

श्रीलंका ने 2017 में ओटावा संधि की अभिपुष्टि की थी जिसके अनुसार, 2028 तक द्वीप राष्ट्र को बारूदी सुरंगों से मुक्त होना है। पुष्पारानी के पति, पिता और दो भाई श्रीलंका के विद्रोही समूह ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम’ (लिट्टे) के लिए लड़ते हुए मारे गए और दो अन्य भाई-बहन लापता हैं। पूर्वी श्रीलंका में जन्मी पुष्पारानी स्कूल में पढ़ रही थीं, तभी 1983 में बहुसंख्यक सिंहलियों ने अल्पसंख्यक तमिलों के खिलाफ देशव्यापी अभियान छेड़ा। तब उनके परिवार को देश के उत्तरी हिस्से में जाना पड़ा।

जानें पूरा इतिहास

सिंहलियों के अभियान से उद्वेलित कई तमिल युवा तमिलों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की लड़ाई की खातिर उग्रवादी संगठनों में शामिल हो गए। पुष्पारानी भी किशोरावस्था में ही लिट्टे में शामिल हो गईं। उन्होंने बताया ‘‘चूंकि मेरा पूरा परिवार संगठन के साथ था, इसलिए उन्होंने ही मेरी शादी तय की। मेरी बड़ी बेटी का जन्म 1990 में और छोटी बेटी का जन्म 1992 में हुआ। मेरे पति 1996 में युद्ध में मारे गए और मेरे बच्चों का पालन-पोषण संगठन द्वारा संचालित ‘सेनचोलाई’ घर में हुआ।’’ जब 2009 में लड़ाई समाप्त हुई तो वह अपने बच्चों से मिलीं और जीविका के लिए बारूदी सुरंग हटाने वाले समूहों के साथ काम करना शुरू कर दिया।

भारत-अमेरिका ने थामा श्रीलंका का हाथ

श्रीलंका में बारूदी सुरंग हटाने का अभियान संघर्ष विराम अवधि के दौरान 2002 में शुरू हुआ था और इस प्रयास का समर्थन करने वाले 11 देशों में अमेरिका सबसे बड़ा दानदाता रहा है। अमेरिका ने अब तक परियोजनाओं के लिए प्राप्त 25 करोड़ डॉलर के अनुदान में से लगभग 34 फीसदी का योगदान दिया है। सरकारी ‘नेशनल माइन एक्शन सेंटर’ के निदेशक एम.एम.नईमुद्दीन के अनुसार, पिछले वर्ष प्राप्त अनुदानों में अमेरिका का योगदान 45 फीसदी था। संघर्ष विराम के टूटने के कारण बारूदी सुरंगों को हटाने का अभियान कुछ वर्षों तक बाधित रहने के बावजूद जारी है। अब तक 20.5 लाख से अधिक हथियार, गोला-बारूद और बिना फटे आयुध को हटाया जा चुका है।

लैंडमाइन्स को हटाना चुनौती

कुल 254 वर्ग किलोमीटर भूमि से बारुदी सुरंग हटाई जानी थी और अब केवल 23 वर्ग किलोमीटर भूमि ही बची है। 2028 की समय सीमा तक इसे हासिल किया जा सकता है या नहीं, यह निरंतर वित्त पोषण पर निर्भर करेगा। नईमुद्दीन ने कहा कि सहायता निलंबन की घोषणा के बाद, श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने अपील की और अमेरिका ने समीक्षा तक अपने आवंटित धन के उपयोग की अनुमति दी, जिस पर एक मई को निर्णय होने की उम्मीद है। देश में बारूदी सुरंग हटाने वाले चार समूह सक्रिय हैं। इनमें से एक, ‘डेल्वन असिस्टेंस फॉर सोशल हार्मोनी’ के प्रमुख आनंद चंद्रसिरी ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि 24 जनवरी, 2025 से शुरू हुई 90-दिवसीय समीक्षा अवधि के पूरा होने पर अमेरिका सरकार की वित्तीय सहायता जारी रहेगी।’’ उन्होंने कहा ‘‘अन्यथा श्रीलंका के लिए 2027 के अंत तक लक्ष्य के अनुसार सुरंग-मुक्त स्थिति प्राप्त करने में गंभीर समस्या होगी।

15 साल पहले खत्म हुआ श्रीलंका का गृहयुद्ध

चार समूहों के कर्मचारियों के स्तर में भारी कमी अपरिहार्य होगी।’’ यहां लगभग 3,000 कर्मचारी हैं, जिनमें से अधिकतर नागरिक युद्ध से प्रभावित समुदायों से भर्ती किए गए हैं। नईमुद्दीन ने कहा कि अनिश्चितता के साथ, कुछ समूहों ने पहले ही अपने कर्मचारियों को हटाना शुरू कर दिया है। श्रीलंका का गृह युद्ध 2009 में समाप्त हुआ जब सरकारी सैनिकों ने विद्रोहियों का सफाया कर दिया। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, संघर्ष में लगभग 100,000 लोग मारे गए। संघर्ष के दौरान नागरिक संपत्तियों को गहरा नुकसान हुआ। नुकसान की एक वजह बारुदी सुरंगें भी थीं। चार अप्रैल (एपी) 

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