Highlights
- 1 मार्च 2022 को 6 युवकों ने की आंदोलन की शुरुआत
- राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा
Sri Lanka Crisis: इतिहास इस बात का गवाह है कि हर जन आंदोलन (Public Movement) की नींव कुछ गिने-चुने किरदार ही रखते हैं। यह आंदोलन आगे चलकर या तो अपने लक्ष्य तक पहुंचता है या फिर उसके झंझावात से देश की राजनीतिक या सामाजिक दशाओं में एक बदलाव देखने को मिलता है। श्रीलंका (Sri Lanka) का आंदोलन भी एक ऐसा ही जन आंदोलन है। वहां की जनता सरकार की नीतियों से त्रस्त होकर सड़कों पर उतर आई। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) को देश छोड़कर भागना पड़ा। देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई। लोकतंत्र में ऐसी अनिश्चितता, एक ऐसा अंधेरा कालखंड होता है, जिसके बाद प्रकाश की किरणों का फूटना स्वाभाविक माना जाता है। श्रीलंका को लेकर भी पूरी दुनिया में ऐसी ही उम्मीद जताई जा रही है। इस लेख में हम इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर इतना बड़ा जन आंदोलन कैसे उठ खड़ा हुआ ? कहां से वह चिंगारी उठी जिसने जनता के आक्रोश को शोलों में बदल दिया और सियासत के सूरमा अपना सिर बचाने के लिए इधर-उधर भागते नजर आए?
इस तरह शुरू हुआ आंदोलन
- 1 मार्च 2022 को 6 युवकों ने कैंडल मार्च निकाला
- 10-10 घंटे बिजली कटौती के खिलाफ सड़कों पर उतरे
- धीरे-धीरे आंदोलनकारियों की संख्या बढ़ने लगी
- रोजमर्रा की चीजों की कीमत बढ़ने से जनता बेहाल
- 31 मार्च को कोलंबो के मिरिहाना में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन
- प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज, आंसू गैस छोड़े गए, कई प्रदर्शनकारी घायल
- राजपक्षे सरकार ने इन प्रदर्शनों को कुचलने की पूरी कोशिश की
- एक अप्रैल को श्रीलंका में इमरजेंसी लगा दी गई
- 2 अप्रैल को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया गया
- 5 अप्रैल को राजपक्षे ने अपना बहुमत गंवा दिया।
- 9 अप्रैल को प्रदर्शनकारियों ने गाले फेस ग्रीन पर कब्जा कर लिया
- 9 मई को गाले फेस ग्रीन पर गोटाबाया की पार्टी के समर्थकों का हमला
- गाले फेस ग्रीन पर हमले में 9 प्रदर्शनकारियों की मौत, 100 से ज्यादा घायल
- हंबनटोटा में राष्ट्रपति राजपक्षे के पैतृक घर में आग लगा दी गई
- महिंदा राजपक्षे ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया
- प्रदर्शनकारियों पीएम के सरकारी आवास टेंपल ट्रीज पर हमला बोल दिया
- महिंदा राजपक्षे ने परिवार समेत त्रिंकोमाली नेवल बेस में शरण ली
- 9 जुलाई को पब्लिक ने राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा किया
- राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति भवन छोड़कर भाग खड़े हुए
- 13 जुलाई को राष्ट्रपति राजपक्षे परिवार समेत मालदीव भाग गए
मोमबत्तियां और पोस्टर लेकर घरों से निकल पड़े
दरअसल, इस जनआंदोलन की शुरुआत 6 युवकों ने शुरू की थी। लेकिन यह आंदोलन इतना व्यापक हो जाएगा शायद उन्होंने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। सबसे पहले एक मार्च 2022 श्रीलंका के कोहुवाला शहर में 6 लड़के हाथों में मोमबत्तियां और पोस्टर लेकर घरों से निकल पड़े। इन्हें रोजाना 10-10 घंटे बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा था।
डूबती अर्थव्यवस्था, आसमान छूती कीमतें
श्रीलंका का विदेश मुद्रा भंडार खाली हो चुका था। खजाने में इतने पैसे भी नहीं बचे थे कि जरूरी चीजों को वह दूसरे देशों से मंगा सके। आयात ठप हो चुका था। श्रीलंका को दवा, खाने के सामान और ईंधन के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है और आयात ठप होने पर लोगों को रोजमर्रा की जरूरी चीजें नहीं मिल पा रही थी। अगर कहीं मिल भी रही थी इसके लिए उन्हें दोगुना पैसा देना पड़ रहा था। अनाज, चीनी, मिल्क पाउडर, सब्जियां तक हर जरूरी सामान की कमी हो गई थी। विपक्षी दलों की ओर से भी इस बदहाल स्थिति के खिलाफ कोई मजबूती से आवाज नहीं उठा रहा था।
दो हफ्ते में आंदोलन श्रीलंका के कई शहरों में फैला
शुरुआत में जब ये लड़के रास्ते पर पोस्टर लेकर खड़े होते थे तो लोगों को यह मजाक लगता था। पहले दिन 6 स्टूडेंट ही विरोध के लिए उतरे। दूसरे दिन इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई। धीरे-धीरे लोग इस आंदोलन से जुड़ते गए। दो हफ्ते बाद कोलंबो की प्रमुख सड़कों पर शांतिपूर्वक आंदोलन किए गए। इसके बाद सैंकड़ों-हजारों लोग जुड़ते गए। दो हफ्ते के अंदर ही छोटे स्तर पर शुरू किया गया यह आंदोलन जन-आंदोलन बनकर श्रीलंका की राजधानी कोलंबो और मिरिहाना और गाले तक फैल गया।
31 मार्च को मिरिहाना में बड़ा विरोध प्रदर्शन
31 मार्च को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के मिरिहाना में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। इसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए जबकि कई लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया।
चर्चित चेहरे भी आंदोलन से जुड़ने लगे
धीरे-धीरे श्रीलंका के चर्चित चेहरे भी इस आंदोलन से जुड़ने लगे। मिराहाना में पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ सनथ जयसूर्या, कुमार संगकारा, मर्वन अट्टापट्टू, मुरलीधरन जैसे क्रिकेटरों ने आवाज उठाई। श्रीलंका की विपक्षी पार्टी SBJ के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति आर प्रेमदासा के बेटे सजित प्रेमदासा मार्च के अंत तक इस आंदोलन से जुड़ चुके थे। उनके अलावा तमिल नेशनल अलायंस, नेशनल पीपुल्स पावर, जनता विमुक्ति पेरामुना, फ्रंटलाइन सोशलि्ट पार्टी जैसी पार्टियां भी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आईं।
आंदोलन को कुचलने की कोशिश
राजपक्षे सरकार ने इन प्रदर्शनों को कुचलने की पूरी कोशिश की। एक अप्रैल को श्रीलंका में इमरजेंसी लगा दी गई। 2 अप्रैल को फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम समेत सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया गया। हालांकि ये बैन 15 घंटे बाद ही हटा लिया गया।
राजपक्षे कैबिनेट का इस्तीफा
सरकार पर जनता के विरोध का सीधा दबाव था लिहाजा राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को छोड़कर पूरी कैबिनेट को इस्तीफा देना पड़ा। 5 अप्रैल को राजपक्षे ने अपना बहुमत गंवा दिया। इसके साथ ही देश से आपातकाल को हटा लिया गया। उन्होंने विपक्षी दलों को सरकार में शामिल होने का न्यौता दिया लेकिन विरोध प्रदर्शन नहीं रुका।
गाले फेस ग्रीन पर कब्जा
कोलंबो में 9 अप्रैल को प्रदर्शनकारियों ने गाले फेस ग्रीन पर कब्जा कर लिया और वहां प्रोटेस्ट का कैंप बना दिया। यह जगह करीब 5 हेक्टेयर फैला हुआ है। इस प्रोटेस्ट कैंप में खाने-पीने से लेकर मेडिकल फैसिलिटी तक की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े सामान की कीमतें हर रोज आसमान छू रही थी।
प्रदर्शनकारियों पर हमला, 9 की मौत
9 मई को गाले फेस ग्राीन में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोटाबाया की पार्टी के समर्थकों ने हमला कर दिया। इस हमले में 9 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
राष्ट्रपति राजपक्षे के घर में आगजनी
इस हमले से लोगों का गुस्सा और बढ़ गया। लोगों का प्रदर्शन हिंसक हो उठा। श्रीलंका के कई राजनेताओं के घरों पर हमले शुरू हो गए। नेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया गया। हंबनटोटा में राष्ट्रपति राजपक्षे के पैतृक घर में आग लगा दी गई। 9 मई को महिंदा राजपक्षे ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया। प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो स्थित उनके सरकारी टेंपल ट्रीज पर हमला बोल दिया। महिंदा राजपक्षे जान बचाने के लिए परिवार समेत त्रिंकोमाली नेवल बेस में शरण ली।
राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा, राजपक्षे विदेश भागे
श्रीलंका में 6 मई से 20 मई तक इमरजेंसी लगाई गई लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। 9 जुलाई को सड़कों पर उतरी जनता ने राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा कर लिया। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति भवन छोड़कर भाग खड़े हुए। 13 जुलाई को राष्ट्रपति राजपक्षे परिवार समेत मालदीव भाग गए। श्रीलंका में फिर से इमरजेंसी लगा दी गई। 6 लोगों से शुरू हुए इस आंदोलन ने राष्ट्रपति को अपना देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर कर दिया।