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Sri Lanka Crisis: कैसे पहुंचे अर्श से फर्श तक श्रीलंका के राष्ट्रपति, जानें पूरा घटनाक्रम

Sri Lanka Crisis: कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन और केमिकल फर्टीलाइजर्स पर बैन की गलत सलाह ने श्रीलंका की आर्थिक हालात को खराब करने में बड़ी भूमिका अदा की

Reported By : PTI Edited By : Shailendra Tiwari Published : Jul 13, 2022 16:16 IST, Updated : Jul 13, 2022 16:16 IST
Ex President of Sri lanka Gotabaya Rajpakshe
Image Source : PTI Ex President of Sri lanka Gotabaya Rajpakshe

Highlights

  • मालदीव की राजधानी माले में राजपक्षे ने ली पनाह
  • प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर किया था कब्जा
  • पीएम रानिल विक्रमसिंघे नई सरकार के गठन के बाद देंगे इस्तीफा

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका में गहराते इकोनॉमिक क्राइसिस के बीच बुधवार को देश छोड़कर जाने वाले राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश के सबसे शक्तिशाली परिवार के उन 6 सदस्यों में से अंतिम सदस्य थे जो सत्ता से चिपके हुए थे। एक इमिग्रेशन ऑफिसर ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए नाम न उजागर करने की शर्त पर इसकी जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि राजपक्षे, उनकी पत्नी और 2 बॉडीगार्ड देश छोड़कर मालदीव की राजधानी माले चले गए हैं। उन्होंने ऐसे वक्त में देश छोड़ा है जब भारी संख्या में प्रदर्शनकारी उनके ऑफिसियल रेजिडेंस और ऑफिस में घुस गए थे। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के आवास में भी घुसे थे, जिन्होंने कहा है कि वह नई सरकार के गठन के बाद पद से इस्तीफा दे देंगे। 

राजपक्षे परिवार के अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी

महिंदा राजपक्षे के 2005 में राष्ट्रपति बनने से पहले राजपक्षे परिवार का ग्रामीण दक्षिण जिले में स्थानीय राजनीति में दशकों से अच्छा-खासा दबदबा था और उनके पास बहुत जमीन थी। द्वीपीय देश की बौद्ध-सिंहली बहुसंख्यक आबादी की नेशनलिस्ट सेंटीमेंट की नब्ज पकड़ते हुए उन्होंने 2009 में श्रीलंका को जातीय तमिल बागियों से छुटकारा दिलाया और 26 साल तक चले क्रूर गृह युद्ध को खत्म कराया। उनके छोटे भाई गोटबाया उस समय एक प्रभावशाली अधिकारी और रक्षा मंत्रालय में मिलट्री स्ट्रैजिस्ट थे। 

महिंदा 2015 तक सत्ता में रहे और उन्हें उनके पूर्व सहायक के नेतृत्व वाले विपक्ष से हार मिली। लेकिन परिवार ने 2019 में वापसी की और गोटबाया ईस्टर संडे आतंकवादी आत्मघाती धमाकों के बाद सुरक्षा बहाल करने के वादे के साथ राष्ट्रपति चुनाव जीत गए। उन्होंने देश में नेशनलिज्म को वापस लाने और स्टेबिलटी और डेवलपमेंट के संदेश के साथ देश को इकोनॉमिक क्राइसिस से बाहर निकालने का आह्वान किया। लेकिन इसके बजाय उन्होंने एक के बाद एक घातक गलतियां की, जिसने देश को अभूतपूर्व संकट के में धकेल दिया।

लॉकडाउन और केमिकल फर्टीलाइजर्स पर बैन

ईस्टर धमाकों के बाद पर्यटन में गिरावट और राष्ट्रपति के गृह क्षेत्र में एक पोर्ट और एयरपोर्ट समेत विवादित डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर विदेश से लिए कर्ज को चुकाने के दबाव के बीच राजपक्षे ने आर्थिक सलाहकारों की एक नहीं सुनी और श्रीलंका के इतिहास में टैक्स में सबसे बड़ी कटौती की। यह खर्च बढ़ाने के लिए किया गया लेकिन आलोचकों ने वार्निंग दी कि इससे सरकार का रेवेन्यू कम हो जाएगा। कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन और केमिकल फर्टीलाइजर्स पर बैन की गलत सलाह ने श्रीलंका की आर्थिक हालात को खराब करने में बड़ी भूमिका अदा की। 

श्रीलंका के पास जल्द ही नकदी की कमी हो गई और वह भारी भरकम कर्ज नहीं चुका पाया। खाने की चीजें, गैस सिलेंडर, फ्यूल और मेडिसिन की किल्लत ने लोगों के गुस्से को बढ़ा दिया और कई लोगों ने इसके पीछे मिसमैनेजमेंट, करप्शन और नेपोटिज्म को वजह बताई। 

अंत की शुरुआत

राजपक्षे परिवार के छवि गिरने की शुरुआत अप्रैल में हुई, जब बढ़ते प्रदर्शनों के कारण उनके 3 रिश्तेदारों को सरकार में पद छोड़ने पड़े। मई में सरकार समर्थकों ने हिंसा की एक घटना के बाद प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया। इस पर प्रदर्शनकारियों का गुस्सा महिंदा राजपक्षे के खिलाफ फूट पड़ा और उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया जिसके बाद उन्होंने किले में तब्दील कर दिए गए एक नेवल बेस में पनाह ली। 

लेकिन गोटबाया के इस्तीफा न देने के अड़ियल रवैये के बाद गलियों में 'Gota Go Home' के नारों ने जोर पकड़ लिया। इसके बाद भी उन्होंने अपने आप को बचाने के लिए विक्रमसिंघे का सहारा लिया और उन्हें देश को रसातल से बाहर निकालने के लिए PM नियुक्त कर दिया। हालांकि, विक्रमसिंघे को इस काम के लिए पॉलिटिकल कोपरेशन और जनता का सपोर्ट नहीं मिला।

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