Myanmar News: भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं। पिछले तीन हफ्ते में तो सेना और जुंटा यानी सैन्य शासन के बीच जोरदार संघर्ष हो रहा है। जुंटा शासन म्यांमार की मौजूदा सरकार को कहा जाता है। वहां 2021 में तख्ता पलट हो गया था। सेना ने वहां की लोकप्रिय नेता आंग सांग सू की को गिरफ्तार कर जेल डाल दिया था। अब वहां फिर से लोकतंत्र समर्थ फोर्स और सेना के बीच जंग छिड़ गई है। लोकतंत्र समर्थक फोर्सेस ने इसे 'ऑपरेशन 1027' नाम दिया है। ऑपरेशन 1027, वो तारीख है जिस दिन इसे शुरू किया गया था। फोर्सेस ने सेना के खिलाफ 27 अक्टूबर को ऑपरेशन लॉन्च किया था।
क्या है ऑपरेशन 1027?
इस साल 27 अक्टूबर को म्यांमार के तीन विद्रोही गुट साथ आए। ये थे- अराकन आर्मी (AA), म्यांमार नेशनल डिफेंस अलायंस आर्मी (MNDAA) और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA)। चूंकि, वहां के सैन्य शासन के खिलाफ इन तीन गुटों ने 27 अक्टूबर को विद्रोह छेड़ा था, इसलिए इसे 'ऑपरेशन 1027' नाम दिया गया है। म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी इन तीनों में सबसे ताकतवर मानी जाती है। ऑपरेशन 1027 को यही लीड कर रही है। इसका गठन 1989 में हुआ था. इसमें लगभग 6 हजार लड़ाके हैं।
2009 में हुआ था अराकन आर्मी का गठन
अराकन आर्मी का गठन 2009 में हुआ था। ये रखाइन प्रांत में एक्टिव है और यूनाइटेड लीग ऑफ अराकन (ULA) की मिलिट्री विंग है। इसके नेता त्वान म्राट नाइंग हैं। माना जाता है कि इसके पास 35 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं, जो काचिन, रखाइन और शान प्रांत में एक्टिव हैं।
विद्रोह किस बात का?
इस पूरे ऑपरेशन का मकसद वहां के सैन्य शासन का मुकाबला करना है। 'ब्रदरहुड अलायंस' के नाम से बना ये विद्रोही गठबंधन उत्तरी शान प्रांत में सेना और उसके सहयोगी सैन्य संगठनों को खदेड़ना है। ये प्रांत म्यांमार-चीन सीमा के पास पड़ता है। 27 अक्टूबर को अलायंस ने बयान जारी कर कहा था कि उनके ऑपरेशन का मकसद नागरिकों की रक्षा करना, आत्मरक्षा करना, अपने इलाकों पर नियंत्रण हासिल करना और म्यांमार सेना के हमलों और हवाई हमलों का जवाब देना है।
भारत के लिए क्यों है चिंता की बात?
म्यांमार में चल रहे इस संघर्ष ने चिंता बढ़ा दी है। चीन ने भी संघर्षविराम की बात कही है। वहीं, भारत के लिए ये और बड़ी चिंता की बात है। दरअसल, संघर्ष की वजह से म्यांमार से हजारों शरणार्थी पहले ही मिजोरम में आकर बस चुके हैं। फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से अब तक 31 हजार शरणार्थी आ चुके हैं। शरणार्थियों के आने से पूर्वोत्तर भारत में तनाव फैलने की आशंका है। म्यांमार के चिन जातीय समूह का मणिपुर के कुकी के साथ अच्छे संबंध हैं। वहीं, मणिपुर के मैतेई उग्रवादी संगठनों की म्यांमार में भी मौजूदगी है।