Sheikh Hasina News: बांग्लादेशी की प्रधानमंत्री शेख हसीना चुनाव में एक बार फिर भारी बहुमत से जीत गई हैं। उन्हें इतना प्रचंड बहुमत मिला कि अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि संसद में अब विपक्ष में कौन बैठेगा? क्योंकि 300 में से दो तिहाई सीट अकेले हसीना की पार्टी ने जीत ली हैं। भारत के लिए फायदे वाली बात यह है कि हसीना भारत को दोस्त मानती हैं। हसीना एकतरफा हुए चुनाव में वह लगातार चौथा कार्यकाल हासिल करने वाली हैं।
शेख हसीना की जीत कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि कहीं न कहीं इसका अंदाजा सभी को था। लेकिन इस चुनाव में छिटपुट हिंसा और प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी और उनके सहयोगी दलों द्वारा बहिष्कार के बीच देखा जा सकता है कि जातीय पार्टी से आगे निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। अवामी लीग ने 155 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की है, जबकि जातीय पार्टी ने महज आठ सीटें हासिल की हैं। इसमें कहा गया है कि 45 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।
सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीएनपी ने किया बहिष्कार
यह आंकड़े संसद में विपक्ष की ताकत और भूमिका के बारे में सवाल उठाते हैं। खासकर तब जब सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया हो। सत्तारूढ़ पार्टी के निर्दलीय उम्मीदवारों ने अवामी लीग और जातीय पार्टी के मौजूदा सांसदों सहित दर्जनों दिग्गजों पर चौंकाने वाली जीत हासिल की है। जातीय पार्टी सिर्फ आठ सीटों के साथ संसद में फिर से आधिकारिक विपक्ष बनने के लिए तैयार है। जबकि आवामी लीग को उन्हीं सीटों पर नुकसान हुआ, जो सीटों के बंटवारे के समझौते के तहत छोड़ी गई थीं।
जीत से बदल गया राजनीतिक परिदृश्य
अवामी लीग के बागी उम्मीदवारों ने जातीय पार्टी की 61 सीटों की तुलना में लगभग छह गुना अधिक सीटें जीती हैं। अवामी लीग ने 299 निर्वाचन क्षेत्रों में से 211 के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया है। इन निर्दलीय उम्मीदवारों की अप्रत्याशित जीत ने राजनीतिक परिदृश्य को काफी बदल दिया है, जो सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर आंतरिक प्रतिस्पर्धा के एक नए युग का संकेत देता है।
अवामी लीग ने अपने बागी उम्मीदवारों को इस बार स्वतंत्र रूप से लड़ने की अनुमति दी थी ताकि संतोषजनक वोटिंग के लिए मतदाताओं के बीच समर्थन जुटाया जा सके। अवामी लीग के जो उम्मीदवार निर्दलीय उम्मीदवारों से हार गए हैं, उनमें राज्य के तीन मंत्री महबूब अलीम, एनामुर रहमान और स्वपन भट्टाचार्य शामिल हैं।
कौन होगा विपक्ष, निर्दलीय तो नहीं हो सकते
रिपोर्ट के अनुसार अवामी लीग के संपूर्ण बहुमत के बीच निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत देश की राजनीति में संकट पैदा कर सकती है। यह अवामी लीग के सहयोगियों के बीच भी संकट पैदा कर सकता है। राजनीतिक में समझ रखने वालों का कहना है कि उन्हें लगता है कि अवामी लीग हमेशा अपनी रणनीति के कारण आगे रहती है, न कि वैचारिक रुख के लिए। एक मजबूत विपक्ष होना चाहिए था। सिर्फ नाम के लिए नहीं। ऐसा नहीं लगता कि निर्दलीय उम्मीदवार संसद में विपक्ष की भूमिका निभाएंगे।