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रूस-यूक्रेन जंग के बीच ताइवान में चीनी विमानों की घुसपैठ, क्या है 'ड्रेगन' की मंशा, ताइवान क्यों चीन के लिए अहम?

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध भीषण हो गया है। इस जंग के बीच चीन भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उसने युद्ध के बीच ताइवान के आकाश में 9 चीनी विमानों ने घुसपैठ की है। जानिए ड्रेगन की मंशा क्या है, आखिर क्यों हैं ताइवान के साथ चीन के तल्ख रिश्ते। क्या है वन नेशन की चाइना पॉलिसी, इसे विस्तार समझिए।

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: February 25, 2022 14:11 IST
China and Taiwan Relation- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV FILE PHOTO China and Taiwan Relation

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध भीषण हो गया है। ऐसे में रूस ने यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए ताकत झोंक रखी है। राजधानी कीव में दोनों पक्षों में जोरदार जंग चल रही है। इस जंग के बीच चीन भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उसने युद्ध के बीच ताइवान के आकाश में 9 चीनी विमानों ने घुसपैठ की है। जानिए ड्रेगन की मंशा क्या है, आखिर क्यों हैं ताइवान के साथ चीन के तल्ख रिश्ते। क्या है वन नेशन की चाइना पॉलिसी, इसे विस्तार समझिए।

इससे पहले कि हम चीन और ताइवान के बीच रिश्तों को समझते हैं। पहले यह जान लेना जरूरी है कि ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग वेन इस नाजुक मौके पर अपनी सेना को पूरी तरह से तैयार रहने पर काम कर रही हैं। खासतौर पर चीन से लगे इलाकों पर वे अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी हुई हैं। जाहिर है वे यूक्रेन और रूस के संकट पर यूक्रेन की संप्रभुता का ही पक्ष लेंगी। वे अपने ट्वीट संदेश में यूक्रेन के प्रति अपना समर्थन जता चुकी हैं। 

यूक्रेन मामले में अमेरिका की कमजोरी का फायदा उठाना चाहेगा चीन

अब हम समझते हैं चीन और ताइवान के रिश्तों की डोर के बारे में कि आखिर क्यों चीन ताइवान को कब्जाने के मंसूबे पालता रहा है। चीन को यह मालूम है कि नाटो देशों का यूक्रेन मामले पर बैकफुट पर आना और अमेरिका का इस युद्ध से खुद को दूर रखना कहीं न कहीं अमेरिका का डिफेंस मोड पर अपने आप को प्रस्तुत करना है। इसका फायदा चीन पूरी तरह उठाना चाहता है। ये बात अलग है कि ट्रंप के कार्यकाल में चीन ने ताइवान पर अपने इरादे जताए थे तो ट्रंप ने चीन को धमकी दे डाली थीा। लेकिन अब बाइडन जब रूस और यूक्रेन के मामले में अभी तक डिफेंसिव नजर आ रहे हैं, चीन इसका पूरा फायदा उठाना चाहेगा।

क्या है ताइवान से चीनी संबंधों का समीकरण?

1. चीन और स्वाशासी द्वीपीय क्षेत्र ताइवान के बीच संबंध हमेशा तल्ख रहे हैं। ताकतवर ड्रेगन के दबाव के बावजूद ताइवान अपनी स्वतंत्रता को लेकर लगातार कोशिशों में लगा रहता है। चीन और ताइवान ये संबंध चीन की आजादी के बाद से ही उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 

2. चीन के ताइवान के साथ संबंध साल 2016 में तब बिगड़ गए थे, जब राष्ट्रपति साई इंग-वेन सत्ता में आई। उनकी पार्टी ने ताइवान को चीन के हिस्से के तौर पर मान्यता देने से इन्कार कर दिया था।

3. चीन और ताइवान में तनाव के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने ताइवान को लेकर दो बड़ी बातें कहीं थी। जिनफिंग ने कहा था कि ताइवान के सभी लोगों को साफतौर पर इस बात का अहसास होना चाहिए कि ताइवान की आजादी उसके लिए सिर्फ गंभीर त्रासदी लाएगी। हम शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए व्यापक स्थान बनाने को तैयार है, लेकिन हम अलगाववादी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं छोड़ेंगे।

4. इसके साथ ही जिनपिंग ने यह भी साफ कर दिया था कि एकीकरण के लिए वह सेना का इस्तेमाल न करने का वादा नहीं कर सकते और सभी जरूरी विकल्प को सुरक्षित रखते हैं। यह बात उन्होंने बीजिंग के ग्रेट हॉल ऑफ पीपल्स में ताइवान नीति से जुड़े कार्यक्रम के दौरान कही थी।

जानिए 1946 के गृहयुद्ध के बाद कैसे बना ताइवान?

गौरतलब है कि चीन में दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1946 से 1949 तक राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्ट पीपुल्स आर्मी के बीच गृह युद्ध हुआ था। 1949 में खत्म हुए इस युद्ध में राष्ट्रवादी हार गए और चीन की मुख्यभूमि से भागकर ताइवान नाम के द्वीप पर चले गए। उन्होंने ताइवान को एक स्वतंत्र देश घोषित किया और उसका आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रख दिया गया।

4 बिंदुओं से जानिए क्या है वन चाइना पॉलिसी

1. वन चाइना पॉलिसी का मतलब उस नीति से है, जिसके मुताबिक़ 'चीन' नाम का एक ही राष्ट्र है और ताइवान अलग देश नहीं, बल्कि उसका प्रांत है।

2. पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (पीआरसी), जिसे आमतौर पर चीन कहा जाता है, वो साल 1949 में बना था। इसके तहत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र आते हैं।

3. दूसरी तरफ रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) है, जिसका साल 1911 से 1949 के बीच चीन पर कब्ज़ा था, लेकिन अब उसके पास ताइवान और कुछ द्वीप समूह हैं। इसे आम तौर पर ताइवान कहा जाता है।

4. वन चाइना पॉलिसी का मतलब ये है कि दुनिया के जो देश पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) के साथ कूटनीतिक रिश्ते चाहते हैं, उन्हें रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (ताइवान) से सारे आधिकारिक रिश्ते तोड़ने होंगे।

कूटनीतिक जगत में कैसे हैं चीन-ताइवान संबंध?

कूटनीतिक जगत में यही माना जाता है कि चीन एक है और ताइवान उसका हिस्सा है। इस नीति के तहत अमेरिका, ताइवान के बजाय चीन से आधिकारिक रिश्ते रखता है, लेकिन ताइवान से उसके अनाधिकारिक, पर मजबूत ताल्लुक रहे हैं। 

'चाइनीज ताइपे' नाम का क्या है ओलिंपिक कनेक्शन?

ताइवान चीन का ही हिस्सा है इसका एक उदाहरण यह भी है कि ओलंपिक खेल जैसे अंतरराष्ट्रीय समारोह में 'चीन' का नाम इस्तेमाल नहीं कर सकता। इसकी वजह वो लंबे समय से ऐसे मंचों पर "चाइनीज ताइपे' के नाम के साथ हिस्सा लेता है। अफ्रीका और कैरेबियाई क्षेत्र के कई छोटे देश अतीत में वित्तीय सहयोग के चलते चीन और ताइवान, दोनों से बारी-बारी रिश्ते बना और तोड़ चुके हैं। 

वन चाइना पॉलिसी का चीन को क्या मिला फायदा?

वन चाइना पॉलिसी से चीन को फ़ायदा हुआ और ताइवान कूटनीतिक स्तर पर अलग-थलग है। दुनिया के ज्यादातर देश और संयुक्त राष्ट्र उसे स्वतंत्र देश नहीं मानते, लेकिन इसके बावजूद वो पूरी तरह अलग नहीं है। अमेरिका समय-समय पर ताइवान के पक्ष में झुकाव बताकर चीन को तंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ता, क्योंकि अमेरिका जानता है कि ताइवान चीन की दुखती रग है।

ये बातें हैं खास

80% लोग ताइवान के मूल निवासी हैं। यहां 15 फीसदी लोग चीन से आकर बसे हैं, जबकि 5% अन्य देशों से आए हैं।

1996 में पहली बार हुआ था ताइवान में राष्ट्रपति पद का चुनाव। तब ली तेंग हुई बने थे राष्ट्रपति।

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