Highlights
- श्रीलंका में संसद के उपाध्यक्ष पद के लिए गुप्त मतदान
- सरकार समर्थित उम्मीदवार को जीत मिली बड़ी जीत
- उपाध्यक्ष पद के चुनाव से राजपक्षे की स्थिति मजबूत
Sri Lanka Crisis: श्रीलंका में बृहस्पतिवार को संसद के उपाध्यक्ष पद के लिए गुप्त मतदान के जरिये हुए चुनाव में सरकार समर्थित उम्मीदवार को जीत मिली। इसे संकटग्रस्त राजपक्षे परिवार के लिए अहम जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इस जीत से सत्तारूढ़ एसएलपीपी गठबंधन की संसद में बहुमत साबित करने की क्षमता भी प्रतिबिंबित होती है।
इस्तीफे के बाद फिर निर्वाचित हुए संसद के उपाध्यक्ष-
उल्लेखनीय है कि देश की अर्थव्यवस्था के कथित कुप्रबंधन के चलते श्रीलंका में सरकार के इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। सांसद रंजीत सियामबालापितिया दोबारा उसी पद पर निर्वाचित हुए जिस पद से उन्होंने इस्तीफा दिया था। यह पद संसद के उपाध्यक्ष का है। सियामबालापितिया पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के सदस्य हैं। उन्होंने अपने पद से इसलिए इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उनकी पार्टी ने सरकार से अलग होने का फैसला किया था।
65 के मुकाबले 148 मतों से जीत-
संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अबेयावर्दने ने घोषणा की कि सियामबालापितया को संसद के उपाध्यक्ष पद पर 65 के मुकाबले 148 मतों से चुना गया है जबकि तीन मतों को अमान्य करार दिया गया। एसएलएफपी के सरकार से अलग होने के बावजूद सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदजना पेरामुना (एसएलपीपी) ने सियामबालापितिया का समर्थन किया ताकि यह दिखाया जा सके कि सरकार का सदन में बहुमत बरकरार है। उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचन के बाद सियामबालापितिया ने कहा कि उन्हें सर्वसम्मति से निर्वाचित होने की उम्मीद थी।
मुख्य विपक्षी नेता सजीथ प्रेमदासा ने कहा कि उन्होंने इम्तियाज बाकीर मरकर को अपना प्रत्याशी बनाने का फैसला किया क्योंकि उन्हें पता था कि सत्तारूढ़ एसएलपीपी सियामबालापितिया का गुप्त मतदान के दौरान समर्थन करेगी। प्रेमदासा ने सियामबालापितिया पर ‘‘सरकार की कठपुतली’’होने का आरोप लगाया।
राजपक्षे सरकार फिर मजबूत-
उल्लेखनीय है कि सरकार का सदन में बहुमत उस समय संकट में लग रहा था जब सत्तारूढ़ गठबंधन के करीब 40 सांसदों ने खुद को सरकार से अलग घोषित कर दिया। उन्होंने यह कदम राजपक्षे परिवार के इस्तीफे की मांग को लेकर हो रहे प्रदर्शनों के मद्देनजर उठाया। सत्तारूढ़ गठबंधन के अन्य सदस्यों ने भी प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे की मांग की ताकि सभी दलों के प्रतिनिधियों को मिलाकर अंतरिम सरकार बनाई जा सके। हालांकि, राजपक्षे लगातार सदन में बहुमत होने का दावा करते रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उपाध्यक्ष पद के चुनाव से महिंदा राजपक्षे की स्थिति दोबारा मजबूत हुई है।