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Prayuth Chan-ocha: क्यों रो रहे हैं थाईलैंड के प्रधानमंत्री? जानिए तस्वीर में छुपी दर्द की उस कहानी को, जिसे झेल रहा है पूरा देश

Prayuth Chan-ocha: प्रयुथ के विरोधियों का तर्क है कि उन्होंने एक ऐसे कानून का उल्लंघन किया है, जो प्रधानमंत्री को आठ साल तक पद पर रहने की अनुमति देता है। प्रयुथ ने 24 अगस्त 2014 को आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री का पद संभाला था। ऐसे में उनका आठ साल का कार्यकाल पूरा हो गया है।

Written By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Published : Aug 25, 2022 13:04 IST, Updated : Dec 14, 2022 23:01 IST
Thailand Crying PM Prayuth Chan-ocha
Image Source : INDIA TV Thailand Crying PM Prayuth Chan-ocha

Highlights

  • थाईलैंड में निलंबित हुए प्रधानमंत्री
  • 2014 में हुआ था सैन्य तख्तापलट
  • कोर्ट ने पीएम को लेकर सुनाया फैसला

Prayuth Chan-ocha: थाईलैंड के संवैधानिक न्यायालय ने बुधवार को आदेश दिया कि जब तक वह इसका निर्णय नहीं कर लेता कि थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुथ चान-ओचा पद पर बने रहने की कानूनी सीमा पार कर चुके हैं या नहीं, तब तक के लिए उन्हें कार्यभार से दूर रहना होगा। अदालत ने इस दलील पर सहमति जताई कि प्रयुथ के कार्यकाल की सीमा पार होने को लेकर दायर याचिका पर विचार करने के पर्याप्त कारण हैं। अदालत के सदस्यों ने चार के मुकाबले पांच वोटों से प्रयुथ को कार्यभार से मुक्त करने पर सहमति जताई है। इस बीच, प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता अनुचा बी. ने कहा कि उप प्रधानमंत्री प्रवित वोंगसुवन प्रधानमंत्री के कामकाज का दायित्व संभालेंगे।

वोंगसुवन, प्रयुथ के नजदीकी राजनीतिक सहयोगी हैं और उसी सैन्य समूह का हिस्सा हैं, जिसने 2014 में तख्तापलट किया था। प्रयुथ के विरोधियों का तर्क है कि उन्होंने एक ऐसे कानून का उल्लंघन किया है, जो प्रधानमंत्री को आठ साल तक पद पर रहने की अनुमति देता है। प्रयुथ ने 24 अगस्त 2014 को आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री का पद संभाला था। ऐसे में उनका आठ साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। वहीं प्रयुथ के समर्थकों का तर्क है कि उनके कार्यकाल को मौजूदा संविधान के लागू होने के बाद से प्रभावी माना जाना चाहिए। देश का संविधान 2017 में लागू हुआ था। इन सबके बीच प्रधानमंत्री प्रयुथ की एक तस्वीर सामने आई, जिसमें वह रोते हुए दिखाई दे रहे हैं। ये तस्वीर अदालत के फैसले के बाद बैंकॉक के सरकारी हाउस की है। जहां प्रयुथ कैबिनेट मंत्रियों के साथ तस्वीर क्लिक करवा रहे थे।

प्रयुथ चान-ओचा थाईलैंड के पूर्व सेनाध्यक्ष हैं, जो 2014 में तख्तापलट के बाद सत्ता में आए थे। उन्होंने सैन्य शक्ति के बल पर चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका था। जिसके बाद केवल दिखावे के लिए 2019 में चुनाव कराए गए, जिसमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। लेकिन एक विपक्षी पार्टी को बाकी पार्टियों के मुकाबले सबसे अधिक सीट मिलने के बावजूद भी प्रयुथ ने प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ी।

क्या अदालत का फैसला विपक्षी पार्टियों की जीत है?

थाईलैंड की मीडिया के अनुसार, अदालत का इस तरह का फैसला बेहद दुर्लभ है। इसे विपक्षी पार्टियों की जीत के तौर पर देखा जा रहा है। विपक्षी पार्टियां लंबे समय से चुनावों, संसदीय बहस और कानून के जरिए प्रयुथ चान-ओचा को प्रधानमंत्री के पद से हटाने की केशिशें कर रही हैं। प्रयुथ ने सत्ता में रहते हुए संविधान में संशोधन किए थे और अपने फायदे वाले कानून बनाए थे। उन्होंने संविधान में संशोधन के जरिए ऐसी व्यवस्था बनाई, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनावात्रा के भरोसे वाले लोगों को सत्ता में आने से रोक दिया। थाईलैंड की संसद में कुल 250 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में, मुख्य विपक्षी पार्टी फीयू थाई ने 136 सीटें जीती थीं, जबकि सेना के समर्थन वाली पलांग प्रखरत पार्टी ने 115 सीटें जीतीं। इसके बावजूद प्रयुथ चान-ओचा ने इस्तीफा नहीं दिया और अवैध रूप से सत्ता संभालते रहे।

प्रयुथ चान-ओचा के निलंबन की क्या वजह है?

अदालत ने प्रयुथ चान-ओचा को निलंबित करने का फैसला एक याचिका पर विचार करने के बाद लिया है। जिसमें कहा गया है कि प्रयुथ ने प्रधानमंत्री के लिए निर्धाकित आठ साल की सीमा को पार कर लिया है। ये संशोधन तख्तापलट के बाद 2017 में सेना द्वारा नियुक्त संसदीय समिति ने किया था। ये बदलाव भी किसी और ने नहीं बल्कि खुद प्रयुथ चान-ओचा ने किया था। याचिका विपक्षी पार्टियों ने दायर की थी, जिसमें कहा गया कि अगस्त, 2014 में तख्तापलट के बाद उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। ऐसी स्थिति में उन्होंने संविधान में निर्धारित आठ साल के कार्यकाल की सीमा को पूरा कर लिया है। इस दौरान विपक्ष ने चार बार उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी है।

प्रयुथ के समर्थक क्या तर्क दे रहे हैं?

प्रयुथ चान-ओचा के समर्थकों का कहना है कि उनका प्रधानमंत्री के पद पर कार्यकाल वास्तव में 2017 में शुरू हुआ था। इसी साल प्रधानमंत्री के पद के लिए 8 साल की सीमा से जुड़ा संशोधन संविधान में किया गया था। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि प्रयुथ का कार्यकाल 2019 में शुरू हुआ है। इनका कहना है कि इससे पहले थाईलैंड में कोई चुनाव नहीं हुए थे। 2019 में संसद ने उन्हें एक प्रक्रिया के तहत प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया था। हालांकि विपक्षी दलों का आरोप है कि सेना ने इस चुनाव में स्पष्ट रूप से हस्तक्षेप किया था और प्रयुथ के पक्ष में वोट हासिल किए, जबकि प्रयुथ की सरकार का कहना है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष थे।

अब कौन लेगा प्रयुथ का स्थान?

सरकार के प्रवक्ता अनुचा बुरापचासरी ने कहा कि 77 साल के उप प्रधानमंत्री प्रवित वोंगसुवन प्रधानमंत्री के कामकाज का दायित्व संभालेंगे। प्रवित थाई सेना के पूर्व प्रमुख भी रह चुके हैं। वह लंबे समय से शाही परिवार से जुड़े हुए हैं। उन्हें रूढ़िवादी आंदोलन में एक राजनीतिक किंगमेकर माना जाता है। अगर अदालत फैसला करती है कि प्रयुथ ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है, तो संसद 2019 के चुनाव में चुने गए सांसदों में से एक योग्य उम्मीदवार को नए प्रधानमंत्री के रूप में चुनेगी। प्रयुथ की पलांग प्रखरत पार्टी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन में 17 बड़े और छोटे दल शामिल हैं। ऐसे में सत्ताधारी गठबंधन को अगले प्रधानमंत्री के चुनाव में बहुमत साबित करना होगा।

 
क्या प्रयुथ को बहाल किया जा सकता है?

अगर अदालत को लगता है कि प्रयुथ चान-ओचा का कार्यकाल आधिकारिक तौर पर 2017 या 2019 में शुरू हुआ है, तो उन्हें इस पद पर बहाल किया जा सकता है। इसका मतलब ये है कि वह 2025 या 2027 तक सत्ता में रह सकते हैं। इससे विपक्षी पार्टियों को एक बड़ा झटका लगेगा। वर्तमान में अदालत ने प्रयुथ को इस निलंबन का जवाब देने के लिए 15 दिनों का समय दिया है। लेकिन उसने याचिका पर फैसले सुनाने की कोई समयसीमा तय नहीं की है।

क्या थाईलैंड में जल्द हो सकते हैं चुनाव?

थाईलैंड में संविधान के अनुसार, मई 2023 में चुनाव होंगे लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री के पास ऐसी शक्ति है कि वह निर्वाचित प्रतिनिधि सभा को भंग करके जल्दी चुनाव करवा सकते हैं। ऐसी स्थिति में सदन के भंग होने के 60 दिनों के भीतर चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों का कहना है कि थाईलैंड नवंबर में बैंकॉक में एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन की मेजबानी करेगा, तो उससे पहले चुनाव होने की संभावना नहीं है। 

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