कोलंबो: पाकिस्तान के नए जंगी जहाज पीएनएस तैमूर ने शुक्रवार को श्रीलंका के कोलंबो पोर्ट पर लंगर डाल दिया। इस जंगी जहाज का श्रीलंका पहुंचना एक अहम घटना है क्योंकि बांग्लादेश ने हाल ही में इसे चटगांव बंदरगाह पर आने की इजाजत नहीं दी थी। बाद में श्रीलंका ने इस जहाज को अपने यहां आने की इजाजत दे दी। बता दें कि श्रीलंका ने भारतीय अनुरोधों के बाद सामरिक रूप से अहम माने जाने वाले हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी जहाज को आने की इजाजत रद्द कर दी थी, ऐसे में पाकिस्तानी जहाज को दी गई अनुमति कई सवाल खड़े करती है।
श्रीलंका क्यों पहुंचा है पाकिस्तानी युद्धपोत?
सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि पाकिस्तानी युद्धपोत का श्रीलंका में क्या काम है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएनएस तैमूर पश्चिमी सागर में श्रीलंकाई नौसेना के साथ एक संयुक्त अभ्यास करेगा। ऑनलाइन न्यूज पोर्टल ‘न्यूज फर्स्ट’ की खबर के मुताबिक, पीएनएस तैमूर के 15 अगस्त तक कोलंबो तट पर रहने की उम्मीद है। यह दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच सहयोग एवं सद्भावना बढ़ाने के लिए श्रीलंकाई नेवी द्वारा आयोजित किये जाने वाले कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेगा। इसके अलावा उम्मीद है कि पीएनएस तैमूर 15 अगस्त को अपनी रवानगी से पहले पश्चिमी सागर में श्रीलंकाई नौसेना के साथ एक नेवल ड्रिल करेगा।
तैमूर का आना भारत के लिए खतरे की बात?
सवाल यह उठता है कि क्या तैमूर का श्रीलंका आना किसी भी लिहाज से भारत के लिए खतरनाक है। दरअसल, चीन की ओर से हंबनटोटा बंदरगाह पर 11 से 17 अगस्त के बीच टोही पोत युआन वांग-5 का आना तय था। लेकिन भारत की आपत्तियों के बाद श्रीलंका ने चीन को इसकी इजाजत देने से मना कर दिया। ठीक उसी समय पाकिस्तानी पोत को इजाजत देने से भारतीय एजेंसियों के कान तो खड़े हो ही गए होंगे। पीएनएस तैमूर का निर्माण चीन ने ही किया है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि तैमूर के श्रीलंका आने से भारत को कोई खतरा नहीं है, लेकिन इसकी हरकतों पर नजर रखना जरूही है।
जानें, क्या है पीएनएस तैमूर की खासियत
पीएनएस तैमूर चीन में निर्मित फोर टाइप का 054 A/P फ्रिगेट्स में से दूसरा जंगी जहाज है। इसे 23 जून 2022 को पाकिस्तानी सेना में कमीशन किया गया था। यह जंगी जहाज 134 मीटर लंबा है। चीन युआन क्लास -041 8 डीजल अटैक पनडुब्बियां भी पाकिस्तान के लिए बना रहा है। इन पनडुब्बियों को वह पाकिस्तानी नौसेना को 2028 तक सौंप देगा। माना जा रहा है कि चीन इसके जरिए भारत के आसपास के समुद्री इलाके पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है, लेकिन मौजूदा हालात की बात करें तो यह उसके लिए दूर की कौड़ी ही साबित होगा।