Highlights
- अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति व्यवहार बदला
- अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते हो रहे मजबूत
- जो बाइडेन पाकिस्तान के प्रति अधिक उदार हुए
US Pakistan Relations: इस वक्त पाकिस्तान में पीएमएल-एन (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार सत्ता में है। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ हैं। विपक्ष में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) पार्टी है। खान की सरकार अप्रैल महीने में गिर गई थी। उन्होंने तब आरोप लगाते हुए कहा था कि विपक्ष के साथ मिलकर विदेश में उनके खिलाफ साजिश रची गई है। ताकि पीटीआई की सरकार को गिराया जा सके। उन्होंने बताया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा समिति और कैबिनेट ने वो डॉक्यूमेंट देखा है, जिसे साइफर (गूढ़लेख) कहा जा रहा है।
इमरान खान ने चीख-चीखकर कहा था, 'मैं आपको जो कह रहा हूं, ये ऑफिशियल डॉक्यूमेंट है, कि अगर आप इमरान खान को हटाएंगे, तो आपके अमेरिका से ताल्लुकात अच्छे हो जाएंगे। आप जैसे ही इमरान खान को हटाएंगे, हम आपको माफ कर देंगे।' ये बातें इमरान खान ने अपनी सरकार गिरने से पहले कही थीं। उन्होंने 3 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था और इससे एक दिन पहले 2 अप्रैल को लोगों को संबोधित करते हुए ये खुलासे किए थे। उन्होंने ये भी कहा था कि शहबाज शरीफ की इस साजिश में मिलीभगत है और वह अमेरिका की गुलामी के लिए तैयार हैं।
खान ने कहा था कि अगर ये साजिश सफल होती है, तो क्या भविष्य में कोई प्रधानमंत्री किसी देश को पसंद नहीं आया, तो उसे पैसे का इस्तेमाल कर हटा दिया जाएगा? उन्होंने पाकिस्तान की जनता को इसके खिलाफ प्रदर्शन तक करने को कहा था।
इमरान खान के वक्त कैसे थे अमेरिका के तेवर?
अगर वर्तमान स्थिति देखें, तो पाएंगे कि इमरान खान ने जो कुछ कहा था, वह काफी हद तक सच है। जो बाइडेन राष्ट्रपति बनने के बाद से इमरान खान से मिले तक नहीं, यहां तक कि उन्होंने खान से फोन पर भी बात नहीं की। जबकि खान चाहते थे कि वह बाइडेन से बात करें, उन्होंने कई इंटरव्यू में भी कहा था कि बाइडेन उन्हें फोन तक नहीं करते। उस वक्त अमेरिका पाकिस्तान पर किसी भी तरह से मेहरबान नहीं था। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समय में रोकी गई सैन्य मदद भी लगी रही। यहां तक कि पाकिस्तान को किसी अन्य तरह की मदद या इज्जत तक नहीं दी गई।
इसके अलावा इमरान खान ऐसे वक्त पर रूस दौरे पर थे, जब उसने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। उस वक्त पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगाने का विचार कर चुके थे, जबकि इमरान खान रूस के गुणगान गा रहे थे। खान का तर्क था कि वह स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएंगे, जो पाकिस्तान के हित में होगी। और किसी भी तरह से पश्चिमी देशों की गुलामी नहीं करेंगे। यही वजह है कि वह कई मौकों पर अमेरिका की आलोचना करने से पीछे नहीं हटे। इसके अलावा वह चीन से भी काफी करीबी बनाए हुए थे। उस वक्त ऐसी खबरें थीं कि चीन पाकिस्तान को अब और मदद नहीं दे रहा है। उसने इस देश में चल रहे अपने कई प्रोजेक्ट बीच में ही रोक दिए हैं। वह आर्थिक हालत खस्ता होने पर भी इस देश को रियायत नहीं दे रहा और आगे के कर्ज के लिए मनमाना ब्याज वसूल रहा है।
वहीं अमेरिका का ऐसा किए जाने के पीछे का एक कारण ये है कि अफगानिस्तान से जाने के बाद अमेरिका चाहता था कि पाकिस्तान उसे अपना हवाई क्षेत्र मुहैया कराए। ताकि वो वहां आतंकियों पर नजर रख सके और हवाई हमलों के साथ ही निगरानी भी कर सके। लेकिन इमरान खान की सरकार ने इसके लिए साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने देश के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किसी अन्य देश में हमलों के लिए नहीं करने देंगे। तब अमेरिकी सरकार के अधिकारियों और वहां की खुफिया एजेंसी सीएआई के निदेशक तक ने पाकिस्तान को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन इमरान खान अपने फैसले पर अडिग रहे।
कैसे पता चला कि इमरान सही थे?
इमरान खान के सत्ता से जाते ही पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते मधुर होने लगे। अचानक से अमेरिका के व्यवहार में बदलाव आने लगा। खान का फोन तक नहीं उठाने वाले बाइडेन ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात की। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में मदद पर लगाई गई रोक के फैसले को पलटते हुए उसे एफ-16 लड़ाकू विमानों के रखरखाव के लिए 45 करोड़ डॉलर की मंजूरी दे दी। जब भारत ने इसपर एतराज जताया, तो अमेरिका ने कहा कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए पाकिस्तान को ये मदद दे रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान में आई बाढ़ के बाद भी उसे मानवीय तौर पर कई बार मदद दी। अब पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बादवा का पूरे सम्मान के साथ स्वागत किया है। ऐसा स्वागत शायद ही पहले कभी किया गया हो।
शहबाज शरीफ की सरकार के आने के बाद ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में ड्रोन हमला कर अल कायदा के नेता अहमान अल जवाहिरी को मार गिराया। तालिबान सरकार ने इसके बाद कहा कि पाकिस्तान ने ही अपना हवाई क्षेत्र अमेरिका को उपलब्ध करवाया था, तभी वह इस हमले को अंजाम दे पाया। यानी जिस बात के लिए इमरान खान साफ इनकार कर चुके थे, शहबाज शरीफ की सरकार आते ही अमेरिका को वो मिल गया, जो वो चाहता था।
भारत के लिए कितनी चिंता की बात?
खबर ये भी आई है कि पाकिस्तान भारत के साथ अपने रिश्तों को सही से मैनेज करना चाहता है, इसलिए भी उसे अमेरिका की मदद की जरूरत है। लेकिन भारत की बात करें, तो वह किसी देश के आगे झुकता नहीं है। चाहे फिर सामने सुपर पावर अमेरिका ही क्यों न खड़ा हो। भारत स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है। उसे अपने हित के लिए जो फैसले ठीक लगते हैं, वो वही फैसले लेता है। हालांकि भारत के लिए चिंता की बात ये हो सकती है कि अमेरिका अब सैन्य तौर पर भी पाकिस्तान की मदद कर रहा है। जिससे वो अपने हथियारों को आसानी से विकसित कर पाएगा। अपने खटारा एफ-16 लड़ाकू विमानों का रखरखाव कर सकेगा। वो अमेरिका से मिलने वाले पैसे को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। तो भारत के लिए चौंकन्ना रहना और इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए रखना जरूरी हो जाता है।
अमेरिका के लिए पाकिस्तान क्यों जरूरी?
अमेरिका के लिए पाकिस्तान इस वक्त बहुत जरूरी हो गया है, ताकि वह अफगानिस्तान में आतंकी हमले और निगरानी कर सके। अमेरिका के अधिकतर सैन्य ठिकाने खाड़ी देशों में हैं, जहां से उसके घातक ड्रोन उड़ान भरते हैं और पाकिस्तान होते हुए अफगानिस्तान में प्रवेश करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने अमेरिका को अपना हवाई क्षेत्र देने से मना कर दिया था। लेकिन अब नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के शासन में स्थिति बदल गई है।
सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, बाइडेन प्रशासन ने नेताओं से कहा है कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ एक डील को अंतिम रूप देने के लिए अंतिम चरण में है। इस डील के बाद अमेरिका के ड्रोन और लड़ाकू विमान आसानी से अफगानिस्तान में हमले और खुफिया निगरानी कर सकेंगे।
अकेला पाकिस्तान ही विकल्प क्यों है?
पाकिस्तान को बदले में अमेरिका से सैन्य मदद मिलेगी, चीन का कर्ज चुकाने में मदद मिलेगी और भारत के साथ रिश्ते मैनेज करने में मदद मिलेगी। इन सबसे इस देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा।
अमेरिका ने अभी तक इस सीक्रेट डील का खुलासा नहीं किया है, न ही उसने ये बताया है कि वह पाकिस्तान को इसके बदले में क्या देगा। पाकिस्तान के अलावा अमेरिका विकल्प के तौर पर उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान को भी देख रहा है। हालांकि इससे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भड़कने का खतरा बढ़ सकता है। तो ऐसी स्थिति में अमेरिका के पास विकल्प के तौर पर केवल पाकिस्तान बचता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की थी कि वह अफगानिस्तान में आतंक रोधी ऑपरेशन चलाना जारी रखेंगे। यही वजह है कि बाइडेन प्रशासन पाकिस्तान पर इतना प्यार उड़ेल रहा है। अगर ये डील सफल हो जाती है तो पाकिस्तान और अमेरिका पर तालिबान का भड़कना पूरी तरह संभव है। वो भी तब, जब अफगानिस्तान की तालिबान सरकार और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। तालिबान ने जवाहिरी की मौत के बाद पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि उसी ने अमेरिका को अपना हवाई क्षेत्र इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी।