Highlights
- पाकिस्तान में महंगाई पहुंची चरम पर
- पाकिस्तान सरकार ने अपने नागरिकों को मरने के लिए छोड़ा
- बाढ़ के लिए दूसरे देशों को जिम्मेदार बताकर पाक मांग रहा मुआवजा
Floods Crisis in pakistan: पाकिस्तान में बाढ़ का कहर ऐसा टूटा है कि कई देशों द्वारा दी गई अंतरराष्ट्रीय मदद भी अब नाकाफी होने लगी है। इसकी वजह ये है कि अपने लोगों को बचाने के लिए पाकिस्तान सिर्फ दूसरे देशों पर ही निर्भर हो गया है। स्वयं से कुछ भी नहीं कर रहा। इस बात से पूरी दुनिया हैरान है कि पाकिस्तान ने अपने लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है। पाकिस्तान के लोगों को अब दो वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल हो गया है। लिहाजा अब उसने किसी दूसरे बहाने दुनिया के देशों से भीख मांगने का तरीका खोज निकाला है।
बता दें कि पाकिस्तान का लगभग एक तिहाई हिस्सा अभी भी विनाशकारी बाढ़ के बाद जलमग्न है। देश के प्रशासन ने संकट के लिए जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है। इससे पाकिस्तानी नागरिकों का जीवन बहुत ही संकट में है। वहीं दूसरी तरफ पाक ने बाढ़ के लिए समृद्ध राष्ट्रों को दोषी ठहराया है। पाकिस्तान का कहना है कि जो वैश्विक जलवायु आपदाओं के लिए जिम्मेदार राष्ट्र वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का बड़ा हिस्सा पैदा करते हैं। इस वजह से यह सब हुआ। इसके लिए अमीर देशों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और मानवीय सहायता को जलवायु मुआवजे के रूप में पाकिस्तान को दिया जाना चाहिए।
पाकिस्तान में महंगाई चरम पर, खाने-पीने के लाले
जलवायु परिवर्तन की औपनिवेशिक विरासत को भी मान्यता दी जानी चाहिए। हालांकि, पाकिस्तानी खुद भी, बाढ़ के मद्देनजर अपने लोगों को बेआसरा छोड़ देने के लिए दोषी है। कई अन्य देशों की तरह, पाकिस्तान के जनसंख्या केंद्र उसकी नदी प्रणालियों के आसपास स्थित हैं। अभी कुछ हफ्ते पहले उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में रहने वाले अली से ने बताया कि कैसे रिकॉर्ड महंगाई के बीच उनका परिवार अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। फिर, बाढ़ ने उनके गांव को तबाह कर दिया और वह इस समय एक विस्थापन शिविर में हैं।
12 वर्ष पहले भी पाकिस्तान में थी भीषण बाढ़
2010 में भी पाकिस्तान के कई हिस्से जलमग्न हो गए थे। मैंने बाढ़ के बाद आपदा बचाव में काम किया और तब से पूरे देश में प्रभावित समुदायों के साथ शोध किए। 2010 में आई बाढ़ से महत्वपूर्ण सबक सीखे गए। दुर्भाग्य से, अधिकारी राष्ट्रीय नीतियों को आकार देने के लिए उनका उपयोग करने में विफल रहे। हाशिये पर पड़े इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित देश के कुछ सबसे गरीब और राजनीतिक रूप से दमित क्षेत्रों में खास तौर से बाढ़ से सबसे ज्यादा तबाही हो रही है, जैसे कि बलूचिस्तान, जहां राज्य के उत्पीड़न के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह चल रहा है। दक्षिणी पंजाब, एक और भारी प्रभावित क्षेत्र, असमान विकास और असमानता का शिकार है। 2010 में बाढ़ के बाद असुरक्षित भूमि अधिकारों को आपदा बचाव अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा के रूप में चिह्नित किया गया था।
पाकिस्तान में किसान बदहाल
पाकिस्तान में, भूमि स्वामित्व राजनीतिक संरक्षण के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। अत्यधिक प्रभावित प्रांतों में कई किसान ऐसे हैं जो जमींदार अभिजात वर्ग के लिए काम करते हैं। इनमें से कई अभिजात वर्गों ने अंग्रेजों के समय औपनिवेशिक शासन का समर्थन किया और उन्हें बदले में भूमि और राजनीतिक शक्ति पर अपनी पकड़ मजबूत करने की सुविधा मिली। ये किसान बटाई पर खेती करते हैं और फसल लगाने के अधिकार के बदले में जमींदारों को फसल में से हिस्सा या धन देते हैं। भूस्वामी भूमि में सुधार पर बहुत कम ध्यान देते हैं। किसान को बटाई पर दी जाने वाली भूमि पर किसानों को महत्वपूर्ण परिवर्तन करने की अनुमति नहीं होती है। हालांकि, जिनके पास भूमि का अधिकार है, वह देश में बाढ़ और भूकंप के बाद घर बनाने के लिए मिलने वाली पुनर्निर्माण सहायता का जमकर उपयोग करते हैं।
पाकिस्तान ने मांगा अमीर देशों से मुआवजा
पाकिस्तान की राष्ट्रीय जलवायु नीति पूर्व चेतावनी प्रणाली, आपदा को झेल पाने वाले बुनियादी ढांचे और निकासी योजनाओं की आवश्यकता तो बताती है, लेकिन इन सिफारिशों को अभी लागू किया जाना बाकी है। बाढ़ के विनाशकारी प्रभावों को वर्षों के खराब शासन ने और बढ़ा दिया है। बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों में विकास का अभाव एक पुरानी समस्या है। और ज़ोनिंग या स्थानांतरण नीतियों की अनुपस्थिति के कारण, समुदाय जलवायु परिवर्तन की आपदाओं की आशंका के बावजूद खतरनाक रूप से जलमार्गों के करीब सीमांत क्षेत्रों में निवास करना जारी रखते हैं। जहां कानून मौजूद हैं, वहां प्रवर्तन मुश्किल हो गया है। बाढ़ से बचाव की कुछ सबसे महत्वपूर्ण प्रणालियां औपनिवेशिक युग की परियोजनाएं हैं, जिनमें से कई जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। क्षतिपूर्ति और जवाबदेही पाकिस्तान वैश्विक उत्सर्जन में एक प्रतिशत से भी कम का योगदान देता है लेकिन जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित शीर्ष 10 देशों में शामिल है। पाकिस्तान के जलवायु परिवर्तन मंत्री का कहना है कि धनी देशों को जलवायु आपदा का सामना करने वाले देशों को मुआवजा देना चाहिए।
अमेरिका और यूरोपी संघ ने किया विरोध
पिछले साल ग्लासगो में सीओपी 26 शिखर सम्मेलन में जलवायु मुआवजा एक विवादास्पद मुद्दा था। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने जलवायु मुआवजे का विरोध किया। हालांकि वैश्विक स्तर पर जलवायु मुआवजा मिलने से पाकिस्तान को मौजूदा संकट से उबरने में मदद मिल सकती है, लेकिन देश को अगली जलवायु तबाही से निपटने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता है। इसके लिए जलवायु आपदा को झेल पाने वाले बुनियादी ढांचे और गरीबी में कमी के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। पाकिस्तान विदेशों से लिए भारी कर्ज को उतारने पर अरबों डॉलर खर्च करता है। इसने अकेले इस वर्ष भुगतान पर 15 अरब अमरीकी डालर का भुगतान किया। यह उसके कुल कर राजस्व का 80 फीसदी से अधिक है। पाकिस्तान में हक-ए-खल्क पार्टी के सदस्य अम्मार अली जान का तर्क है कि ऋणग्रस्तता और जलवायु तबाही के दोहरे संकट का मतलब है कि हमें जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी नीति को बदलने की जरूरत है।