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गधों के सहारे रहा पाकिस्तान हुआ कंगाल, अब सूअरों के भरोसे चला चीन...बनाया दुनिया का सबसे बड़ा पिग फॉर्मिंग टॉवर

दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का मुकाबला करते-करते पाकिस्तान पस्त हो गया। भारत के प्रमुख पड़ोसी और कट्टर दुश्मन पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए गधों का सहारा लिया था। बड़े पैमाने पर इस देश में गधों को पाला जाता था और उन्हें एक्सपोर्ट किया जाता था।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Feb 10, 2023 16:31 IST, Updated : Feb 10, 2023 20:48 IST
चीन का 26 मंजिला पिग फॉर्मिंग टॉवर (फाइल)
Image Source : FILE चीन का 26 मंजिला पिग फॉर्मिंग टॉवर (फाइल)

नई दिल्ली। दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का  मुकाबला करते-करते पाकिस्तान पस्त हो गया। भारत के प्रमुख पड़ोसी और कट्टर दुश्मन पाकिस्तान ने अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए गधों का सहारा लिया था। बड़े पैमाने पर इस देश में गधों को पाला जाता था और उन्हें एक्सपोर्ट किया जाता था। पाकिस्तान का पक्का मित्र चीन उसके गधों का सबसे बड़ा खरीददार था। पाकिस्तान के एक मंत्री ने कहा था कि गधे पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और इनका उत्पादन बढ़ाने से देश की जीडीपी बढ़ेगी। गधों के सहारे जीडीपी बढ़ाने का सपना देख रहे पाकिस्तान का क्या हाल हुआ है, उसे पूरी दुनिया देख रही है। अब अपने मित्र पाकिस्तान की ही तर्ज पर चीन भी चल पड़ा है। चीन भी भारत का पड़ोसी और कट्टर दुश्मन है। यह देश अपने मित्र पाकिस्तान से भी कई कदम इस मामले में आगे निकल गया है। चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए अब सूअरों का सहारा लिया है। इसके लिए चीन ने दुनिया का सबसे बड़ा 26 मंजिला पिग फॉर्मिंग टॉवर बनाया है। 

देश भर में चीन बनाएगा सूअरों के विशालकाय टॉवर 

ड्रैगन ने अभी मध्य चीन के यांग्त्झी नदी के दक्षिणी तट पर स्थित इझोऊ शहर के बाहरी इलाके में 26 मंजिला गगनचुंबी इमारत का निर्माण पिग फॉर्मिंग के लिए किया है। चीन ने इसे दुनिया का सबसे बड़ा फ्री स्टैंडिंग सूअर फॉर्म बताया है। इसमें एक वर्ष में 12 लाख सूअरों का उत्पादन किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। सूअरों के इतने बड़े पैमाने पर फार्मिंग का मकसद खाद्य उत्पादन में सुधार लाना और कृषि उत्पादों पर चीनी निर्भारता को कम करना है। चीन सूअर फॉर्मिंग के जरिये दुनिया भर में कृषि प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना चाहता है। साथ ही वह इसके आयात को कम करके निर्यातक बनना चाहता है। इसलिए चीन ने इसे नेशनल अभियान के तौर पर शुरू किया है और अब पूरे देश भर में इस तरह के गगनचुंबी पिग फॉर्मिंग हाउस बनकर तैयार होने लगे हैं। 

नासा कमांड सेंटर जैसा दिखता है चीन का पिग फॉर्मिंग टॉवर
चीन का यह पिग फॉर्मिंग टॉवर दिखने में नासा के कमांड सेंटर जैसा दिखता है। यह बिग बेन वाले लंदन टॉवर जितना ऊंचा है। यहां वर्दीदारी तकनीशियनों की तैनाती है और हाई क्वालिटी कैमरों से सूअरों की निगरानी रखी जाती है। यहां सूअरों की पहली खेप सितंबर के अंत में आई थी। इसके बाद उन्हें इन औद्योगिक लिफ्टों के जरिये दर्जनों ऊंची मंजिलों पर ले जाया गया। यह सभी सूअर गर्भाधान करने से बच्चे देने तक इसी इमारत में रखे जाएंगे। बच्चे देने की क्षमता खत्म होने पर इन्हें एक्सपोर्ट किया जाएगा। एक वर्ष में करीब 12 लाख सूअरों का इस विशालकाय टॉवर से उत्पादन किया जाएगा। दरअसल चीन में कृषि भूमि दुर्लभ हो चली है। खाद्य उत्पादन पिछड़ रहा है। ऐसे में सूअर पालन और उसकी आपूर्ति चीन की रणनीतिक अनिवार्यता बन गई है। 

सूअरों के लिए बनाए गए अलग-अलग ब्लॉक
मोनलिथिक हाउसिंग ब्लॉक जैसी दिखने वाली इस इमारत के अंदर प्रत्येक मंजिल एक युवा के हवाले है। यह इमारत सूअर के जीवन के विभिन्न चरणों के लिए एक स्व-निहित खेत की तरह काम करती है। यानि कि गर्भवती सूअरों के लिए एक अलग क्षेत्र, सूअरों को पालने के लिए एक अलग बिल्डिंग (कमरे), नर्सिंग के लिए अलग स्थान और हॉग को मोटा करने के लिए अलग जगह की व्यवस्था है। सूअरों को खिलाने-पिलाने के सामान को एक कन्वेयर बेल्ट पर शीर्ष मंजिल पर ले जाया जाता है, जहां इसे विशाल टैंकों में एकत्र किया जाता है। एक दिन में दस लाख पाउंड से अधिक भोजन को उच्च-तकनीकी फीडिंग गर्त के माध्यम से नीचे की मंजिलों तक पहुंचाते हैं, जो स्वचालित रूप से उनके आधार पर हॉग को भोजन वितरित करते हैं। इसके बाद सूअरों के जीवन, वजन और स्वास्थ्य का चरण निर्धारित किया जाता है। 

चीन का सूअरों से पुराना नाता
चीन का सूअरों से पुराना प्रेम संबंध रहा है। दशकों से कई ग्रामीण चीनी परिवार अपने घरों के पिछवाड़े में सूअरों को पालते रहे हैं। इन सूअरों को सिर्फ मांस के लिए ही नहीं, बल्कि खाद के स्रोत के रूप में मूल्यवान पशुधन माना जाता था। चीन के समृद्धि के प्रतीक के रूप में सूअरों का सांस्कृतिक महत्व भी है। क्योंकि यहां ऐतिहासिक मौकों पर और विशेष अवसरों पर सूअर का मांस परोसे जाने की परंपरा रही है। दुनिया में सूअर के मांस की जितनी कुल खपत है, उसका आधा सूअर का मांस खाने वाला अकेला चीन है। ड्रैगन से ज्यादा सुअर का मांस कोई भी देश नहीं खाता। यहां पोर्क(सूअर के मांस की) की कीमतों को मुद्रास्फीति के उपाय के रूप में बारीकी से देखा जाता है और देश के सामरिक पोर्क रिजर्व के माध्यम से सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाता है ।

यहां का सरकारी मांस भंडार जो आपूर्ति कम होने पर कीमतों को स्थिर कर सकता है, लेकिन पोर्क की कीमतें अन्य प्रमुख देशों की तुलना में अधिक हैं जहां सुअर पालन बहुत समय पहले औद्योगिक हो गया था। पिछले कुछ वर्षों में उस अंतर को पाटने के बीजिंग के अभियान के हिस्से के रूप में दर्जनों अन्य विशाल औद्योगिक सुअर फार्म पूरे चीन में फैलाए गए हैं। यहां का एक सीमेंट निर्माता अब सूअर ब्रीडर बन गया है।  हालांकि  चीन का मौजूदा सूअर प्रजनन अभी भी सबसे उन्नत देशों से दशकों पीछे है।

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