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Nepal Elections: नेपाल में आम चुनाव के बाद शांति की उम्मीद नहीं, त्रिशंकु संसद के बढ़े आसार, क्या हैं ताजा हालात?

Nepal Elections 2022: राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने अनुमान जताया है कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन संसदीय चुनावों में विजयी होगा, जिसमें नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी।

Edited By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Published : Nov 17, 2022 19:23 IST, Updated : Nov 17, 2022 22:58 IST
नेपाल में होने वाले हैं आम चुनाव
Image Source : AP नेपाल में होने वाले हैं आम चुनाव

नेपाल के संसदीय और प्रांतीय विधानसभा चुनावों से पहले, यहां के राजनीतिक विश्लेषक त्रिशंकु संसद और ऐसी सरकार आने का अनुमान लगा रहे हैं जिसके तहत इस हिमालयी राष्ट्र में राजनीतिक स्थिरता आने की संभावना नहीं है। देश में 20 नवंबर को होने वाले आम चुनाव के लिए दो प्रमुख राजनीतिक गठबंधन- नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले लोकतांत्रिक और वामपंथी गठबंधन और सीपीएन-यूएमएल के नेतृत्व वाले वामपंथी और हिंदू-समर्थक राजशाही गठबंधन मैदान में हैं। नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन में सीपीएन-माओवादी सेंटर, सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट और मधेस-आधारित लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी शामिल हैं, जबकि सीपीएन-यूएमएल के नेतृत्व वाले गठबंधन में हिंदू समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और मधेस-आधारित जनता समाजवादी पार्टी शामिल हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने अनुमान जताया है कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन संसदीय चुनावों में विजयी होगा, जिसमें नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि के. पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी। इस बार कई नए राजनीतिक दल और कई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं, जो प्रमुख राजनीतिक दलों के कुछ दिग्गजों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं।

लोगों में चुनाव को लेकर उत्साह कम

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक ध्रुबा अधिकारी ने कहा, ‘‘जैसे-जैसे चीजें आगे बढ़ने लगती हैं, चुनाव पूर्व दो गठबंधनों में से एक के चुनाव के बाद सबसे बड़े समूह के रूप में उभरने की संभावना है। हालांकि, इन समूहों द्वारा गठित की जाने वाली सरकार से वैसी राजनीतिक स्थिरता आने की संभावना नहीं है, जिसकी नेपाल को बहुत जरूरत है।’’ एक राजनीतिक विश्लेषक राजेश अहिराज ने कहा कि इस बार चुनाव को लेकर लोगों में उत्साह कम है। उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव के बाद देश में शांति और राजनीतिक स्थिरता कायम होने की संभावना नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत मिलने की संभावना नहीं है और उन्हें नई सरकार बनने में काफी समय लगेगा और बातचीत के जरिए सरकार बनने के बाद भी स्थिरता कायम होने की संभावना नहीं है।

नई सरकार की विदेश नीति की प्राथमिकताओं पर, अधिकारी ने कहा: ‘‘जहां तक ​​विदेश नीति का संबंध है, नेपाल की अगली सरकार को हमारे दोनों पड़ोसियों (भारत और चीन) के साथ संतुलित संबंध जारी रखने की आवश्यकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मौजूदा नीतिगत प्राथमिकताओं में बड़े बदलाव की संभावना कम है।’’ हालांकि, प्रतिनिधिसभा के पूर्व अध्यक्ष दमन नाथ धुंगाना का मानना है कि पड़ोसी देशों के साथ नेपाल के संबंध काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेंगे कि नई सरकार कैसे बनेगी और इसका नेतृत्व कौन करेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि भारत और चीन दोनों हमारे लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, भारत सांस्कृतिक और धार्मिक निकटता और आर्थिक अखंडता के कारण नेपाल के बहुत करीब है।’’ उन्होंने कहा कि नेपाल को देश को समृद्ध बनाने के लिए आर्थिक कूटनीति का उपयोग करके और अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने की जरूरत है। हिमालयी देश में दोहरे चुनाव के लिए मतदान एक ही चरण में होगा। देश के सात प्रांतों में एक करोड़ 79 लाख लोग मतदान के पात्र हैं। संघीय संसद के कुल 275 सदस्यों में से 165 का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से होगा जबकि शेष 110 का चुनाव आनुपातिक पद्धति से होगा। इसी तरह प्रांतीय विधानसभा के कुल 550 सदस्यों में से 330 सीधे निर्वाचित होंगे और 220 आनुपातिक तरीके से चुने जाएंगे।

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