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Nancy Pelosi: वो अकेली औरत जिसने ताइवान यात्रा कर पूरे चीन को हिला दिया, जानें China-Taiwan की लड़ाई का पूरा इतिहास, कहानी में अमेरिका का क्या है रोल

नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से पता चलता है कि अमेरिका इस देश को चीन के खिलाफ समर्थन देने के लिए तैयार है। यानी वो ताइवान की आजादी का समर्थन कर रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक कड़ा बयान जारी कर कहा कि उनकी यात्रा 'एक-चीन सिद्धांत और चीन-अमेरिका के तीन संयुक्त सहमति पत्रों के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन है।

Written By: Shilpa
Published : Aug 03, 2022 12:31 IST, Updated : Aug 03, 2022 15:22 IST
China Taiwan War-Nancy Peloci
Image Source : INDIA TV China Taiwan War-Nancy Peloci

Highlights

  • नैंसी पेलोसी मंगलवार रात ताइवान पहुंची
  • पेलोसी की यात्रा से चीन बुरी तरह चिढ़ा
  • लगातार इस यात्रा का विरोध कर रहा चीन

Nancy Pelosi: अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी मंगलवार की रात ताइवान पहुंचीं। इसके साथ ही वह 25 साल में स्वशासित द्वीप का दौरा करने वाली अमेरिका की सर्वोच्च अधिकारी बन गई हैं। पेलोसी की यात्रा से चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है। चीन दावा करता रहा है कि ताइवान उसका हिस्सा है। वह विदेशी अधिकारियों के ताइवान दौरे का विरोध करता है क्योंकि उसे लगता है कि यह द्वीपीय क्षेत्र को संप्रभु के रूप में मान्यता देने के समान है। चीन ने धमकी दी थी कि यदि पेलोसी ताइवान की यात्रा करती हैं तो इसके ‘‘गंभीर परिणाम’’ भुगतने होंगे। अमेरिकी वायुसेना के विमान से पहुंचीं पेलोसी और उनके प्रतिनिधिमंडल का ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने ताइपे हवाई अड्डे पर स्वागत किया।

पेलोसी ने बुधवार को ताइवानी राष्ट्रपति त्सी-इंग-वेन से मुलाकात की। वहीं चीन का कहना है कि 1979 में, अमेरिका ने राजनयिक संबंधों की स्थापना कर चीन-अमेरिका संयुक्त आधिकारिक पत्र में स्पष्ट प्रतिबद्धता व्यक्त की थी कि 'अमेरिका पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' की सरकार को चीन की एकमात्र कानूनी सरकार के रूप में मान्यता देता है। 181 देशों ने एक-चीन सिद्धांत के आधार पर चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं। चीन की बातों की मानें, तो इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका एक चीन सिद्धांत का पालन करता है, जिसमें ताइवान को चीन का हिस्सा माना जाता है। लेकिन उसके ताइवान के साथ अनौपचारिक रिश्ते हैं। 

चीन को पेलोसी की ताइवान यात्रा से इतनी दिक्कत क्यों?

नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से पता चलता है कि अमेरिका इस देश को चीन के खिलाफ समर्थन देने के लिए तैयार है। यानी वो ताइवान की आजादी का समर्थन कर रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक कड़ा बयान जारी कर कहा कि उनकी यात्रा "एक-चीन सिद्धांत और चीन-अमेरिका के तीन संयुक्त सहमति पत्रों के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन है।” चीन ताइवान को अपना क्षेत्र बताता है और कहता है कि वह उसे अपने में मिलाएगा। बयान में कहा गया है, ‘‘यह चीन-अमेरिका संबंधों की राजनीतिक नींव पर गंभीर प्रभाव करता है और चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का गंभीर रूप से उल्लंघन करता है। यह ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से कमजोर करता है और अलगाववादी ताकतों को 'ताइवान की स्वतंत्रता' के लिए गंभीर रूप से गलत संकेत भेजता है।”

बयान में कहा गया है, “चीन इसका कड़ा विरोध करता है और कड़ी निंदा करता है ।’’ चीन ने अमेरिका के सामने कड़ा सख्त राजनयिक विरोध जताया है। उसने बयान में कहा है, “ताइवान का मसला चीन का आंतरिक मामला है और किसी भी अन्य देश को यह अधिकार नहीं है कि वह ताइवान के मसले पर न्यायाधीश बनकर काम करे।” विदेश मंत्रालय ने कहा, “चीन अमेरिका से ‘ताइवान कार्ड' खेलना और चीन को नियंत्रित करने के लिए ताइवान का उपयोग बंद करने का आग्रह करता है। इसे ताइवान में दखल देना और चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना बंद कर देना चाहिए।” उसने कहा कि दुनिया में केवल एक-चीन है, ताइवान चीन के क्षेत्र का एक अविभाज्य हिस्सा है, और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र कानूनी सरकार है।

क्या है चीन और ताइवान का इतिहास 

ताइवान दक्षिण-पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किमी दूर एक द्वीप है, जो फूजौ, क्वानझोउ और जियामेन के चीनी शहरों के सामने है। यहां शाही किंग राजवंश का शासन चलता था, लेकिन इसका नियंत्रण 1895 में जापानियों के पास चला गया। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद, ये द्वीप वापस चीनी हाथों में चला गया। माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन में गृह युद्ध जीतने के बाद, राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक 1949 में ताइवान भाग गए। च्यांग काई-शेक ने द्वीप पर चीनी गणराज्य की सरकार की स्थापना की और 1975 तक राष्ट्रपति बने रहे।

चीन ने कभी भी ताइवान के अस्तित्व को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। उसका तर्क है कि यह हमेशा एक चीनी प्रांत था। ताइवान का कहना है कि आधुनिक चीनी राज्य 1911 की क्रांति के बाद ही बना था, और यह उस राज्य या चीन के जनवादी गणराज्य का हिस्सा नहीं है, जो कम्युनिस्ट क्रांति के बाद स्थापित हुआ था। दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव जारी है। आपको बता दें चीन और ताइवान के आर्थिक संबंध भी रहे हैं। ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश किया है।

अमेरिका और दुनिया ताइवान को कैसे देखती है?

संयुक्त राष्ट्र ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देता है। दुनिया भर में केवल 13 देश- मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी, कैरिबियन, द्वीपीय और वेटिकन इसे मान्यता देते हैं। वहीं अमेरिका की चीन से बढ़ती दुश्मनी के चलते उसकी नीति स्पष्ट नहीं लग रही है। जून में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर कब्जा करेगा, तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगी। लेकिन इसके ठीक बाद में बाइडेन के बयान पर सफाई देते हुए अमेरिका ने कहा कि वह ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता है। अमेरिका का ताइपे के साथ कोई औपचारिक संबंध नहीं है, फिर भी वह उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन देता है और हथियारों की आपूर्ति करता है।

साल 1997 में रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन हाउस स्पीकर न्यूट गिंगरिच ने ताइवान का दौरा किया था। तब भी चीन ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी, जैसी वो अभी दे रहा है। चीन के नेताओं के साथ अपनी बैठकों का जिक्र करते हुए गिंगरिच ने कहा था, "हम चाहते हैं कि आप समझें, हम ताइवान की रक्षा करेंगे।" लेकिन उसके बाद स्थिति बदल गई। चीन आज विश्व राजनीति में बहुत मजबूत शक्ति बन गया है। चीनी सरकार ने 2005 में एक कानून पारित किया था, जिसमें कहा गया कि अगर ताइवान अलग होने की बात करता है, तो उसे सैन्य कार्रवाई से मुख्य भूमि में शामिल किया जा सकता है। 

ताइवान की सरकार ने हाल के वर्षों में कहा है कि केवल द्वीप के 23 मिलियन लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है और हमला होने पर वह अपनी रक्षा करेगा। 2016 से, ताइवान ने एक ऐसी पार्टी को चुना है, जो ताइवान की स्वतंत्रता की वकालत करती है।

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