Highlights
- उजबेकिस्तान के समरकंद में हो सकती है भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ता
- भारत, पाकिस्तान और चीन समेत रूस की रहेगी मौजूदगी
- 15 से 16 सितंबर तक होगा एससीओ समिट का आयोजन
SCO Summit Samarkand: भारत और चीन सीमा पर इस दौरान तनातनी के हालात शांतिपूर्ण माहौल में बदलने लगे हैं। दोनों ही देश वास्तविक नियंत्रण रेखा से अपने-अपने सैनिकों की वापसी कराने लगे हैं। अस्थाई ढांचे भी ढहाए जा रहे हैं। ताकि गलवान घाटी जैसे संघर्ष की स्थिति दोबारा नहीं आने पाए। मगर पूरी दुनिया इसी बात पर हैरान है कि भारत और चीन के बीच अंदर ही अंदर ऐसा क्या चल रहा है कि वर्षों से बने युद्ध जैसे हालात अब दोस्ती की ओर बढ़ने लगे हैं। किस वजह से अचानक दोनों देश सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए इतना बड़ा कदम उठाने को तैयार हो गए। वैसे तो यह खबर पूरी दुनिया के लिए आश्चर्य से भरी है, लेकिन अमेरिका को भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों की सैन्य वापसी सबसे ज्यादा चौंका रही है।
इतना ही नहीं अब 15 और 16 सितंबर को उजबेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संघठन सम्मेलन (एससीओ समिट) होने जा रहा है। इसमें पीएम मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन समेत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के मौजूद रहने की संभावना है। पिछले तीन-चार दिनों में जिस तरह से एलएसी पर हालात बदले हैं, उससे यह संभावना जताई जा रही है कि वर्षों बाद पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हो सकती है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन इसमें महत्पूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। एससीओ समिट में पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच होने वाली इस संभावित मुलाकात पर अमेरिका समेत दुनिया के अन्य देश भी बारीकी से नजर बनाए हुए हैं।
भारत से मिलने को बेताब चीन
आखिर कुछ तो वजह होगी कि चीन ने न सिर्फ सीमा से अपने सैनिकों की विवादित क्षेत्र से वापसी सुनिश्चित की, बल्कि वह अब भारत के प्रधानमंत्री पीएम मोदी से मिलने को बेताब भी है। शी-जिनपिंग हर हाल में पीएम मोदी से एससीओ सम्मेलन में मिलना चाहते हैं। मगर क्या पीएम मोदी इसके लिए तैयार हो जाएंगे। यह देखने वाली बात होगी। अमेरिका समेत दुनिया के अन्य देश इस घटना पर निगाह लगाए हैं। क्योंकि अगर भारत और चीन के बीच दोस्ती हो जाती है तो यह रूस के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। इसका सबसे बड़ा झटका अमेरिका को लगेगा। वहीं भारत और चीन दोनों देशों के लिए एलएसी से तनाव दूर करना फायदेमंद रहेगा। क्योंकि अगर चीन सीमा पर हरकतें बंद नहीं करता तो ताइवान मामले में भारत चीन के परेशान कर सकता है। ऐसे में ताइवान और अमेरिका से लड़ पाना चीन के लिए आसान नहीं होगा। इसलिए भारत से दोस्ती करने में ही उसकी भलाई होगी।
जून 2019 में किर्गिस्तान के बिशकेक में हुई एससीओ समिट के बाद यह पहला ऐसा एससीओ सम्मेलन होगा, जिसमें विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष व्यक्तिगत रूप से मौजूद रहेंगे। क्योंकि कोरोना के चलते अन्य सम्मेलन ज्यादातर वर्चुअल ही हो रहे थे।
14 को पीएम मोदी पहुंच सकते हैं समरकंद
सूत्रों के अनुसार एससीओ सम्मेलन में भाग लेने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 सितंबर को समरकंद पहुंच सकते हैं। इसके बाद 16 सितंबर को उनकी वापसी होगी। पीएम मोदी इस दौरान रूस और चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी कर सकते हैं। पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ से वार्ता को लेकर अभी संशय बरकरार है। बताया यह भी जा रहा है कि इस दौरान जिनपिंग और पीएम मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता लगभग तय है। भारत और चीन सीमा पर बदले हालात और दोनों देशों के बीच हुई शांति वार्ता इसकी प्रमुख वजह है। द्विपक्षीय वार्ता के दौरान दोनों ही देश आगे भी शांति और सुरक्षा के मामले पर अहम बातचीत कर सकते हैं। हालांकि अभी इस द्विपक्षीय वार्ता की संभावना को लेकर भारत या चीन की तरफ से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।
अफगानिस्तान मामले पर भी होगी बात
एससीओ समिट में ब्लादिमिर पुतिन बतौर मुख्य लीडर अपनी भूमिका निभा सकते हैं। इस दौरान अफगानिस्तान में तालिबान के शासन और वहां हो रहे मानवाधिकारों के हनन मसले पर भी बातचीत हो सकती है। भारत के लिए तालिबान वाले अफगानिस्तान में आतंकवाद और आसपास के आतंकी संगठनों से इसका नेटवर्क मुख्य मुद्दा है।
भू-राजनीतिक मसले पर भी होगी चर्चा
इस बैठक में खासतौर पर यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध की वजह से तेजी से बदल रहे दुनिया के हालात को लेकर भी अहम चर्चा हो सकती है। क्योंकि दुनिया दो ध्रुवों में बंट रही है। ऐसे में रूस अपने खेमे के देशों को साथ लेने के लिए पूरे हालात से अवगत करा सकता है। इसलिए इस पूरी मीटिंग पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की पैनी नजर है।
भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ता से दोनों देशों को फायदा
भारत के रक्षा विशेषज्ञ और डीजीएमओ में चीन ऑपरेशन के ब्रिगेडियर रहे मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि इस द्विपक्षीय वार्ता से भारत और चीन दोनों ही देशों को फायदा है। पिछले कई दिनों से एलएसी पर जिस तरह से दोनों देश अपने-अपने सैनिकों को विवादित क्षेत्र से हटाने और वहां बनाए गए अस्थाई ढांचे को नष्ट करने पर राजी हुए हैं, इसके बाद से ही पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच जल्द मुलाकात की संभावना जताई जा रही है। एससीओ समिट में हो सकता है कि दोनों देशों के ये नेता द्विपक्षीय वार्ता में शामिल हों। इसके लिए रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन भी पूरा प्रयास कर रहे होंगे। क्योंकि जिस तरह से यूक्रेन मामले में अमेरिका समेत यूरोपीय देशों का संगठन खड़ा होता जा रहा है, उससे मुकाबले के लिए पुतिन चाहेंगे कि वह भी एशियाई देशों का एक संगठन तैयार करेंगे। जिसमें की भारत और चीन बड़ी ताकत हैं। उनका संगठन तब तक मजबूत नहीं हो सकता, जब तक कि भारत और चीन के बीच का मौजूदा तनाव दूर नहीं हो जाता। इसलिए पुतिन की पूरी कोशिश होगी कि भारत और चीन दोनों ही आपस में वार्ता करके एलएसी का तनाव खत्म करें।
एससीओ समिट में ये देश हैं शामिल
भारत, चीन, पाकिस्तान, रूस, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ईरान इत्यादि।