UN On Taliban: क्या तालिबानी आतंकियों के आगे संयुक्त राष्ट्र को भी नतमस्तक होना पड़ेगा, क्या तालिबानियों की जिद के आगे संयुक्त राष्ट्र भी अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों की बहाली नहीं करा पाएगा। क्या अफगानिस्तान में अब कभी भी महिलाओं को उनके अधिकार वापस नहीं मिल पाएंगे, इत्यादि ऐसे सवाल हैं, जो तालिबानी फरमानों के बाद लगातार उठ रहे हैं। इस बीच संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान की चार दिवसीय यात्रा के दौरान तालिबान से महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को बहाल करने की अपील की है।
संयुक्त राष्ट्र के एक प्रवक्ता ने कहा कि तालिबान के कुछ अधिकारी महिलाओं के अधिकारों को बहाल करने के पक्ष में थे, लेकिन अन्य स्पष्ट रूप से इसके खिलाफ थे। संयुक्त राष्ट्र की टीम ने राजधानी काबुल और दक्षिणी शहर कंधार में तालिबान से मुलाकात की। हालांकि, उसने बैठक में शामिल तालिबान के किसी भी अधिकारी के नाम जारी नहीं किए। ये बैठकें तालिबान के अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद महिलाओं और लड़कियों पर लगाई गई पाबंदियों पर केंद्रित रही। संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता फरहान हक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव अमीना मोहम्मद के नेतृत्व वाली टीम ने पाया कि तालिबान के कुछ अधिकारियों का रुख ‘‘सहयोगात्मक था और उन्हें प्रगति के कुछ संकेत मिले हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण बात उन (तालिबान) अधिकारियों से सामंजस्य स्थापित करना है, जिनका रुख सकारात्मक था।’’ हक ने इस बात पर जोर दिया कि तालिबान के बीच ‘‘प्राधिकार के कई अलग-अलग बिंदु हैं’’ और संयुक्त राष्ट्र की टीम चाहेगी कि वे हमारे लक्ष्य पर मिलकर काम करें, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को बहाल किया जाना है।
अफगानिस्तान में लागू किया शरिया कानून
मोहम्मद पूर्व नाइजीरियाई कैबिनेट मंत्री और एक मुस्लिम हैं। उनके नेतृत्व वाली इस यात्रा में ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ की कार्यकारी निदेशक सिमा बाहौस भी शामिल थी। ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती है। साथ ही इस यात्रा में राजनीतिक मामलों के सहायक महासचिव खालिद खियारी भी शामिल थे। जैसा कि तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान के अपने पिछले शासन के दौरान किया था, उसने धीरे-धीरे इस्लामी कानून या शरिया की अपनी कठोर व्याख्या को फिर से लागू कर दिया है। लड़कियों को छठी कक्षा के बाद स्कूल जाने से रोक दिया गया है और महिलाओं को ज्यादातर नौकरियों, सार्वजनिक स्थानों और जिम जाने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। दिसंबर के अंत में, तालिबान ने सहायता समूहों को महिलाओं को रोजगार देने से रोक दिया। इससे युद्ध-प्रभावित देश में सहायता संगठनों के लिए काम कर रही हजारों महिलाओं की रोजी रोटी छिन गई। स्वास्थ्य क्षेत्र सहित कुछ क्षेत्रों में महिलाओं को सीमित कार्य की अनुमति दी गई है।
तालिबानी फरमान महिलाओं को ले जा रहे पीछे
हक ने कहा, ‘‘महिलाओं और लड़कियों के मामले में हमने जो देखा है, वह पीछे ले जाने वाला कदम है। हम और अधिक करने की कोशिश कर रहे हैं और हम उस मोर्चे पर काम जारी रखेंगे। एक बयान में मोहम्मद ने कहा कि तालिबान के लिए उनका संदेश बहुत स्पष्ट था-‘‘ये प्रतिबंध अफगान महिलाओं और लड़कियों को एक ऐसे भविष्य की ओर ले जाएंगे, जो उन्हें उनके घरों में सीमित कर देगा, उनके अधिकारों का उल्लंघन करेगा है और समुदायों को उनकी सेवाओं से वंचित कर देगा।
’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारी सामूहिक महत्वाकांक्षा एक समृद्ध अफगानिस्तान के लिए है, जो खुद शांति केू साथ रहने के साथ ही अपने पड़ोसियों के साथ भी शांति से रहे और सतत विकास के मार्ग पर आगे बढ़े। लेकिन अभी, अफगानिस्तान एक भयानक मानवीय संकट का सामना कर रहा है।’’ यात्रा में पश्चिमी हेरात का दौरा भी शामिल था। इस दौरान मोहम्मद की टीम ने तीन शहरों में मानवतावादी कार्यकर्ताओं, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और महिलाओं से भी मुलाकात की।