Highlights
- फिजिकल रिलेशन में भी आजादी चाहती हैं ईरानी युवतियां
- फिजिकल रिलेशन में प्रतिबंध होने से मानसिक रूप से बीमार होने का दे रहीं तर्क
- ईरान क्रांति के समय से ही हिजाब से आजादी मांग रहीं युवतियां
Hijab Controversy @ Iran:ईरान में हाल के हफ्तों में हुआ ‘महिला, जीवन,स्वतंत्रता’ आंदोलन नया नहीं है। ईरान की युवतियां उस समय से हिजाब से आजादी मांग रही हैं, जब से इस्लामी गणराज्य ईरान की स्थापना हुई है। मगर आज तक उनकी इस मांग को पूरा नहीं किया गया है। वहीं ईरानी युवतियां शारीरिक आनंद भी उठाना चाहती हैं, इसके लिए वह हर तरह के बंधन तोड़ना चाह रही हैं। ताकि खुलकर जीवन का पूरा आनंद ले सकें।
पिछले 44 वर्षों के दौरान, खासतौर पर पिछले दो दशकों में निरंतर विकासपरक गतिविधियों में भी ईरानी युवतियां शामिल रही हैं। शुरुआती आंदोलन 1979 की ईरानी क्रांति थी। सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के समर्थक लोगों ने सत्ता पर नियंत्रण किया था। सड़कों पर प्रदर्शन, तथाकथित क्रांति की ओर कदम 2017 से बढ़ रहे हैं। इन सभी आंदोलनों में महिलाएं साहसी रही हैं। मुख्य प्रदर्शनों में शामिल है- एक सुधारवादी अखबार को बंद करने पर छात्रों का प्रदर्शन जो कि 1999 में हुआ था।
2019 में खूनी प्रदर्शन
राष्ट्रपति चुनाव में धांधली को लेकर भी यहां 2009 में प्रदर्शन हुआ था। इसके बाद सरकार की आर्थिक नीतियों (2017-18) के खिलाफ प्रदर्शन हुआ। फिर खूनी नवंबर (2019) प्रदर्शन ने ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि की। ईरानी युवतियों ने खुद को सामाजिक बदलाव का माध्यम बनाया। वे सदा ही सामाजिक बंधनों को तोड़ने में अग्रिम मोर्चे पर रही हैं। वे शिक्षा और करियर विकास के जरिये अपना सामाजिक दर्जा बढ़ाने के लिए लड़ती रही हैं। वे अचानक क्रांति (अस्थायी बदलाव) करने के बजाय विकासवाद (छोटा पर मजबूत और निरंतर बदलाव करने) में यकीन रखती हैं। इसके पीछे उनका मानना है कि इस तरह का क्रमिक बदलाव एक अन्य असफल क्रांति की ओर ले जा सकता है, जैसा कि 1979 में हुआ था।
जीवन का आनंद लेना चाहती हैं
ईरानी युवतियां अपने जीवन को आनंदमय बनाने के लिए अधिक अवसर सृजित करना चाहती हैं। जैसा कि एक महिला ने कहा, ‘‘हम घर पर रहने को वरीयता देते हैं और अपने कार्यक्रम निजी स्थानों पर करना चाहते हैं क्योंकि हम बंद कमरे की गतिविधियों को अधिक रूचिकर पाते हैं। ईरानी महिलाओं का मानना है कि सामाजिक एवं यौन संबंधों पर सीमाएं मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को जन्म दे सकती हैं। इस तरह के कई आंदोलनों में ईरानी महिलाओं को पुरुषों का समर्थन मिला है।
ईरानी युवतियों का किया जा रहा दमन
ईरानी युवतियों को दमनकारी प्रणाली के चलते दबाया जा रहा है। उन्हें अपने मूल्यों (वैल्यू), व्यवहार और कार्यों के बारे में यह महसूस करना होगा कि वे असल में स्वतंत्र नहीं हैं, क्योंकि उनसे उनके समाज विरोधाभासी उम्मीदें करते हैं। महिलाओं को लगता है कि वे सही मायने में स्वतंत्र नहीं हैं। उन्होंने जीवन के विभिन्न चरणों में समाज द्वारा स्वीकृत किये जाने के लिए बाल्यावस्था से लेकर विश्वविद्यालय तक, विवाह और कामकाजी जीवन तक विभिन्न पहचान बनाई। एक युवती ने कहा: ईरानी महिलाओं को सदा ही बाधा को पार करना चाहिए। यह बाधा पारंपरिक परिवार, नैतिकता, संस्कृति से संबंधित है।
डिजिटल स्वतंत्रता भी चाहती हैं ईरानी महिलाएं
ईरानी युवतियां हिजाब को उतार फेंकने के साथ ही साथ डिजिटल स्वतंत्रता हासिल करना भी मकसद है। ईरानी महिलाएं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन सामाजिक प्रदर्शन समूहों में शामिल होने, सूचना का आदान-प्रदान करने और अपने समाज में सामाजिक चुनौतियों से निपटने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रही हैं। सोशल मीडिया ने युवा पीढ़ी के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई है तथा ऐसा प्रतीत होता है कि यह देश की युवा और उम्रदराज पीढ़ी के बीच अंतराल बढ़ा रहा है।
बिना हिजाब के रहना चाहती हैं युवतियां
ज्यादातर ईरानी युवतियां हिजाब अनिवार्य रूप से पहनने के नियम के खिलाफ हैं। यह ईरान में एक सांस्कृतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक बहुत ही प्रतिबंधात्मक और कट्टर इस्लामी कानून है,जो इस्लामी गणराज्य ईरान की एक मूलभूत बुनियाद है। शासन का मानना है कि यदि हिजाब की अनिवार्यता से जुड़े नियम टूट गये तो इस्लामी गणराज्य के अन्य स्तंभ खतरे में पड़ जाएंगे। इसलिए, हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन शासन की वैधता को चुनौती देता है। जैसा कि ईरान में देखा गया है। ईरानी युवतियों में शिक्षा और जागरूकता का उच्च स्तर है जो विभिन्न संस्कृतियों, मान्यताओं, धर्मों और ‘ड्रेस कोड’ का सम्मान करती हैं। वे सिर्फ अपनी पसंद की चीजें करना चाहती हैं। जैसा कि एक महिला ने कहा,‘‘इस्लामी नेता चाहते हैं कि हम अपनी सुंदरता छिपाएं।’’ एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि ज्यादातर ईरानी (58 प्रतिशत) हिजाब पहनने की प्रथा में यकीन नहीं रखती हैं। सिर्फ 23 प्रतिशत महिलाएं हिजाब पहनने की अनिवार्यता से सहमत हैं। शेष आबादी ने कहा कि लोग नहीं चाहते कि हिजाब पहनना समाप्त हो जाए, वे सिर्फ अपनी पसंद की चीजें करना चाहती हैं।