आज 7 अक्टूबर है। हमास द्वारा इजरायल पर हुए हमले के एक साल पूरे हो गए हैं। 7 अक्टबूर, 2023 को हमास ने इजरायल को वो जख्म दिया था, जो कभी नहीं भरेगा। एक वक्त ऐसा था जब इजरायल की दी हुई मिसाइलों से ईरान इराक से युद्ध लड़ रहा था। आज इजरायल और ईरान एक-दूसरे को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं। एक दौर वो भी था जब दुनिया के तमाम मुस्लिम मुल्क इजरायल के खिलाफ खड़े थे। उसे मान्यता नहीं दे रहे थे। तब ईरान ने इजरायल का हाथ थामा था।
30 साल रही ईरान-इजरायल की दोस्ती
इन सब पर आज यकीन करना मुश्किल है। लेकिन इतिहास के पन्नों में ईरान और इजरायल के रिश्तों का ये सच दर्ज है। क्या हुआ कि आज इन दोनों मुल्कों ने एक दूसरे के खिलाफ ही हथियार उठा लिए? 30 साल की दोस्ती, 45 साल से चली आ रही लंबी दुश्मनी में कैसे बदल गई। जानिए इस खास रिपोर्ट में...
नेतन्याहू ने अंजाम भुगतने की दी धमकी
इजरायल पर ईरान के मिसाइल हमलों के बाद पश्चिमी एशिया में तनाव बढ़ गया है। इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ईरान को अंजाम भुगतने की धमकी दी है। इस पर ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामनेई के तेवर भी ये बता रहे हैं कि ईरान अब खुलकर इजरायल के खिलाफ मैदान में उतरने को तैयार है।
इजरायल को शैतान बता रहे खामनेई
हाथ में बंदूक लेकर खामनेई ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वो इजरायल पर दोबारा हमला करने के लिए भी तैयार हैं। यानि दो कट्टर दुश्मनों के बीच हालात युद्ध की कगार पर पहुंच चुके हैं। खामनेई मुसलमानों को इजरायल के खिलाफ एक होकर लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। इजरायल को शैतान बता रहे हैं। ईरान और इजरायल एक दूसरे के खात्मे का प्रण लेकर मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
कभी दोनों दोस्त थे कट्टर दुश्मन
लेकिन अगर आपसे ये कहा जाए कि आज के कट्टर दुश्मन कभी दोस्त थे तो आपको यकीन नहीं होगा। जो ईरान आज इजरायल को मुस्लिमों का दुश्मन बता रहा है वो ईरान इजरायल को मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था। जो ईरान आज इजरायल पर मिसाइल दाग रहा है। वही, इजरायल कभी उसे जंग के हथियार सप्लाई करता था। जो ईरान आज कह रहा कि यहूदी शैतान हैं। उसी ईरान में एक वक्त मिडिल ईस्ट की सबसे बड़ी यहूदी आबादी रहती थी।
1948 से पहले इजरायल का नहीं था अस्तित्व
फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि ये दोस्ती कट्टर दुश्मनी में बदल गई? 1948 के पहले इजरायल का अस्तित्व ही नहीं था। ये पूरा इलाका फिलीस्तीन था। जिस पर कभी ऑटोमन साम्राज्य का राज था। 14 मई 1948 को इजरायल अस्तित्व में आया। संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में फिलीस्तीन को अरब और यहूदी राज्य में बांटने का प्रस्ताव दिया। अरब नेताओं को ये प्रस्ताव मंजूर नहीं था। इसका विरोध करने वाले 13 मुस्लिम देशों में ईरान भी शामिल था।
ईरान ने इजरायल को UN में मान्यता मिलने का किया समर्थन
1949 में इजरायल के बनने के बाद भी जब इजरायल को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाने के लिए वोटिंग हुई तब भी ईरान ने इसका विरोध किया था। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईरान भले ही इजरायल का विरोध कर रहा था लेकिन जियोपॉलिटिकल और रणनीतिक फायदे के लिए दोनों देशों के बीच गुप्त संबंध बन गए। 1950 में ईरान ने विरोध का पर्दा हटा दिया। तुर्की के बाद ईरान दूसरा मुस्लिम देश बन गया जिसने इजरायल को मान्यता दी। लेकिन दोनों देशों के रिश्तों ने बड़ा मोड़ 1953 के बाद लिया है।
इस तरह ईरान ने इजरायल की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ
साल 1953 में ईरान में तख्तापलट हुआ। मोहम्मद रजा शाह पहलवी की सत्ता में वापसी हुई। पहलवी अमेरिका और वेस्ट देशों के समर्थक थे। मिस्र और इराक जैसे देशों के बीच ईरान ने इजरायल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। असल में इस दोस्ती में इजरायल का भी फायदा था और ईरान का भी। इसके साथ ही अमेरिका के लिए भी ये दोस्ती बेहद अहम थी। उस दौर में ईरान और इजरायल दोनों को अमेरिका का समर्थन था।
तब इजरायल को थी ईरान के सपोर्ट की जरूरत
सोवियत संघ को पश्चिमी एशिया से बाहर रखने के लिए अमेरिका दोनों की दोस्ती को और बढ़ा रहा था। दूसरी तरफ ईरान इस इलाके में खुद को सबसे बड़ी इस्लामी फोर्स के रूप में उभारना चाहता था। नए बने इजरायल को अपने पांव पर खड़े रहने के लिए ईरान के सपोर्ट की जरूरत थी।
जरूरत का 40 परसेंट तेल ईरान से लेता था इजरायल
इजरायल को तेल देने पर अरब देशों ने प्रतिबंध लगा रखा था। इजरायल को इंडस्ट्री और सैन्य जरूरतों के लिए तेल की जरूरत थी। तब इजरायल अपनी जरूरत का 40 परसेंट तेल ईरान से लेता था। 1968 में इलाट-अश्केलोन पाइपलाइन कंपनी का एक ज्वाइंट वेंचर हुआ। इसमें मिस्र के कब्जे वाले इलाके से बचते हुए ईरान से तेल इजरायल पहुंचाया गया। ईरान के तेल के बदले इजरायल ने ईरान को हथियारों, टेक्नोलॉजी और अनाज की सप्लाई की।
मोसाद ने ईरान की खास पुलिस को दी ट्रेनिंग
ईरान और इजरायल ने मिलकर प्रोजेक्ट फ्लावर शुरू किया। ये हाईटेक मिसाइल सिस्टम डेवलप करने का प्रोजेक्ट था। ईरान की सीक्रेट पुलिस SAVAK को 1957 में मोसाद ने ट्रेन किया। मिडिल ईस्ट के सारे इस्लामिक देशों के विरोध के बावजूद ईरान ने इजरायल के साथ हाथ मिलाया।
70 के दशक तक ईरान और इजरायल थे एक-दूसरे की जरूरत
रजा शाह पहलवी अपनी आवाम को ये समझाने में भी कामयाब रहे कि इजरायल से दोस्ती ईरान के लिए फायदे का सौदा है। लेकिन पहलवी के सत्ता से हटने के बाद हालात बदल पूरी तरह बदल गए। 70 के दशक के अंत तक दोनों देश एक दूसरे के साझीदार थे। दोनों को ही एक दूसरे की जरूरत थी। फिर ये दोस्ती दुश्मनी में कैसे बदल गई? इजरायल-ईरान एक दूसरे के खिलाफ क्यों खड़े हो गए?
1979 में शुरू हुई दुश्मनी
30 साल जो मुल्क दोस्त रहे। उनकी दुश्मनी का इतिहास 45 साल लंबा कैसे हो गया? इसकी शुरूआत 1979 में हुई। ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद पहलवी राजवंश को सत्ता से उखाड़ फेंका और अयातुल्ला खामनेई ने ईरान को इस्लामी गणराज्य बना दिया।
ईरान और इराक के बीछ छिड़ी जंग
इसके बाद ईरान-इजरायल रिश्तों में सबकुछ बदल गया। लेकिन दोस्ती दुश्मनी में अचानक नहीं बदली, क्योंकि ये वो दौर था जब ईरान और इराक के बीच जंग के हालात तैयार हो रहे थे। ईरान और इजरायल दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी क्योंकि दोनों का दुश्मन एक ही था। 1980 से 1988 तक 8 साल ईरान और इराक के बीच जंग चलती रही। इस युद्ध में इजरायल ने ईरान को हथियारों की सप्लाई की थी। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान हर साल इजरायल ने 500 मिलियन डॉलर के हथियार ईरान को दिए।
ईरान और इजरायल के बीच छिड़ गया प्रॉक्सी वॉर
तब इजरायल को लगा कि उसका ये दोस्ताना रवैया ईरान की अवाम पसंद करेगी। धार्मिक सत्ता को उखाड़ फेंकेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अयातुल्ला खामनेई इजरायल को फिलीस्तीन की जमीन पर कब्जा करने वाला मानते थे। अमेरिका को वो बड़ा शैतान और इजरायल को छोटा शैतान कहते थे। खामनेई ईरान को मुस्लिम राष्ट्रों के लीडर के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते थे। इसमें इजरायल से दोस्ती अड़चन पैदा करती इसलिए उनकी सरकार ने इजरायल से सारे रिश्ते तोड़ दिए। सिर्फ यही नहीं ईरान ने इजरायल विरोधी फिलीस्तीन आंदोलन को सपोर्ट करना शुरू कर दिया। ईरान और इजरायल के बीच प्रॉक्सी वॉर का ये सिलसिला उसी दौर में शुरू हुआ।
इजरायल ने 1982 में लेबनान पर किया हमला
1982 में इजरायल ने लेबनान पर हमला किया। इजरायल का टारगेट लेबनान में मौजूद फिलीस्तीन संगठन थे। कुछ वक्त तक बेरूत पर इजरायल का कब्जा रहा। इजरायल से लड़ने के लिए बने हिजबुल्लाह को ईरान ने मदद की। बाद में हिजबुल्लाह ने दक्षिण लेबनान में शिया स्ट्रॉन्ग होल्ड वाले इलाकों से इजरायल के खिलाफ अभियान चलाया। हिजबुल्लाह ने दुनिया के कई देशों में इजरायल और यहूदियों को टारगेट बनाया। इजरायल ने हिजबुल्लाह के इन हमलों के पीछे ईरान का हाथ बताया था। इजरायल के खिलाफ ईरान के सपोर्ट से एक्सिस ऑफ रेज़िस्टेंस बना। इसमें फिलीस्तीन समर्थक शिया संगठन शामिल हुए। हिजबुल्लाह, हूती, सीरिया और इराक के संगठन शामिल थे।
ईरान ने न्यूक्लियर पावर बनने की दिशा शुरू किया काम
इजरायल के लिए ये खुला चैलेंज था। साल 1991 में गल्फ वॉर खत्म होने के बाद दोनों मुल्कों के रिश्ते खराब होते चले गए। लेकिन खुल्लमखुल्ला दुश्मनी का दौर तब शुरु हुआ जब कट्टरपंथी महमूद अहमदीनेजाद साल 2005 में ईरान के राष्ट्रपति बने। अहमदीनेजाद ने खुलकर इजरायल का विरोध किया। उसे खत्म करने की बात कही। इसके बाद ईरान ने न्यूक्लियर पावर बनने की दिशा में काम शुरू कर दिया। इजरायल के लिए खतरे की घंटी थी।
इजरायल ने ईरान पर किया साइबर अटैक
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए कभी इजरायल ने साइबर अटैक किया। कभी उसके वैज्ञानिकों की हत्या की। अभी तक ईरान इजरायल के बीच प्रॉक्सी वॉर हो रही थी लेकिन हमास के हमले के बाद हालात बेहद खराब हो गए। ईरान में हमास के चीफ इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह के प्रमुख नसरल्लाह की मौत के बाद अब ईरान इस जंग में कूद गया है।
अब दोनों देश एक-दूसरे पर कर रहे हवाई हमला
इजरायल पर मिसाइल अटैक करके ईरान ने इजरायल को साफ मैसेज दे दिया है। इजरायल इसका जवाब देने की तैयारी कर रहा है। जाहिर है मिडिल ईस्ट की दो सुपर पावर्स आमने सामने होंगी तो जंग और गहराएगी। इतिहास गवाह है कि जब पुराना दोस्त दुश्मन बनता है तो वो बाकी दुश्मनों से ज्यादा खतरनाक होता है।
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