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इंडोनेशिया: अलगाववादी विद्रोहियों ने बंधक बनाए गए न्यूजीलैंड के पायलट को किया रिहा, जानें पूरा मामला

न्यूजीलैंड के पायलट फिलिप मेहरटेंस को वेस्ट पापुआ नेशनल लिबरेशन आर्मी के लड़ाकों ने बंधक बना लिया था। एक साल से ज्यादा समय तक बंधक बनाकर रखने के बाद विद्रोहियों ने अब पायलट को रिहा कर दिया है।

Edited By: Amit Mishra @AmitMishra64927
Updated on: September 21, 2024 11:12 IST
New Zealand Pilot Hostage- India TV Hindi
Image Source : FILE AP New Zealand Pilot Hostage

जकार्ता: इंडोनेशिया में अलगाववादी विद्रोहियों ने न्यूजीलैंड के उस पायलट को रिहा कर दिया है जिसे पापुआ में एक साल से अधिक समय से बंधक बनाकर रखा गया था। इंडोनेशिया के अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी दी है। ‘कार्टेन्ज पीस टास्कफोर्स’ के प्रवक्ता बायु सुसेनो ने बताया कि इंडोनेशियाई विमानन कंपनी ‘सुसी एयर’ के लिए काम करने वाले क्राइस्टचर्च के पायलट फिलिप मार्क मेहरटेंस को अलगाववादी विद्रोहियों ने मुक्त कर दिया और शनिवार सुबह ‘टास्कफोर्स’ को सौंप दिया। ‘टास्कफोर्स’ एक संयुक्त सुरक्षा बल है जिसे पापुआ में अलगाववादी समूहों से निपटने के लिए इंडोनेशिया सरकार ने स्थापित किया है। 

'ठीक है पायलट का स्वास्थ्य'

सुसेनो ने कहा कि पायलट फिलिप मार्क मेहरटेंस का स्वास्थ्य ठीक है और उन्हें गहन स्वास्थ्य जांच के लिए तिमिका ले जाया गया है। पायलट को बचाने के लिए कई बार सैन्य कार्रवाई भी गई थी लेकिन इसमें इंडोनेशिया की सरकार को कोई सफलता नहीं मिली थी।

रनवे पर हमला कर किया पायलट को अगवा

‘फ्री पापुआ मूवमेंट’ के एक क्षेत्रीय कमांडर इगियानस कोगोया के नेतृत्व में विद्रोहियों ने सात फरवरी, 2023 को पारो के एक छोटे से रनवे पर हमला कर दिया था और पायलट मेहरटेंस का अपहरण कर लिया था। कोगोया ने पहले कहा था कि विद्रोही मेहरटेंस को तब तक रिहा नहीं करेंगे जब तक कि इंडोनेशिया की सरकार पापुआ को एक संप्रभु देश बनने की अनुमति नहीं देती। ‘वेस्ट पापुआ लिबरेशन आर्मी’ ‘फ्री पापुआ मूवमेंट’ की सशस्त्र शाखा है।

वेस्ट पापुआ संघर्ष है क्या?

दरअसल, 1949 में नीदरलैंड से इंडोनेशिया की स्वतंत्रता पर सहमति बनी, तो पश्चिमी पापुआ डच नियंत्रण में रहा। हालांकि, इंडोनेशिया ने 1961 में डच शासन को समाप्त करने के लिए सशस्त्र अभियान चलाया और अमेरिकी समर्थन से दो साल बाद उसे नियंत्रण में ले लिया। 1969 में संयुक्त राष्ट्र  में मतदान कराया गया था जिसे स्वतंत्र विकल्प अधिनियम के नाम से जाना जाता है। इस मतदान की आलोचना की गई थी, क्योंकि इंडोनेशिया की देखरेख में केवल 1,022 पापुआ नेताओं को ही मतदान करने की अनुमति दी गई थी। इस घटना के बाद से फ्री पापुआ मूवमेंट के नाम से स्वतंत्रता समर्थक विद्रोहियों ने सशस्त्र अभियान शुरू किया था जो आज भी जारी है।

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