अपने देश में डिजिटल क्रांति की धारा बहाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका को भी डिजिटल पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया है। पौराणिक ग्रंथों में उल्लिखित साक्ष्यों के अनुसार जिस श्रीलंका का कभी श्री हनुमान जी न दहन किया था, अब अपने उसी पड़ोसी को भारत डिजिटल पहचान देकर उसके भविष्य निर्माण की पटकथा लिखेगा। इससे श्रीलंका को सुरक्षा से लेकर व्यापार तक में आमूल-चूल फायदा होने के आसार हैं। अभी तक श्रीलंका महंगाई और शातिर दुश्मनों की फांस में फंस कर कंगाल हो चुका था। मगर भारत ने उसे न सिर्फ कंगाली से उबारने में सहयोग दिया, अब डिजिटल क्रांति लाने में भी मदद कर रहा है।
श्रीलंका को उसकी अनूठी डिजिटल पहचान परियोजना में निवेश करने के लिए भारत ने अग्रिम के तौर पर 45 करोड़ रुपये दे दिए हैं। श्रीलंका के डिजिटलीकरण कार्यक्रम में यह परियोजना बेहद महत्वपूर्ण कदम है, जिसे भारत की ओर से आर्थिक मदद देकर लागू किया जा रहा है। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यालय ने यहां कहा कि भारत सरकार से धनराशि शुक्रवार को हस्तांतरित कर दी गई। राष्ट्रपति सचिवालय में बैठक के दौरान राष्ट्रपति के वरिष्ठ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सागला रत्नायका, प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री कनक हेराथ, भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बाग्ले और भारतीय उच्चायोग के प्रथम सचिव एल्डोस मैथ्यू और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
अग्रिम भुगतान के तौर पर दिए 45 करोड़
राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, “पहल के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए, भारतीय उच्चायुक्त ने मंत्री कनक हेराथ को अग्रिम भुगतान के रूप में 45 करोड़ भारतीय रुपये का महत्वपूर्ण योगदान सौंपा, जो परियोजना के सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कुल धनराशि का 15 प्रतिशत है।” रत्नायका ने परियोजना के निर्बाध निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए तय समयसीमा का पालन करने के महत्व पर जोर दिया। (भाषा)