Highlights
- भारत पूरी करेगा नेपाल की बिजली परियोजना
- चीन 2012 से जुड़ा हुआ था फिर अलग हुआ
- बिजली दरों में मनमानी चलाना चाहता था चीन
India-Nepal VS China: चीन से धोखा खाने वाले नेपाल की महत्वकांक्षी विद्युत परियोजना पश्चिमी सेती यानी वेस्ट सेती को अब भारत पूरा करेगा। इन्वेस्टमेंट बोर्ड ऑफ नेपाल और भारत की सरकारी कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड के बीच पश्चिमी सेती और सेती नदी-2 हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना को लेकर गुरुवार को एक एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर होंगे। जिसके बाद एनएचपीसी परियोजना के लिए जरूरी अध्ययन करेगी और फिर खुदाई आदि का काम शुरू किया जाएगा। इसके बाद निर्माण कार्य शुरू होगा। इससे पहले चीन 2018 में इस परियोजना से बाहर हो गया था।
नेपाल इन्वेस्टमेंट बोर्ड के प्रवक्ता अमृत लामसाल ने काठमांडू पोस्ट अखबार से कहा है कि एनएचपीसी की टीम 18 अगस्त को काठमांडू आ रही है और यहां एमओयू पर हस्ताक्षर होंगे। इससे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा ने एनएचपीसी के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी, जिसमें सुदूर पश्चिमी प्रांत में 750 मेगावाट की पश्चिमी सेती स्टोरेज हाइड्रोपावर परियोजना और 450 मेगावाट की सेती नदी-6 हाइड्रोपावर परियोजना का अध्ययन करने की बात कही गई है।
चीन 2012 में परियोजना से जुड़ा था
पहले चीन साल 2012 में इसे बनाना चाहता था और वह 2018 तक परियोजना से जुड़ा रहा लेकिन बाद में इससे अलग हो गया। चीन के परियोजना से पीछे हटने के बाद भारत परियोजना को पूरा करने जा रहा है। ये फैसला 16 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल की लुंबिनी की यात्रा के बाद लिया गया है।
ऐसा कहा जा रहा है कि इस पूरी परियोजना की लागत 2.4 बिलियन डॉलर है। भारत में बिजली की भारी कमी को देखते हुए नई दिल्ली और काठमांडू के बीच बिजली परियोजना को लेकर सहयोग काफी अधिक बढ़ गया है।
भारत की नेपाल में ऐसी तीसरी योजना
नेपाल में पनबिजली के क्षेत्र में यह भारत द्वारा चलाई जा रही तीसरी ऐसी योजना है। पश्चिमी सेती परियोजना का काम चीन से पहले ऑस्ट्रेलिया को दिया गया था। लेकिन वह भी इससे अलग हो गया। वहीं चीन और नेपाल के बीच पश्चिमी सेती परियोजना को लेकर कई मुद्दों पर विवाद था। इसमें बिजली के बनने के बाद उसकी खरीद की दर का विवाद प्रमुख था।
चीनी कंपनी ने कहा कि नेपाल ने बिजली की जो दर बताई है, वह अपर्याप्त है लेकिन नेपाल ने भी अपनी दर में कोई बदलाव नहीं किया। ऐसा बताया जा रहा है कि चीन मनमानी दर पर बिजली बेचना चाहता था लेकिन नेपाल उसके दबाव में नहीं आया। यही वजह है कि चीन ने परियोजना से अपने पैर पीछे खींच लिए। और अब भारत परियोजना का काम पूरा करेगा।