Highlights
- अफगानिस्तान को मानवीय मदद दे रहा भारत
- भारत ने अफगानिस्तान में किया खूब निवेश
- तालिबान के आने के बाद भी रिश्ते बेहतर कर रहा
India in Afghanistan: अफगानिस्तान दुनिया के नक्शे पर छपा एक ऐसा देश है, जिसने बीते दो दशकों में दक्षिण-एशिया की राजनीति पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। यहां 21 साल के लंबे अंतराल के बाद बीते साल के अगस्त महीने में बड़ा बदलाव देखने को मिला था। इस देश में स्थिति उस वक्त खराब हो गईं, जब यहां तालिबान ने कब्जा कर लिया। उसके सत्ता में लौटते ही पश्चिम समर्थित सरकार गिर गई। इसके बाद भारत की यहां मौजूदगी कैसी रहेगी, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता था। लेकिन अब एक साल बाद भारत ने अफगानिस्तान में चुपचाप वापसी कर ली है। तालिबान और पाकिस्तान के बीच नजदीकी के बावजूद भारत की यहां मौजूदगी कमजोर नहीं हुई है। यह भी सच है कि तालिबान और पाकिस्तान के संबंध अब उतने बेहतर नहीं रहे, जितने पहले हुआ करते थे।
डूरंड लाइन अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा पर है। इसी की वजह से पाकिस्तान और तलिबान के रिश्तों में तल्खी आई है। इसके अलावा पश्तूनों को लेकर भी दोनों के बीच विवाद की स्थिति बनी हुई है। पशतून पाकिस्तान के पेशावर में रहते हैं। इसके अलावा तालिबान ने पाकिस्तान के खिलाफ काम करने वाले आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकियों को शरण दी हुई है। इन कारणों के चलते भी पाकिस्तान और तालिबान के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है। तालिबान की अंतरिम सरकार में वही हक्कानी नेटवर्क शामिल है, जिसे अमेरिका खतरा मानता है। इसकी शुरुआत 1970 में पाकिस्तान से ही हुई थी और अब यह तालिबान का एक अहम हिस्सा है।
डूरंड लाइन के चलते है तनाव
डूरंड लाइन पर एक स्थिर क्षेत्र पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंसा को कम करने में मददगार साबित होगा। हालांकि, भारत की चिंताएं अलग हैं। उसे इस बात की चिंता है कि अगर पाकिस्तानी आतंकी संगठन अफगानिस्तान में पनाह लेते हैं तो उसके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। भारत अपनी इसी चिंता को खत्म करने की कोशिशों के तहत तालिबान के साथ रिश्ते सुधारना चाहता है, ताकि पाकिस्तान को नियंत्रित किया जा सके।
बीते साल 2021 के नवंबर महीने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने भारत की राजधानी नई दिल्ली में अफगानिस्तान पर तीसरे क्षेत्रीय संवाद की मेजबानी की थी। इस दौरान भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि उसका उद्देश्य तालिबान को उखाड़ फेंकने के लिए किसी गठबंधन से हाथ मिलाना नहीं, बल्कि आईएसआईएस-के और अल-कायदा जैसे संगठनों को रोकना है। जून 2022 में जब बातचीत हुई तो वही बातें दोहराई गईं। फरवरी 2022 में भारत ने घोषणा की कि वह अफगानिस्तान को 50,000 टन गेहूं देगा। भारत ने ये घोषणा मानवीय राहत के तौर पर की थी।
इसमें हैरानी की बात यह रही कि जब पाकिस्तान ने भारत से आने वाले गेहूं को अपनी सीमा का इस्तेमाल कर अफगानिस्तान जाने की अनुमति दे दी थी। भारत वह देश रहा है, जिसने अफगानिस्तान को सबसे ज्यादा मदद दी है। इस देश के विकास के लिए 2001 से अब तक भारत ने करीब 3 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। इस पैसे से कई स्कूल, सड़कें, बांध और अस्पताल बनाए गए हैं। भारत ने तालिबान के कब्जे के बाद भी मदद करना जारी रखा। गेहूं के साथ ही अफगानिस्तान को दवा सहित कई तरह का दूसरा जरूरी सामान भी दिया गया है।
तालिबान क्यों दे रहा भारत को महत्व
भारत ने अफगानिस्तान के विकास के लिए अब तक बहुत काम किए हैं, जिसकी वजह से तालिबान उसे महत्व दे रहा है। तालिबान के सर्वोच्च नेता और उसके संस्थापक मुल्लाह उमर की अब मौत हो गई है, और अब का संगठन तालिबान 2.0 कहा जा रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि नए तालिबान के पास कई क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याएं हैं, जिनका उसे सामना करना पड़ेगा। भारत की तरफ से यह संकेत देने की कोशिश हुई कि वह अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहता है। अफगानिस्तान की राष्ट्रीय एयरलाइन को भारत उतरने की अनुमति दिए जाने के मामले में भी अभी विचार किया जा रहा है।
भारत ने पहले ही काबुल स्थित दूतावास में अपनी टीम भेजी हुई है। ये कदम अफगानिस्तान के नागरिकों को कांसुलर सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया है। कहीं न कहीं भारत एक बार फिर अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अगर ऐसा होता है तो यह पाकिस्तान के लिए एक बहुत बडे़ झटके की तरह होगा।