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पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी थी नाजायज, मौत के 45 साल बाद सुप्रीम कोर्ट का चौंकाने वाला फैसला

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को 45 वर्ष पहले दी गई फांसी एक गलत फैसला था। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। इससे हर कोई हैरान रह गया है। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में निष्पक्ष सुनवाई नहीं की गई।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published on: March 06, 2024 18:01 IST
जुल्फिकार अली भुट्टो, पाकिस्तान के पूर्व व दिवंगत प्रधानमंत्री।- India TV Hindi
Image Source : REUTERS जुल्फिकार अली भुट्टो, पाकिस्तान के पूर्व व दिवंगत प्रधानमंत्री। (फाइल)

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी को उनकी मौत के 45 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया है। इससे पाकिस्तानी सियासत में भूचाल आ गया है। जुल्फिकार अली भुट्टो के के बाद पाकिस्तान में ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ, जिसने पूरे 5 साल का कार्यकाल तक सत्ता में रह पाया हो। पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में सैन्य शासन ने फांसी दी थी, लेकिन उनके मामले में निष्पक्ष सुनवाई नहीं की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक को दी गई मौत की सजा से संबंधित राष्ट्रपति के संदर्भ की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय पीठ की सर्वसम्मति वाली इस राय की जानकारी दी। दरअसल पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपने ससुर भुट्टो को हत्या के एक मामले में उकसाने के लिए दोषी ठहराए जाने और 1979 में उन्हें दी गई फांसी की सजा मामले को दोबारा विचार के लिए 2011 को उच्चतम न्यायालय भेजा था,जिसके बाद न्यायालय ने यह फैसला सुनाया।

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

न्यायमूर्ति ईसा ने कहा,‘‘ लाहौर उच्च न्यायालय की ओर से मामले की कार्यवाही और पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की अपील संविधान के अनुच्छेद चार और नौ में निहित निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया के मौलिक अधिकार से मेल नहीं खाती’’ शीर्ष अदालत ने हालांकि अपनी राय व्यक्त की, लेकिन यह भी कहा कि भुट्टो को सुनाई गई मौत की सजा को बदला नहीं जा सकता था क्योंकि इसकी इजाजत न तो संविधान देता और न ही कानून और इसलिए यह एक फैसले के तौर पर ही देखा जाएगा। उच्चतम न्यायालय इस पर अपनी विस्तार से राय बाद में जारी करेगा। (भाषा) 

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